एआई कमजोर लोकतंत्रों को बेहतर बना सकता है, उन्नत क्षमताओं से निगरानी में भी मदद

सिर्फ समस्या नहीं, समाधान भी: एआई कमजोर लोकतंत्रों को बेहतर बना सकता है, उन्नत क्षमताओं से निगरानी में भी मदद
डीपफेक कितना ही विनाशकारी क्यों न हो, एआई कमजोर लोकतंत्रों को मजबूत बना सकता है। चुनावों में पारदर्शिता, समावेशिता और दक्षता बढ़ाने के लिए भी एआई का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसकी उन्नत डाटा विश्लेषण क्षमताएं रियल टाइम में चुनाव संबंधी डाटा की निगरानी कर सकती हैं।

Artificial Intelligence Potential Weak Democracies can be strengthened with better surveillance
एआई में उन्नत डाटा विश्लेषण की क्षमता –

पिछले दो वर्षों के दौरान प्रौद्योगिकी की कहानी में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और इससे उत्पन्न उत्साह एवं व्यवधान का बोलबाला रहा है। हालांकि वर्ष 2023 के उत्तरार्ध में कॉपीराइट, पूर्वाग्रह, निजता और डीपफेक जैसे नैतिक मुद्दों के सामने आने से इस कहानी में थोड़ी कड़वाहट घुलने लगी। दुनिया के अधिकांश लोकतंत्रों में या तो चुनाव हो चुके हैं या होने वाले हैं, इसलिए 2024 में एआई की पहली प्रमुख नैतिक परीक्षा होगी कि वह लोकतंत्र की मदद करेगा या उसे नष्ट कर देगा।

भारत में तो चुनाव हो चुके हैं, लेकिन अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, इंडोनेशिया और अन्य प्रमुख लोकतंत्रों में इस साल महत्वपूर्ण चुनाव होने वाले हैं। हालांकि डीपफेक जेनरेटिव एआई से पहले से ही अस्तित्व में है, लेकिन सोरा और स्टेबल डिफ्यूजन जैसे उत्पादों ने उसके उत्पादन को लोकतांत्रिक बना दिया है, जिससे अब बड़े पैमाने पर इसे बनाना आसान, तेज और सस्ता हो गया है। सोशल मीडिया पर भी हम सब शीर्ष पर हैं, जहां व्हाट्सएप, टिकटॉक और इसी तरह के अन्य सोशल मीडिया फ्लेटफॉर्म वैश्विक स्तर पर आसानी से उपलब्ध हो रहे हैं।

इस साल की शुरुआत में बांग्लादेश और स्लोवाकिया में चुनाव हुए, जिसमें डीपफेक भी एक पक्ष बन गया। बांग्लादेश के एक विपक्षी नेता को फलस्तीन के समर्थन के मुद्दे पर दुविधा की स्थिति में दिखाया गया, इस तरह का रुख अपनाना उस देश में विनाशकारी है। स्लोवाकिया के चुनाव में भी एक प्रमुख दावेदार ने कथित तौर पर चुनावों में धांधली की बात कही थी और इससे भी चिंताजनक बात थी कि उन्होंने बीयर की कीमत बढ़ाने की बात की, जो कथित तौर पर उनकी हार का कारण बनी। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की नकली आवाज में लोगों से यह अपील की गई कि वे अमेरिकी प्राइमरी में मतदान नहीं करें। वर्ष 2016 के कैंब्रिज एनालिटिका विवाद की यादें अब भी ताजा हैं। बड़े चुनावों के नजदीक आते ही खतरे की घंटी बज गई है।

यहीं पर मैं इसके एक दूसरे पहलू का उल्लेख करना चाहूंगा। जरा पाकिस्तान को देखिए, वहां भी इसी वर्ष की शुरुआत में चुनाव हुए। वहां के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान जेल में थे। उनकी पार्टी का चुनाव चिह्न छीन लिया गया और उनके कुछ उम्मीदवारों को धमकाया गया और कुछ को जेल में भी डाल दिया गया। हालांकि अंततः दूसरी पार्टियों की जीत की घोषणा की गई, लेकिन ज्यादातर खबरें दावा करती हैं कि भारी धांधली और हेराफेरी के बावजूद इमरान खान की पार्टी ने अच्छी सफलता पाई। खान ने जेल में रहते हुए पूरे देश में चुनाव प्रचार करने के लिए जेनरेटिव एआई का इस्तेमाल किया और इस कहानी को पलट दिया कि एआई लोकतंत्रों को नष्ट करती है। जेनरेटिव एआई का इस्तेमाल करके उन्होंने मतदाताओं से अपनी पार्टी के लिए मतदान करने का आग्रह करते हुए फुटेज तैयार किया और इसे यूट्यूब और अन्य ऑनलाइन चैनलों पर खूब शेयर किया गया। लोगों ने उनके आह्वान पर ध्यान दिया और रिकॉर्ड संख्या में मतदान किया, जिससे उनकी पार्टी के उम्मीदवारों को बड़ी संख्या में सफलता मिली। पाकिस्तान ने दिखा दिया कि कैसे एआई का इस्तेमाल करके लोकतंत्र को नष्ट करने के बजाय उसे मजबूती दी जा सकती है।

यहां मैं डीपफेक की विनाशकारी शक्ति से इन्कार नहीं कर रहा हूं, और मुझे डर है कि भारत के किसी भी चुनाव और अन्य चुनावों में इसका इस्तेमाल विमर्श को भड़काने और मनगढ़ंत कथानक को आकार देने के लिए किया जा सकता है। हालांकि चुनावों, जो लोकतंत्र का एक मुख्य स्तंभ है, को बेहतर बनाने के लिए एआई बहुत कुछ कर सकता है। पाकिस्तान का उदाहरण इसका रचनात्मक
तरीका है। चुनावों में पारदर्शिता, समावेशिता और दक्षता बढ़ाने के लिए भी एआई का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसकी उन्नत डाटा विश्लेषण क्षमताएं वास्तविक समय में चुनाव से संबंधित डाटा की निगरानी कर सकती हैं, जिससे धोखाधड़ी का संकेत देने वाली किसी भी अनियमितता की पहचान की जा सकती है। एआई एल्गोरिदम मतदाता पंजीकरण या मतदान में अनियमितताओं के पैटर्न का पता लगा सकते हैं। एआई इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम की सुरक्षा में भी सुधार कर सकता है। इसके अतिरिक्त, खतरे का पता लगाने वाले एल्गोरिदम संभावित साइबर खतरों की पहचान करने में मदद कर सकते हैं।

जेनरेटिव एआई स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके स्थानीय बोली में उम्मीदवारों और उनके घोषणापत्रों पर बेहद व्यक्तिगत सामग्री तैयार करते हुए मतदाताओं की शिक्षा और जागरूकता को बढ़ाने में मदद कर सकता है। यह व्यक्तिगत दृष्टिकोण राजनीतिक जागरूकता बढ़ा सकता है और विशेष रूप से हाशिये पर पड़े समूहों के लोगों को सोच-समझकर मतदान करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। जेनरेटिव एआई इस काम को बड़े पैमाने पर, बहुत कम लागत में, उच्च दक्षता के साथ करने में मदद कर सकता है, जिससे कम पैसे वाले उम्मीदवार भी सशक्त बन सकेंगे। एआई द्वारा संचालित प्रणालियां दिव्यांग मतदाताओं की पहुंच को भी बढ़ा सकती हैं। उदाहरण के लिए, एआई द्वारा संचालित ध्वनि पहचान प्रणालियां दृष्टि बाधित मतदाताओं को मतदान करने में सहायता कर सकती हैं। एआई जनसांख्यिकीय समूहों में जनता की राय जानने के लिए सोशल मीडिया पर मौजूद सूचनाओं का विश्लेषण कर सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि राजनीतिक विमर्श में समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व हो। यहां तक कि इसकी मदद से चुनाव की लॉजिस्टिक प्रक्रिया में भी सुधार करके लागत बचाई जा सकती है, जो कि भारत जैसे विशाल देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। एआई मतदाता पंजीकरण और सत्यापन को बेहद कुशल बनाने में मदद कर सकता है, समय पर पात्रता सत्यापित करने के लिए विभिन्न स्रोतों से आवश्यक डाटा हासिल कर लंबी कतारों को समाप्त कर सकता है।

एआई दोधारी प्रौद्योगिकी है, जिसके बहुत सारे लाभ हैं, तो इसमें विनाशकारी शक्ति भी है। जब हम डीपफेक के जरिये चुनावों पर पड़ने वाले इसके प्रतिकूल प्रभाव को रोकने की कोशिश करते हैं, तो हमें यह भी देखना चाहिए कि यह हमारे कमजोर लोकतंत्रों को कैसे बेहतर बना सकता है। भले कमजोर ढंग से ही सही, इमरान खान की पार्टी दुनिया को इसकी इस क्षमता को दिखाने में सफल रही।

 

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