जनरल बोगी में पंखे गर्म हवा फेंक रहे, स्लीपर खचाखच !
45 डिग्री पार गर्मी में ट्रेन का सफर …
जनरल बोगी में पंखे गर्म हवा फेंक रहे, स्लीपर खचाखच; यात्री बोले- बच्चे बीमार पड़ रहे
मुंबई की तरफ जाने वाली लंबी दूरी की ट्रेन दोपहर 12.45 मिनट पर भोपाल रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 4 पर रुकी। ट्रेन का स्टापेज 5 मिनट का है। जैसे ही ट्रेन रुकी, स्लीपर और जनरल बोगी से यात्री पानी की बोतलें लेकर प्लेटफॉर्म के शीतल जल केंद्र की तरफ भागे। हर एक के हाथ में दो से तीन बोतल थी। जैसे-तैसे पानी भरकर फिर ट्रेन में जा बैठे। पांच मिनट बाद ट्रेन आगे की तरफ रवाना हो गई।
एमपी में इस समय भीषण गर्मी का दौर जारी है। नौतपा के तीन दिन गुजर चुके हैं, मगर राहत नहीं है। शहरों का तापमान 45 डिग्री को छू रहा है। ऐसे में ट्रेन के स्लीपर और जनरल बोगी में सफर करने वाले यात्रियों या क्या हाल है? ये जानने ….रिपोर्टर ने दोपहर 12 बजे से 4 बजे के बीच लंबी दूरी की अलग-अलग ट्रेनों में सफर किया। प्लेटफॉर्म के अलावा ट्रेन में सफर कर रहे यात्रियों से बात की। पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
इस सफर की शुरुआत में पहले जानिए प्लेटफॉर्म पर कैसा था नजारा
दोपहर 12 बजे दैनिक भास्कर की टीम भोपाल रेलवे स्टेशन पर पहुंची। तापमान मापने के लिए साथ में टेम्प्रेचर मीटर भी था। भास्कर टीम ने ग्वालियर तक जाने के लिए एक जनरल का टिकट खरीदा।
टिकट काउंटर के सामने लोग कतार में लेटे हुए थे। कुछ जमीन पर सो रहे थे। टिकट काउंटर का हॉल पूरी तरह से भरा हुआ था। कुछ लोगों से पूछा कि यहां इतनी भीड़ क्यों है? तो जवाब मिला- भाई साहब, ये हॉल चारों तरफ से बंद है, इसलिए गर्म हवा अंदर नहीं आ रही। यहां पंखे भी चल रहे हैं।
प्लेटफॉर्म पर बैठने के बजाय यहां बैठना अच्छा। कुछ लोगों ने जमीन को ही अपना बिस्तर बना लिया था। इसे देखकर अंदाजा हो गया कि ट्रेन का सफर कैसा रहने वाला था।
टिकट काउंटर से हम प्लेटफॉर्म नंबर 5-6 की तरफ बढ़े। इस प्लेटफॉर्म पर ज्यादा भीड़ नहीं थी, क्योंकि यहां कोई ट्रेन नहीं आने वाली थी। प्लेटफॉर्म पर माल गाड़ी खड़ी थी। ओवरब्रिज से होते हुए हम पहुंचे प्लेटफॉर्म नंबर 3 और 4 की तरफ।
ओवरब्रिज ऊंचाई पर है, इसलिए एक महिला अपने 1 साल के बच्चे को पल्लू से हवा कर रही थी। यहीं पर कुछ स्टूडेंट मुंह पर कपड़ा बांधे खड़े थे। सभी ओवरब्रिज पर हवा में खड़े थे। भले ही ये गर्म हवा थी। प्लेटफॉर्म 3 और 4 पर जबरदस्त भीड़ थी। यहां यात्री ट्रेन का इंतजार कर रहे थे।
प्लेटफॉर्म पर लगे पंखे गर्म हवा फेंक रहे थे। गर्मी से बचने के लिए किसी ने अपने गमछे को पानी में भिगोकर सिर पर लपेट रखा था, तो महिलाएं अपनी साड़ी के पल्लू को पंखा बनाकर बच्चों को हवा कर रही थीं।
सभी के हाथों में एक कॉमन चीज थी। पानी की बोतल। इस माहौल को देखकर हमने मीटर से तापमान देखा तो प्लेटफॉर्म पर पारा था 41 डिग्री।
ट्रेन प्लेटफॉर्म पर रुकी, यात्री पानी लेने के लिए दौड़े
प्लेटफॉर्म पर खड़े होकर हम ट्रेन का इंतजार करने लगे। प्लेटफॉर्म पर टेम्प्रेचर लगातार बढ़ रहा था। 12.45 बजे टेम्प्रेचर मीटर का पारा 41.5 डिग्री हो चुका था। लेट चल रही एक ट्रेन प्लेटफॉर्म नंबर 4 पर पहुंची।
जैसे ही ट्रेन रुकी यात्री तेजी से उतरे और नलों के पास भागे। उन्होंने फटाफट अपनी बोतल भरी और वापस से ट्रेन में आकर बैठ गए। ट्रेन की स्लीपर और जनरल बोगी खचाखच भरी हुई थी। ट्रेन 5 मिनट के लिए रुकी और आगे बढ़ गई।
यूपी की महिला बोली- गर्मी से बच्चों की हालत खराब हो गई
प्लेटफॉर्म नंबर 4 पर 3 से 4 महिलाएं कुछ बच्चे और पुरुष जमीन पर बैठे थे। वे अपनी ट्रेन के आने का इंतजार कर रहे थे। उन्हीं में से एक निशा अग्रवाल ने बताया कि उनका मायका भोपाल है और ससुराल यूपी में है। छुट्टियों में वह बच्चों के साथ अपने मायके आई थीं।
वह बोलीं- मेरा बचपन भोपाल में ही बीता, लेकिन भोपाल में ऐसी गर्मी पहले कभी नहीं देखी। भोपाल हरियाली की वजह से बेहद ठंडा रहता था। शीतल ने कहा कि गर्मी की वजह से बच्चों की तबीयत खराब हो गई। पेट दर्द की शिकायत है। बच्चों के साथ मुझे भी उल्टी-दस्त की समस्या हो गई थी। अब थोड़ा ठीक महसूस हो रहा है तो वापस ससुराल जा रही हूं।
भोपाल-बीना मेमू ट्रेन में ज्यादा भीड़ नहीं, तापमान 42 डिग्री
दोपहर करीब 2 बजे भोपाल से बीना जाने वाली मेमू एक्सप्रेस प्लेटफॉर्म पर पहुंची। इस ट्रेन से ज्यादातर लोग अप डाउन करते हैं। ट्रेन में भीड़ थी, लेकिन ज्यादा नहीं। सीटें भरी हुई थीं। कुछ लोग फ्लोर पर भी बैठे हुए थे। कुछ लोग बिस्तर बिछाकर आराम कर रहे थे।
एक बुजुर्ग महिला ट्रेन के फर्श पर सो रही थीं। उनसे पूछा कि कहां जा रही हैं तो जवाब बीना मिला। गर्मी को लेकर सवाल किया तो बोलीं, इतनी गर्मी पहले कभी नहीं देखी। न दिन को चैन है न रात को आराम। सिर्फ गर्म हवाएं चल रही हैं। बस जैसे-तैसे सफर पूरा हो जाए।
मेमू ट्रेन करीब 15 मिनट तक भोपाल स्टेशन पर रुकी। इसी दौरान ट्रेन में बैठे कुछ और यात्रियों से बात की तो सभी ने कहा कि इतनी गर्मी कभी नहीं देखी।
ग्वालियर जाने वाली ट्रेन के स्लीपर क्लास में पैर रखने की जगह नहीं
लोगों से बात कर भास्कर टीम इस ट्रेन से नीचे उतरी। कुछ देर बाद ग्वालियर जाने वाली ट्रेन प्लेटफॉर्म पर पहुंची। इस समय दोपहर के करीब 3 बज रहे थे। भास्कर की टीम इस ट्रेन के स्लीपर क्लास में पहुंची। कोच खचाखच भरा हुआ था। पैर रखने की भी जगह नहीं थी।
कुछ लोगों से पूछा कि सभी लोग खड़े-खड़े सफर क्यों कर रहे हैं, तो एक यात्री ने कहा कि विदिशा जाना है। जनरल बोगी में जगह नहीं है। स्लीपर में इसलिए आए, ताकि गर्मी में सफर आराम से हो सके, लेकिन यहां भी राहत नहीं है।
इसी बोगी में एक महिला अपने बच्चे को सुलाने की कोशिश कर रही थी। उनसे पूछा कि सफर में किस तरह की परेशानी है तो उसकी सास ने कहा कि उन्हें सफर करते हुए एक दिन हो चुका है। वे जगन्नाथ पुरी गए थे। उनसे पूछा कि वहां गर्मी कैसी थी, तो बोली- गर्मी तो बहुत है, ट्रेन में जैसे-तैसे सफर कर रहे हैं। इस बार बहुत ज्यादा गर्मी है।
युवा बोले- सरकार स्लीपर कोच ही खत्म कर रही
इसी ट्रेन में युवाओं का ग्रुप भी था। इसमें शामिल युवतियों ने अपना चेहरा स्कार्फ से ढंक रखा था। उनसे पूछा कि क्या गर्मी नहीं लग रही, तो बोली- गर्मी है इसलिए स्कार्फ पहना है। इतनी गर्म हवा है कि स्किन पर असर पड़ता है।
ग्रुप में शामिल युवाओं ने कहा कि तेज गर्मी को देखते हुए उनके कॉलेज की छुट्टी कर दी गई है। वे घर लौट रहे हैं। इनमें से एक युवक ट्रेन में मिल रही सुविधाओं को लेकर नाखुश नजर आया।
उसने भीड़ की तरफ इशारा करते हुए कहा कि सरकार स्लीपर कोच तो खत्म ही करती जा रही है। आम आदमी एसी कोच में सफर नहीं कर सकता। उसने कहा कि हमारे जैसे अप डाउन करने वालों के लिए तो ये सफर और भी मुश्किल है।
बाबाजी ने भरी गर्मी में लगाई योग की क्लास
एक बुजुर्ग ने कहा कि देखो गर्मी है, लेकिन उससे बचना जरूरी है। बचने का एक ही तरीका है कि शरीर में पानी की कमी न होने दें। भोजन की बजाय पेय पदार्थों का सेवन करेंगे तो अच्छा है।
बुजुर्ग चेहरे से साधु की तरह लग रहे थे। उनसे पूछा कि वे कहां जा रहे हैं, तो वे बोले, विदिशा जा रहे हैं और एक आश्रम से जुड़े हैं। हालांकि, उन्होंने आश्रम का नाम नहीं बताया। बुजुर्ग ने कहा कि योग के जरिए शरीर के तापमान को नियंत्रित रखा जा सकता है।
जिन लोगों का वजन ज्यादा होता है उन्हें ज्यादा गर्मी महसूस होती है, इसलिए वजन पर नियंत्रण जरूरी है। उनकी बातों को युवा ध्यान से सुनने लगे। बुजुर्ग ने कहा कि शरीर के साथ साथ मस्तिष्क को भी ठंडा रखने के लिए योग क्रियाएं होती हैं।
ट्रेन आउटर पर रुकी और यात्रियों की फजीहत हो गई
बुजुर्ग की इस योग क्लास से आगे बढ़े तो एक युवक गर्मी से बेचैन था। उसी वक्त हमने ट्रेन में तापमान मापने का मीटर निकाला तो पारा 43 डिग्री के पार जा चुका था। कुछ देर बाद ट्रेन की रफ्तार धीमी होने लगी, शायद कोई स्टेशन आ रहा था या फिर ट्रेन को सिग्नल नहीं था।
ट्रेन जैसे ही रुकी तो देखा कि कोई स्टेशन नहीं था। यात्रियों की हालत और ज्यादा खराब होने लगी। खिड़कियों से हवा आनी बंद हो गई। जिन यात्रियों ने गर्म हवा से बचने के लिए जाली वाली खिड़की नीचे की थी, उन्होंने खोल ली।
जो लोग बच्चों के साथ सफर कर रहे थे उन्हें ज्यादा परेशानी थी। ट्रेन रुकते ही बच्चे जाग गए। कुछ पेरेंट्स बच्चों को गोद में लेकर रुमाल या गमछे से हवा करने लगे। करीब पांच मिनट बाद ट्रेन फिर चल पड़ी।
यात्री बोले- मजबूरी में सफर कर रहे हैं
अब विदिशा स्टेशन नजदीक ही था। ट्रेन की बोगी से निकलकर हम दरवाजे तक पहुंचने की कोशिश करने लगे। जैसे ही गेट पर पहुंचे तो एक शख्स दिखा, जिसने ऊपर से नीचे तक खुद को कपड़े से ढंक रखा था। काला चश्मा लगाए हुए था। केवल उसकी नाक और होंठ दिखाई दे रहे थे।
वो ट्रेन के दरवाजे पर खड़ा था। युवक का स्टाइल दिलचस्प लगा तो उससे बात की। उसने अपना नाम सूरज बताया। सूरज से पूछा कि उसके नाम के मुताबिक ही सूरज तो आग उगल रहा है। तो बोला- पहली बार ऐसी गर्मी देख रहा हूं।
अगला सवाल किया कि दरवाजे पर क्यों खड़े हैं कहीं जगह नहीं मिली क्या, तो बोला- बैठकर वैसे भी क्या होगा, गर्म हवा तो सभी जगह है। विदिशा ही जा रहा हूं, इसलिए खड़े- खड़े ही सफर किया। सूरज ने बताया कि भोपाल किसी काम से आया था। मजबूरी नहीं होती तो सफर भी नहीं करता।
रेलवे स्टेशन पर यात्रियों की सेवा के लिए सामाजिक संगठन सक्रिय
सूरज से बात करते हुए ही विदिशा स्टेशन आ गया। ट्रेन जैसे ही स्टेशन पर रुकी, कुछ लोग पानी के मग लिए ट्रेन की खिड़कियों पर पहुंचने लगे। यात्रियों ने अपनी बोतलें खिड़की से बाहर निकाली और ये लोग उन बोतलों में पानी भरने लगे। हर बोगी के पास ऐसे एक या दो लोग खड़े थे।
ट्रेन से उतरने के बाद इनमें से एक व्यक्ति से पूछा कि क्या रेलवे की तरफ से ये इंतजाम किया गया है, तो उसने बताया कि वे लोग एक सामाजिक संगठन से जुड़े हैं। इतनी भीषण गर्मी है। ट्रेन का स्टापेज भी कम होता है, इसलिए लोगों को पानी पिलाने की सेवा में जुटे हैं। पानी पिलाना पुण्य का काम होता है।
इस शख्स का और उसके सामाजिक संगठन का नाम पूछते उससे पहले ही एक बोगी से महिला ने आवाज दी- ‘भैया बोतल में पानी भर दो’। वो शख्स उस तरफ दौड़ पड़ा, क्योंकि ट्रेन भी छूटने को ही थी।
कुछ देर बार ट्रेन के छूटने का अनाउंसमैंट भी हो गया। ट्रेन अगले स्टेशन की तरफ चल पड़ी और हम प्लेटफॉर्म के दूसरी तरफ जा पहुंचे। वापसी की ट्रेन पकड़ने के लिए। इसी बीच बैग से तापमान मीटर निकाला तो पारा थोड़ा कम हो चुका था, क्योंकि अब शाम होने वाली थी।