पुलिस अधिकारियों का आर्डरली पर हर साल का खर्चा सवा सौ करोड़ !
VIP कल्चर खत्म करने में लगी सरकार, आर्डरली-बेगारी व्यवस्था को अभी शान मान रहे अधिकारी
केंद्र सरकार ने बढ़ी पहल कर मंत्रियों व अधिकारियों की गाड़ियों से लालबत्ती व हूटर हटाकर वीआईपी कल्चर को खत्म करने का प्रयास किया था, लेकिन मध्य प्रदेश के अधिकारी आज भी आर्डरली और बेगारी व्यवस्था को जीवित कर रखे हैं।
- पुलिस अधिकारियों का आर्डरली पर हर साल का खर्चा सवा सौ करोड़।
- आइपीएस अधिकारियों को दो से लेकर चार तक आर्डरली मिलते हैं।
- आइएएस अधिकारियों की सेवा में चार से पांच कर्मचारी लगते हैं।
भोपाल। केंद्र सरकार ने मंत्री, अफसरों के वाहनों की लालबत्ती और हूटर बंद कर वीआइपी कल्चर समाप्त किया था। अब मध्य प्रदेश सरकार ने मंत्रियों के वेतन-भत्ते पर आयकर भरना बंद कर वीआइपी कल्चर पर एक और प्रहार किया है। इसके बाद भी अंग्रेजों के जमाने की आर्डरली (अर्दली) और बेगारी व्यवस्था अभी अधिकारियों की शान मानी जाती है।
उधर, आइएएस अधिकारियों को आर्डरली भले ही नहीं मिलते, लेकिन बेगारी में पांच से छह कर्मचारी लगे रहते हैं। इनमें अधिकतर संविदा या आउटसोर्स के अंतर्गत नियुक्त कर्मचारी होते हैं। यही स्थित भारतीय वन सेवा (आइएफएस) के अधिकारियों की है। उनके बंगलों पर फॉरेस्टर और फॉरेस्ट गार्ड ड्यूटी बजाते मिल जाएंगे। इस तरह से कर्मचारियों से बेगारी कराने वाले अधिकारियों में आज तक किसी पर कार्रवाई नहीं हुई, इसलिए वे अधिकार की तरह कर्मचारियों से बेगारी कराते हैं।
कर्मचारी भी नौकरी जाने के डर से मुंह नहीं खोलते। पुलिस से सेवानिवृत हो चुके अधिकारियों के बंगलों पर भी विशेष सशस्त्र बल के जवान बेगारी करते मिल जाते हैं। इन जवानों से बंगलों पर कई बार ऐसे काम भी कराए जाते हैं, जो उन्हें नागवार गुजरता है। वे अंदरखाने विरोध भी करते हैं, लेकिन डर के चलते सामने नहीं आ पाते।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
आर्डरली की व्यवस्था पूरी तरह से अलोकतांत्रिक है। पुलिस बल कम होने का सीधा प्रभाव जनता पर पड़ता है। कानून व्यवस्था की स्थित बिगड़ती है। कई राज्यों ने इस व्यवस्था को खत्म भी कर दिया है। पुलिस को आर्डरली उस समय किसी उद्देश्य के लिए दिए जाते थे। अब वह आवश्यकता खत्म हो गई, पर व्यवस्था जीवित है। सेवानिवृत डीजी, पुलिस
एक आर्डरली को औसतन 60 हजार रुपये प्रतिमाह सरकार वेतन देती है। निरीक्षक से लेकर डीजी स्तर तक लगने वाले आर्डरली की संख्या जोड़ लें, तो लगभग सवा सौ करोड़ रुपये प्रतिवर्ष खर्च हो रहे हैं। इनकी जगह यदि आउटसोर्स कर्मचारी दिए जाएं या 15 हजार रुपये प्रति कर्मचारी के हिसाब से संबंधित अधिकारी को राशि दे दी जाए, तो प्रतिवर्ष लगभग सौ करोड़ रुपये बच जाएंगे। शैलेष सिंह, स्पेशल डीजी, पुलिस