बड़े नेताओं के इशारे पर छोड़नी पड़ी कुर्सी !

हालात ने बना दिया मुख्यमंत्री, बड़े नेताओं के इशारे पर छोड़नी पड़ी कुर्सी
राजनीति का यह खेल भी कमाल है! कभी कुर्सी पर कब्जा करने की होड़, तो कभी कुर्सी छोड़ने की दौड़. आज हम बात करेंगे ऐसे ही कुछ ‘त्यागी’ नेताओं की, जिन्होंने बड़े नेताओं के लिए अपनी कुर्सी छोड़ दी.

भारतीय राजनीति के खेल में कुर्सी की कहानी हमेशा से ही दिलचस्प रही है. किसी बड़े नेता के लिए मुख्यमंत्री पद का त्याग एक दिलचस्प घटनाक्रम रहा है. कई बार हालातों ने प्रमुख नेताओं को मुख्यमंत्री बना दिया और कभी किसी को बड़े नेताओं के इशारे पर कुर्सी से इस्तीफा देना पड़ा है. हाल ही में चंपई सोरेन ने जेल से जमानत पर बाहर आए हेमंत सोरेन के लिए अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी ‘त्याग’ दी.

हेमंत सोरेन ने झारखंड के 13वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. हालांकि वह सिर्फ अधिकतम 6 महीने ही सीएम रहेंगे, क्योंकि झारखंड की मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 5 जनवरी 2025 को खत्म हो रहा है.

ऐसे कई उदाहरण हैं जब किसी बड़े नेता के लिए अन्य नेताओं को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा है.

पहले जानिए झारखंड का पूरा सियासी घटनाक्रम
2019 झारखंड विधानसभा चुनाव में जीत के बाद जेएमएम मुखिया हेमंत सोरेन ने सीएम पद की शपथ ली थी. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कथित जमीन घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में उनकी गिरफ्तारी की नौबत आ गई. 31 जनवरी को जेल जाने के पहले उन्होंने ‘स्टॉप गैप अरेंजमेंट’ के तहत चंपई सोरेन को अपनी कुर्सी सौंपी थी. अब करीब 5 महीने बाद हेमेंत जमानत पर जेल से बाहर आए, तो उन्होंने छह दिनों के भीतर ही चंपई सोरेन से अपनी कुर्सी वापस मांग ली.

कहा जा रहा है कि कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने हेमंत सोरेन से फोन पर बात की थी. सोनिया ने ही हेमंत सोरेन को कहा कि क्योंकि 2019 में JMM-कांग्रेस-राजद गठबंधन ने उनके नेतृत्व में चुनाव लड़कर सत्ता पर काबिज हुए थे. इसलिए 2024 में विधानसभा चुनाव से पहले भी जनता के बीच यह संदेश जाना चाहिए कि आप ही गठबंधन का नेतृत्व कर रहे हैं.

बताया जा रहा है कि सोनिया गांधी की इसी सलाह के बाद हेमंत सोरेन ने चंपई सोरेन को हटाकर खुद CM बनने का फैसला लिया. फिर तय किए सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायकों की बैठक में उन्हें फिर से विधायक दल का नेता चुना गया.

जब जयललिता के लिए पन्नीरसेल्वम ने बार-बार छोड़ा CM पद
ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) के नेता ओ पनीरसेलवम तीन बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे हैं. दो बार खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने उन्हें सीएम कुर्सी सौंपी और फिर परिस्थितियां ठीक होने पर वापस कुर्सी वापस ले ली थी.

ओ पन्नीरसेल्वम ने साल 2001 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और पहली बार में ही विधायक बन गए थे. इतना ही नहीं, जयललिता सरकार में उन्हें राजस्व मंत्री भी बनाया गया. इसी साल सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद जयललिता को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा था. इस कारण जयललिता ने अपनी कुर्सी पन्नीरसेल्वम को सौंप दी. वे राज्य के 13वें मुख्यमंत्री बने. हालांकि 6 महीने बाद ही उपचुनाव जीतकर जयललिता फिर मुख्यमंत्री बन गईं.

साल 2014 में भी कुछ ऐसा ही वाक्या हुआ. 2011 तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में जीत के बाद जयललिता मुख्यमंत्री बनी थीं. ओ पन्नीरसेल्वम को जयललिता सरकार में वित्तमंत्री का पद मिला. 2014 में जयललिता पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और जेल जाना पड़ा. इस दौरान एक बार फिर जयललिता ने ओ पन्नीरसेल्वम को ही सत्ता संभालने का अवसर दिया. कुछ महीनों बाद जयललिता जेल से बाहर आ गईं और पन्नीरसेल्वम ने उन्हें कुर्सी सौंप दी.

हालात ने बना दिया मुख्यमंत्री, बड़े नेताओं के इशारे पर छोड़नी पड़ी कुर्सी

इसके बाद अक्टूबर 2016 में जयललिता की तबीयत काफी खराब हो गई. उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. तभी उनके करीबी होने के नाते पन्नीरसेल्वम को ही सभी मुख्य विभागों का कार्यभार सौंप दिया गया. 5 दिसंबर 2016 को जयललिता का स्वर्गवास हो गया. इसके बाद पन्नीरसेल्वम ने तीसरी बार मुख्यमंत्री का पदभार संभाला. 

जब जेल जाने से पहले लालू प्रसाद ने पत्नी पर जताया भरोसा
चारा घोटाला केस में 24 जुलाई 1997 को पटना हाईकोर्ट ने लालू प्रसाद यादव की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी. इसके बाद लालू यादव की गिरफ्तारी तय थी. उनपर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का दबाव बढ़ने लगा. रात जैसे तैसे बीत गई. 25 जुलाई की सुबह राज्यपाल एआर किदवई ने लालू से फोन करके कहा कि दोपहर तक गिरफ्तारी की पूरी संभावना है. उधर राज्य की खुफिया एजेंसियों से भी यही रिपोर्ट मिली. 

दोपहर 2.30 बजे लालू यादव ने विधायकों की बैठक बुलाई. बैठक की शुरुआत में ही लालू ने रबड़ी देवी को मुख्यमंत्री चुने जाने का ऐलान कर दिया है. सभी विधायकों को राबड़ी के नाम का समर्थन दिया. इसके बाद लालू ने राजभवन जाकर अपना इस्तीफा सौंप दिया. इस तरह रबड़ी पहली बार बिहार की मुख्यमंत्री बनीं.

इसके बाद 30 जुलाई 1997 को लालू यादव ने चारा घोटाला मामले में सरेंडर कर दिया और दिसंबर 1997 तक वह जेल में रहे. हालांकि लालू आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहे. राबड़ी एक साल 201 दिन तक मुख्यमंत्री रहीं. इसके बाद करीब एक महीने तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लग रहा. हालांकि लालू यादव फिर मुख्यमंत्री नहीं बने.

जब नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी को सौंपी कुर्सी
हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के प्रमुख जीतन राम मांझी आज केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री पद पर हैं. मई 2014 से फरवरी 2015 तक 278 दिन बिहार के सीएम भी रह चुके हैं. हालांकि, उनके मुख्यमंत्री बनने का श्रेय नीतीश कुमार को दिया जाता है. नीतीश ने 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था और खुद की जगह जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया था.

नीतीश कुमार ने बाद में एक बयान में कहा था कि जीतन राम को सीएम बनाने की वजह, उनका मुखर राजनेता न होना था. हालांकि नीतीश विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले फरवरी 2015 में सीएम के तौर पर वापस आ गए. लेकिन मांझी को हटाने में नीतीश कुमार को काफी पापड़ बेलने पड़े थे. जब जीतन मांझी को सीएम पद से हटाया गया तो उन्होंने बगावत कर दी. वह जेडीयू से अलग हो गए और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा नाम से अपनी राजनीतिक पार्टी का गठन कर दिया था.

दिल्ली में जब मदन लाल खुराना ने पद छोड़ा तो हालात ने किसे बनाया मुख्यमंत्री?
दिल्ली में अबतक सिर्फ एक बार ही भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन सकी है. मदन लाल खुराना बीजेपी के एकमात्र ऐसे नेता रहे जिनके कारण दिल्ली में भाजपा को सत्ता मिली. 1993 चुनाव के बाद कभी भी राजधानी की सत्ता में वापस नहीं आ सकी.

1993 दिल्ली विधानसभा चुनाव में मदन लाल खुराना के नेतृत्व में बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की थी. 2 दिसंबर 1993 को मदन लाल खुराना ने सीएम पद की शपथ ली. लेकिन कुछ महीनों बाद ही हवाला कांड केस में उनका नाम आ गया. इस कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और उनकी जगह तत्कालीन मंत्री साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया.  

हालांकि कुछ समय बाद हवाला कांड केस में खुराना को बरी कर दिया गया लेकिन उनको सत्ता वापस नहीं मिली. पहले दो साल 86 दिन मदन लाल खुराना मुख्यमंत्री रहे थे. इनके बाद दो साल 228 दिन साहिब सिंह वर्मा सीएम पद पर रहे और अगले चुनाव से कुछ दिन पहले सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री (52 दिन) बनाया गया. हालांकि चुनाव में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा.

ये उदाहरण दिखाते हैं कि भारतीय राजनीति में कभी हालात अचानक किसी को भी मुख्यमंत्री बना सकते हैं और कभी बड़े नेताओं के लिए मुख्यमंत्री पद छोड़ना भी पड़ सकता है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *