झीलें बचेंगी…तभी हम बचेंगे ?
पर्यावरण: झीलें बचेंगी…तभी हम बचेंगे, सबके अस्तित्व के लिए आवश्यक है दायित्वबोध
कब्जे के लिए सूखतीं, घरेलू व अन्य निस्तार के कारण बदबू मारतीं, पानी की आवक के रास्ते में खड़ी रुकावटों से सूखतीं, सफाई न होने से उथली होतीं और जलवायु परिवर्तन से जूझतीं दुनिया भर की झीलें बीमार हो रही हैं।
एक बात और झीलें बारिश से जितना पानी पाती हैं, उससे दोगुना वाष्पित करती हैं। झीलों की सेहत से बेपरवाही रही, तो समूचे पर्यावरणीय तंत्र पर इसका असर पड़ेगा, जिससे झीलों पर निर्भर बड़ी आबादी के सामाजिक-आर्थिक जीवन में भूचाल आ जाएगा। भारत का हर तालाब अपने आसपास भूवैज्ञानिक इतिहास और पर्यावरणीय महत्व की एक अनूठी कहानी समेटे हुए है। भारत जैसे देश में जहां, तालाबों के किनारे कई पर्व, मान्यताएं और धार्मिक गतिविधियां अनिवार्य मानी जाती हैं, उनका अस्तित्व ही झील की सेहत पर निर्भर है। झील-तालाब बीमार हो, तो इलाके का कार्बन और ताप अवशोषण प्रभावित होता है, जो जैव विविधता को क्षति और बाढ़-सूखे के रूप में सामने आता है। स्थानीय समाज का जलस्रोत यदि सेहतमंद न हो, तो जलजनित रोग बढ़ेंगे।
तालाब-झील में ऑक्सीजन की मात्रा कम होना भी खतरनाक है। यह अन्य जलचरों और वनस्पति के लिए जानलेवा है। जलकुंभी या फिर पानी में अधिक मात्रा में दूषित अवशिष्ट का मिलना, गंदे पानी का निस्तार ऑक्सीजन कम होने के मूल कारक हैं। इससे पानी की क्षारीयता भी बढ़ती है, जो किसी तालाब के गंभीर रूप से बीमार होने का लक्षण है। इन्सान के स्वस्थ शरीर की ही तरह झीलों को भी पर्याप्त ऑक्सीजन और अति क्षारीयता से मुक्ति चाहिए होती है। एक बात और, यदि दरिया का पानी हृष्ट-पुष्ट न हो, तो उससे उगने वाले उत्पाद में भी पौष्टिकता में कमी होती है। जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान में वृद्धि झीलों की सेहत को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। गंभीर जल दोहन और बरसात की अनियमितता के कारण कई झीलों में जलस्तर तेजी से नीचे गिरा, जबकि दूसरी तरफ पेयजल, सिंचाई और मछली पालन आदि में पानी की खपत बढ़ी है। इससे झीलों का पोषण-संतुलन तब गड़बड़ा जाता है, जब उसमें पोषक तत्वों की सांद्रता या तो अधिक हो जाए या फिर बहुत कम हो जाए। इस तरह झील का पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाता है।
पोषक तत्वों की अचानक अधिकता होने से जल निधियों की ऊपरी सतह पर हरे रंग की परत जमने से हम सभी पहले से वाकिफ हैं। इसे वैज्ञानिक भाषा में ‘यूट्रोफिकेशन’ कहते हैं। वास्तव में हरापन एक तरह के बैक्टीरिया के कारण होता है, जिसे सूक्ष्म या फिलामेंट्स शैवाल कहा जाता है। गंदे पानी सीवरेज, कारखानों से निकलकर अपशिष्ट जल और खेतों से बहकर आए खाद-उर्वरक के अपवाह से इस तरह का विकार जल्दी वृद्धि करता है। इसके कारण पानी में ऑक्सीजन की मात्रा भी कम हो जाती है। समझना होगा कि इस तरह के शैवाल का कुप्रभाव महज जल निधि तक सीमित नहीं रहता, यह सीधे तौर पर मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा हो सकता है, क्योंकि कुछ साइनोबैक्टीरियल से विषाक्त पदार्थों का उत्पादन होता है, जो श्वसन, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल और त्वचा संबंधी समस्याएं पैदा कर देता है। इस अंतरराष्ट्रीय शोध में बताया गया है कि इस तरह से बीमार हुई झील के न्यूरोटॉक्सिसिटी प्रभाव होते हैं, जिससे सेलुलर और जीनोमिक क्षति, प्रोटीन संश्लेषण अवरोध और मनुष्यों और वन्यजीवों में संभावित कार्सिनोजेनेसिस होता है।