क्या मायावती UP से खत्म हो गईं ?

क्या मायावती UP से खत्म हो गईं
पिता से बगावत कर कांशीराम के पास पहुंचीं, 4 बार CM रहीं; आज सिर्फ 1 विधायक

साल 2007, उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका था। नीले रंग की दीवारों पर हाथी की तस्वीरों के साथ लिखा था- ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय।’

सियासी गलियारों में नारा उछाला गया- ‘ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी चलता जाएगा… हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है।’

ये मायावती की सोशल इंजीनियरिंग थी, जिसमें दावत दलितों की तरफ से दी गई और मेहमान बने ब्राह्मण-मुस्लिम।

दलित, ब्राह्मण और मुस्लिम फॉर्मूले के दम पर 406 में से 206 सीटें जीतकर मायावती चौथी बार UP की मुख्यमंत्री बनीं। 1960 के बाद पहली CM, जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया।

अब मायावती की नजर PM की कुर्सी पर थी। फिर 2009 में BSP को 20 सीटें मिलीं, लेकिन वोट शेयर लगातार घटता गया। 2012 में उनके हाथ से UP गया और 2014 के लोकसभा चुनाव में ‘हाथी’ का श्रीगणेश भी नहीं हो सका।

2019 में सपा के साथ गठबंधन के दम पर मायावती भले 10 लोकसभा सीटें जीत गईं, लेकिन 2022 विधानसभा चुनाव में अकेले उतरीं, तो सिर्फ 1 सीट ही जीत पाईं। 2024 लोकसभा चुनाव में भी मायावती UP में किसी के लिए चुनौती नहीं हैं।

आज का ‘यक्ष प्रश्न’- क्या मायावती अब UP से खत्म हो गईं…?

15 जनवरी 1956, दिल्ली के लेडी हार्डिंग अस्पताल में एक लड़की जन्मी। 15 दिन बाद उसकी मां से एक साधु ने कहा- ‘ये बहुत बड़ी नेता बनेगी।’

उसी दौरान बच्ची के पिता का प्रमोशन हुआ। माता-पिता को लगा कि ये बच्ची की माया की वजह से हुआ है। और उस लड़की का नाम रखा गया ‘मायावती।’

1975 में ग्रेजुएशन करने के बाद, मायावती ने BEd कोर्स किया। फिर लॉ करने के लिए वो दिल्ली यूनिवर्सिटी पहुंच गईं, लेकिन मायावती का असल मकसद UPSC की परीक्षा पास करके कलेक्टर बनना था।

टीचिंग और लॉ का कोर्स, तो उन्होंने बैकअप के लिए रखा था, ताकि IAS नहीं बनीं, तो भी रोजी-रोटी चलती रहे। एक साल बाद मायावती स्कूल टीचर बन गईं।

1960 के दशक की तस्वीर है। मायावती (दाएं से तीसरे नंबर पर) अपने माता-पिता और भाई-बहनों के साथ। सोर्स : drambedkarbooks.com
1960 के दशक की तस्वीर है। मायावती (दाएं से तीसरे नंबर पर) अपने माता-पिता और भाई-बहनों के साथ। सोर्स : drambedkarbooks.com

मायावती का वो भाषण जिससे सियासी गलियारों में उनकी चर्चा होने लगी
मायावती की जीवनी लिखने वाले अजय बोस ‘बहनजी’ में लिखते हैं- ‘1977 की बात है। जनता पार्टी ने जातिगत भेदभाव के खिलाफ दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में एक बैठक रखी। जिसमें बतौर वक्ता मायावती भी पहुंचीं।

रायबरेली से इंदिरा गांधी को चुनाव हरा चुके राज नारायण ने अपने भाषण में कई बार दलितों के लिए ‘हरिजन’ शब्द का प्रयोग किया।

जब मायावती मंच पर आईं, तो उन्होंने कहा- ‘हरिजन शब्द अपमानजनक है। सरकार के एक मंत्री ने इस शब्द को बार-बार दोहराकर दलितों का अपमान किया है। यह सम्मेलन, जो जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए किया गया है, वह एक मजाक बनकर रह गया।’

20 साल की इस लड़की के भाषण ने वहां मौजूद दलितों में बिजली सी दौड़ा दी। राज नारायण को हटाओ, जनता पार्टी को हटाओ…के नारे गूंजने लगे।

तब कांशीराम UP में दलितों के बड़े नेता के रूप में पहचान बना चुके थे। वे ऑल इंडिया बैकवर्ड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्प्लॉइज फेडरेशन यानी, बामसेफ की नींव रख चुके थे।

बामसेफ दलित, पिछड़े और मुस्लिम वर्ग के सरकारी कर्मचारियों का संगठन था। मायावती का भाषण कार्यकर्ताओं के जरिए कांशीराम तक पहुंच गया।

कांशीराम उन दिनों पढ़े-लिखे दलितों को संगठन से जोड़ने की मुहिम चला रहे थे। उनका कहना था- ‘जब तक दलितों के दिमाग में दूसरी पार्टियों का कब्जा होगा, तब तक उनके घर हरवाहा पैदा होगा। अगर दलितों के दिमाग में उनकी पार्टी का कब्जा होगा, तो उनके घर हाकिम पैदा होगा।’

1970 के दशक की तस्वीर। मायावती खड़ी होकर भाषण दे रही हैं। कांशीराम बैठे हुए हैं। सोर्स : drambedkarbooks.com
1970 के दशक की तस्वीर। मायावती खड़ी होकर भाषण दे रही हैं। कांशीराम बैठे हुए हैं। सोर्स : drambedkarbooks.com

कांशीराम मायावती से बोले- मैं तुम्हारे आगे कलेक्टरों की लाइन लगा दूंगा
साल 1977, सर्दी का मौसम, रात करीब 9 बजे का वक्त। हर दिन की तरह मायावती रात का खाना खाने के बाद पढ़ने बैठ गईं। उनके माता-पिता और भाई-बहन सोने की तैयारी कर रहे थे।

इसी बीच किसी ने उनका दरवाजा खटखटाया। मायावती ने दरवाजा खोला, तो देखा कि एक अधेड़ उम्र का शख्स, जिसके सिर पर ना के बराबर बाल थे और गले में मफलर लपेटे खड़ा था।

ये शख्स कांशीराम थे।

कांशीराम ने मेज पर चारों तरफ फैली किताबों की तरफ इशारा करते हुए मायावती से पूछा- ‘इतना पढ़-लिखकर क्या बनना चाहती हो?’

मायावती ने जवाब दिया- ‘मैं कलेक्टर बनकर अपने समुदाय की सेवा करना चाहती हूं।’

तभी पीछे से उनके पिता प्रभुदास बोल पड़े- ‘मैं चाहता हूं कि बेटी अफसर बनकर दलित समुदाय का गौरव बने।’

कांशीराम ने मायावती से कहा- ‘तुम बहुत बड़ी गलती कर रही हो। हमारे समुदाय ने कई कलेक्टरों और अफसरों को जन्म दिया है, लेकिन हम ढंग के नेता नहीं ला सके, जो इन कलेक्टरों और अफसरों को सही रास्ता दिखा सके। मैं तुम्हें इतना बड़ा नेता बनाऊंगा कि तुम्हारे सामने कलेक्टरों की लाइन लग जाएगी।’

1980 के दशक की तस्वीर। BSP में शामिल होने से पहले मायावती एक स्कूल में टीचर थीं।
1980 के दशक की तस्वीर। BSP में शामिल होने से पहले मायावती एक स्कूल में टीचर थीं।

पिता का घर छोड़ा, कांशीराम के कमरे में रहने लगीं
कांशीराम से मुलाकात के बाद मायावती ने UPSC की तैयारी करना छोड़ दिया और बामसेफ के कार्यक्रमों में जाने लगीं। हालांकि, प्रभुदास नहीं चाहते थे कि बेटी राजनीति में उतरे।

उन्होंने मायावती से कहा- ‘अगर तुमने राजनीति में जाने का ठान ही लिया है, तो कांग्रेस जैसी मजबूत पार्टी में जाओ। कांशीराम के चक्कर में, तो तुम कॉर्पोरेटर भी नहीं बन पाओगी।’

मायावती धीरे-धीरे पिता की बातों को नजरअंदाज करने लगीं। वो हर छोटा-बड़ा फैसला कांशीराम से पूछकर करने लगी थीं।

एक दिन गुस्से में प्रमुदास ने मायावती से कहा- ‘तुमने मेरी बात नहीं मानी और कांशीराम का साथ नहीं छोड़ा, तो मैं तुम्हें घर से निकाल दूंगा।’

प्रभुदास को लगता था कि मायावती अविवाहित होने के चलते घर छोड़ने का फैसला नहीं करेगी, लेकिन उनका अंदाजा गलत निकला। उसी दिन मायावती बिना कुछ कहे अपनी सैलरी से बचाए पैसे और कुछ कपड़े लेकर घर से निकल गईं।

उस रोज कांशीराम शहर में नहीं थे। मायावती को समझ नहीं आ रहा था कि कहां जाएं। फिर वह करोलबाग में बामसेफ के दफ्तर में चली गईं। कांशीराम लौटकर आए, तो मायावती ने उन्हें पूरी कहानी बताई।

1970 के दशक की तस्वीर। कांशीराम के पुराने संगठन बामसेफ का दिल्ली स्थित दफ्तर। कांशीराम बैठे हुए हैं।
1970 के दशक की तस्वीर। कांशीराम के पुराने संगठन बामसेफ का दिल्ली स्थित दफ्तर। कांशीराम बैठे हुए हैं।

कांशीराम, किराए के एक कमरे में रहते थे। उन्होंने मायावती से कहा- ‘तुम मेरे कमरे में ठहर जाओ। मैं तो काम की वजह से ज्यादातर समय बाहर ही रहता हूं।’

इसके बाद मायावती कांशीराम के कमरे में रहने लगीं। बाद में कांशीराम पर मायावती को आगे कर सीनियर नेताओं की अनदेखी के आरोप भी लगने लगे।

अजय बोस लिखते हैं- ‘एक बार दिल्ली में कांशीराम के कमरे के बाहर मीडिया इकट्ठी थी। कुछ पत्रकारों ने बाग में एक रस्सी पर महिला के कपड़े सूखते हुए देखे। जिसको लेकर पत्रकारों ने सवाल किया कि आपके घर में महिला के कपड़े क्यों दिख रहे? इस पर कांशीराम बहुत नाराज हो गए थे।’

BSP की स्थापना…‘ठाकुर, ब्राह्मण, बनिया चोर, बाकी सब हैं डीएस फोर’
साल 1984, कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी यानी, BSP की नींव रखी। इसी साल मायावती टीचर की नौकरी छोड़ BSP की ऑलटाइम मेंबर बन गईं। तब BSP के लोगों ने नारे लगाए- ‘तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’; ‘ठाकुर ब्राह्मण बनिया चोर, बाकी सब हैं डीएस फोर।’ डीएस-4 यानी, दलित शोषित समाज संघर्ष समिति।

कांशीराम कहते थे- ‘पहला चुनाव हारने, दूसरा हरवाने और तीसरा जीतने के लिए लड़ेंगे।’

साल 1983, BSP की स्थापना से पहले कांशीराम (सबसे आगे) ने साइकिल से कई शहरों की यात्रा की थी।
साल 1983, BSP की स्थापना से पहले कांशीराम (सबसे आगे) ने साइकिल से कई शहरों की यात्रा की थी।

साइकिल से चुनाव प्रचार करने जाती थीं मायावती
1984 में मायावती कैराना लोकसभा सीट चुनाव लड़ीं। वे साइकिल पर बैठकर चुनाव प्रचार करती थीं। हालांकि, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस लहर में मायावती हार गईं। उनकी पार्टी भी कोई सीट नहीं जीत पाई।

1985 में बिजनौर और 1987 में मायावती ने हरिद्वार से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन फिर से हार गईं। तब हरिद्वार UP में ही था।

1989 मायावती और BSP दोनों के लिए खास रहा। इस साल लोकसभा और UP विधानसभा के चुनाव नवंबर-दिसंबर महीने में हुए। केंद्र की राजीव गांधी सरकार बोफोर्स घोटाले से घिरी थी। उसका असर UP की कांग्रेस सरकार पर भी हो रहा था।

मायावती बिजनौर से लोकसभा चुनाव लड़ीं और 8 हजार वोटों से जीत गईं। 13 सीटों के साथ BSP राज्य में चौथे नंबर की पार्टी बन गई।

1989 लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान मायावती।
1989 लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान मायावती।

1991 में मुलायम सिंह के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद UP में एक बार फिर से चुनाव हुए। तब BJP के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी रथयात्रा निकाल चुके थे। अयोध्या में गोलीकांड हो चुका था। इसका फायदा BJP को मिला और उसने 419 में से 221 सीटें जीत लीं। कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने।

अयोध्या गोली कांड की वजह से मुसलमान कांग्रेस से छिटककर मुलायम की तरफ शिफ्ट होने लगे थे। उसी दौरान एक इंटरव्यू में कांशीराम ने कहा- ‘यदि मुलायम सिंह, उनसे हाथ मिला लें, तो उत्तर प्रदेश से बाकी पार्टियों का सूपड़ा साफ हो जाएगा।’

इसके बाद मुलायम सिंह ने कांशीराम से दिल्ली में मुलाकात की और उनकी सलाह पर अक्टूबर 1992 में समाजवादी पार्टी यानी, SP का गठन किया। करीब दो महीने बाद 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहा दिया गया। इसके बाद केंद्र सरकार ने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया।

1993 में SP और BSP ने मिलकर चुनाव लड़ा। सियासी गलियारो में नारा उछाला गया- ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम।’

उस चुनाव में सपा को 109 और BSP को 67 सीटें मिलीं। मुलायम सिंह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। हालांकि, कुछ समय बाद ही SP और BSP के बीच अनबन की खबरें सामने आने लगीं।

साल 1993, मायावती, कांशीराम और मुलायम सिंह। 1993 में बसपा और सपा ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था।
साल 1993, मायावती, कांशीराम और मुलायम सिंह। 1993 में बसपा और सपा ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था।

बीमार कांशीराम ने मायावती से पूछा- मुख्यमंत्री बनोगी?
23 मई, 1995 की बात है। कांशीराम अस्पताल में भर्ती थे। तभी BJP नेता लालजी टंडन से उनकी फोन पर बात हुई। इसके बाद उन्होंने मायावती को बुलाया और पूछा कि तुम मुख्यमंत्री बनोगी…?

मायावती को लगा कि बीमार कांशीराम उनसे मजाक कर रहे हैं। फिर उन्होंने दूसरे दलों के समर्थन के पत्र दिखाए और कहा कि तुम लखनऊ जाकर ये दस्तावेज राज्यपाल को सौंपना।

1 जून 1995, मायावती ने राज्यपाल से मुलाकात की और सपा से अलग होकर BJP के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया।

साल 1995, UP के राज्यपाल मोतीलाल वोरा को सपा से समर्थन वापसी का पत्र सौंपती हुईं मायावती।
साल 1995, UP के राज्यपाल मोतीलाल वोरा को सपा से समर्थन वापसी का पत्र सौंपती हुईं मायावती।

लखनऊ का गेस्ट हाउस कांड, बाल-बाल बचीं मायावती
2 जून 1995, मायावती, लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस में विधायकों के साथ बैठक कर रही थीं। दोपहर करीब तीन बजे समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं की भीड़ ने गेस्ट हाउस पर हमला बोल दिया। सपा कार्यकर्ताओं का कहना था कि मायावती ने धोखा दिया है।

अजय बोस की किताब ‘बहनजी’ के मुताबिक उस रोज मुलायम समर्थकों ने मायावती को कमरे में बंद करके मारा और उनके कपड़े फाड़ दिए। किसी तरह मायावती खुद को एक कमरे में बंद करने में सफल रहीं। सपा समर्थक लगातार दरवाजा तोड़ने की कोशिश करते रहे।

इसी बीच BJP विधायक और RSS से जुड़े रहे ब्रह्मदत्त द्विवेदी मौके पर पहुंचे और सपा समर्थकों को पीछे धकेला। तब से मायावती उन्हें अपना भाई मानने लगीं और कभी उनके खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया। फर्रुखाबाद में तो वो ब्रह्मदत्त के लिए प्रचार करने भी जाती थीं।

कहा जाता है कि जब ब्रह्मदत्त की हत्या हुई, तब मायावती उनके घर गईं और फूट-फूट कर रोईं। उनकी पत्नी ने जब चुनाव लड़ा, तो मायावती ने लोगों से कहा- ‘मेरी जान बचाने के लिए दुश्मनी मोल लेकर शहीद होने वाले मेरे भाई की विधवा को वोट दें।’

BJP के समर्थन से मायावती देश की पहली दलित मुख्यमंत्री बनीं
3 जून 1995, BJP, कांग्रेस, जनता दल और कम्युनिस्ट पार्टी के 282 विधायकों के समर्थन से मायावती UP की मुख्यमंत्री बनीं। वो भारत की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनी थीं।

अजय बोस अपनी किताब ‘बहनजी’ में लिखते हैं- ‘तत्कालीन PM पीवी नरसिम्हाराव को जब पता चला कि मायावती UP की मुख्यमंत्री बनीं हैं, तो उनका पहला रिएक्शन था- ‘यह लोकतंत्र का चमत्कार है।’

हालांकि, 5 महीने बाद ही BJP और BSP का गठबंधन बिखर गया।

साल 1995, UP के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, मायावती और मुरली मनोहर जोशी। Getty Images
साल 1995, UP के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, मायावती और मुरली मनोहर जोशी। Getty Images

BJP-BSP के बीच 6-6 महीने CM का फॉर्मूला, BJP की बारी आई तो मुकर गईं मायावती
1996 के विधानसभा चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला। 174 सीटों के साथ BJP सबसे बड़ी पार्टी बनी। सपा को 110 और BSP को 67 सीटें मिलीं, जबकि कांग्रेस को 19 सीटें।

BJP का मुलायम के साथ जाना मुमकिन नहीं था और गेस्ट हाउस कांड के बाद मायावती और मुलायम का मिलना नामुमकिन सा हो गया था। ऐसे में राज्य में फिर से राष्ट्रपति शासन लग गया।

करीब एक साल बाद BJP और BSP फिर से गठबंधन की पटरी पर लौटे। दोनों के बीच 6-6 महीने मुख्यमंत्री का फॉर्मूला तय हुआ।

अप्रैल 1997 में मायावती दूसरी बार UP की मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन 6 महीने बाद जब BJP के कल्याण सिंह को कमान सौंपने की बारी आई, तो मायावती ने यह कहते हुए समर्थन वापस ले लिया कि वे दलित विरोधी हैं।

इसके बाद 2002 में भी BJP ने समर्थन देकर मायावती को मुख्यमंत्री बनवाया। कहा जाता है कि संघ ने BJP को सलाह दी थी कि मायावती मुख्यमंत्री बनेंगी, तो दलित वोट कांग्रेस से छिटक कर बसपा की तरफ शिफ्ट हो जाएंगे।

हालांकि, एक साल बाद ही BJP ने समर्थन वापस लेकर सरकार गिरा दी और मुलायम सिंह को समर्थन देकर मुख्यमंत्री बनवा दिया।

साल 1997, पूर्व PM अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मायावती। सोर्स : Getty Images
साल 1997, पूर्व PM अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मायावती। सोर्स : Getty Images

‘ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी चलता जाएगा’
साल 2007, UP में एक बार फिर से चुनावी रणभेरी बजी। तब मुलायम का साथ देने की वजह से सवर्ण, BJP से नाराज थे। दूसरी तरफ BJP से समर्थन लेने की वजह से मुस्लिम मुलायम से नाराज थे।

मायावती समझ चुकीं थी कि अपने दम पर सरकार बनानी है, तो सिर्फ दलितों के वोट से काम नहीं चलेगा। उन्होंने कांग्रेस के पुराने सोशल इंजीनियरिंग यानी ब्राह्मण, मुस्लिम और दलित कॉम्बिनेशन के फॉर्मूले को अपनाया।

अंतर बस इतना था कि कांग्रेस के फॉर्मूले में ब्राह्मण मेजबानी करते थे और मायावती के फॉर्मूले में दलितों की तरफ से ब्राह्मणों और मुस्लिमों को दावत दी गई।

मायावती ने कांशीराम के बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय की जगह सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय का नारा दिया। जगह-जगह पोस्टर लग गए- ‘ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी चलता जाएगा… हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है।’

मायावती ने 403 सीटों में से 206 सीटें जीत लीं। इनमें 45 से ज्यादा विधायक ब्राह्मण थे। उन्होंने अपनी कैबिनेट में भी 10 ब्राह्मणों को जगह दी।

साल 2009, दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली के दौरान UP की मुख्यमंत्री मायावती। Getty Images
साल 2009, दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली के दौरान UP की मुख्यमंत्री मायावती। Getty Images

कांग्रेस ने किसानों के लोन माफ किए, फिर कभी मायावती खड़ी नहीं हो पाईं
अपने दम पर UP जीतने के बाद मायावती की नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर थी। उनके समर्थक नारा लगाते थे, ‘लखनऊ जीत लिया, अब दिल्ली की बारी है।’

इसी बीच कांग्रेस ने 2009 लोकसभा चुनाव से पहले किसानों के 60 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के कर्ज माफ कर दिए। इससे पहले सरकार 100 दिनों के रोजगार की गारंटी के लिए मनरेगा जैसी योजना लागू कर चुकी थी।

इससे कांग्रेस को UP के साथ-साथ देशभर में फायदा हुआ। 206 सीटें जीतकर कांग्रेस देश में सबसे बड़ी पार्टी बनी। UP में कांग्रेस 9 सीटों से 21 पर पहुंच गई और उसका वोट शेयर भी 6% बढ़ गया, जबकि मायावती 20 सीटें ही जीत पाईं।

कहा जाता है कि मायावती को उम्मीद थी कि वो 40-50 सीटें जीतती हैं, तो PM बनने की शर्तों पर UPA या NDA से डील कर पाएंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

2012 के विधानसभा चुनाव में मायावती के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी का माहौल था। उन पर करप्शन के आरोप लग रहे थे। लिहाजा बसपा 206 से घटकर 80 सीटों पर सिमट गई और सपा ने 403 में से 224 सीटें जीत लीं। उसके बाद मायावती फिर कभी UP की सत्ता में नहीं लौटीं।

केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद मायावती के कोर वोटर्स भी साथ छोड़ते गए। 2014 लोकसभा चुनाव में BSP का खाता नहीं खुला। 2017 विधानसभा चुनाव में पार्टी 19 सीटों पर सिमट गई।

2019 लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन करने से मायावती 10 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब भी रहीं, लेकिन उनका वोट शेयर घट गया।

मायावती के पास अब जाटव वोट बचे, अगर वो भी घटे तो वजूद बचाना मुश्किल
CSDS की रिपोर्ट के मुताबिक 2017 के UP विधानसभा चुनाव में जाटव यानी, जिस कम्युनिटी से मायावती आती हैं, उसमें से 87% ने बसपा को वोट किया, लेकिन 2022 में ये आंकड़ा घटकर 65% हो गया।

इसी तरह दूसरी दलित कम्युनिटी में से 44% ने 2017 में मायावती को वोट किया था, लेकिन 2022 में ये आंकड़ा घटकर 27% हो गया। यानी मायावती के कोर वोटर्स साथ छोड़ रहे हैं।

2024 लोकसभा चुनाव से पहले चर्चा थी कि मायावती इंडिया अलांयस के साथ जा सकती हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने इंडिया अलायंस में शामिल होने की सलाह दी थी, लेकिन ऐन वक्त पर मायावती ने अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया।

विपक्ष का आरोप है कि मायावती, इंडिया एलायंस के वोट काटने के लिए BJP की बी टीम बनकर काम कर रही हैं।

अभी तक UP में मुकाबला त्रिकोणीय होता था, लेकिन इस बार लड़ाई BJP और सपा-कांग्रेस गठबंधन के बीच ही रह गई है।

अभी मायावती के पास विधानसभा में 12.8% और लोकसभा में 19.4% वोट शेयर है। अगर इस चुनाव में BSP का वोट शेयर घटता है, तो लंबे समय के लिए UP की राजनीति में मायावती अप्रासंगिक हो जाएंगी।

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