प्रेजेंटेशन के दौरान कैसी हो भाषा और बॉडी लैंग्वेज !
आइडिया से ज्यादा जरूरी उसे प्रेजेंट करने का स्किल
प्रेजेंटेशन के दौरान कैसी हो भाषा और बॉडी लैंग्वेज, 8 जरूरी बातें
कभी सब्जी मंडी में घूमते हुए एक छोटा-सा एक्सपेरिमेंट करके देखिए। अलग-अलग सब्जी और फलों की दुकान पर जाकर उनकी कीमत पूछिए और वहां मौजूद ग्राहकों की संख्या का मोटे तौर पर अंदाजा लगाइए।
आप पाएंगे कि जिन दुकानों पर फल और सब्जियां करीने से सजाकर रखी गई हों, वहां ज्यादा कीमत होने के बाद भी अधिक ग्राहक मौजूद हैं। दूसरी ओर, ढे़र लगाकर रखी गई फल-सब्जियां ‘खराब’ और सस्ती कैटेगरी की मानी जाती हैं।
जानते हैं, ऐसा क्यों होता है? इसका आसान जवाब है- प्रेजेंटेशन स्किल। ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ शेफील्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक किसी इंसान, आइडिया या प्रोडक्ट की कितनी पूछ होगी, यह काफी हद तक उसके प्रेजेंटेशन पर निर्भर करता है।
वैसे भी एक पुरानी कहावत है कि ‘जो दिखता है, वही बिकता है।’ बाजार में सब्जियां लेने जाएं, असाइनमेंट बनाएं, अपने दफ्तर में रिपोर्ट प्रेजेंट करना हो या किसी के सामने अपने दिल की बातें कहने वाले हों, इन सभी स्थितियों में अट्रैक्टिव प्रेजेंटेशन बहुत जरूरी माना जाता है।
आज वर्कप्लेस रिलेशनशिप में प्रेजेंटेशन स्किल को सुधारने के कुछ टिप्स जानेंगे। जिसकी मदद से खुद को, अपने आइडिया और प्रोडक्ट को बेहतर तरीके से दुनिया के सामने रखा जा सकता है।
प्रेजेंटेशन के बिना नॉलेज, स्किल और अनुभव किसी काम के नहीं
एक ऐसे शख्स की कल्पना करिए, जो अपने काम में काफी अनुभव रखता है। उसके पास काम की जानकारी भी अच्छी है। लेकिन उसका प्रेजेंटेशन स्किल ठीक नहीं।
ऐसे में वह दफ्तर की मीटिंग में अपने आइडिया को मैनेजर के सामने ठीक से प्रस्तुत नहीं कर पाएगा। जबकि उसका कोई कम अनुभव रखने वाला जूनियर अपने प्रेजेंटेशन स्किल के दम पर साधारण से आइडिया को मजबूत ढंग से मैनेजर को समझा पाएगा और इस बात की पूरी संभावना होगी कि दफ्तर में लोगों को उसका आइडिया पसंद भी आए। यहां सारा खेल प्रेजेंटेशन का है।
इसे एक और उदाहरण से समझिए। आप अपने आसपास कई ऐसे तेज स्टूडेंट्स को जानते होंगे, जो खराब हैंड राइटिंग की वजह से परीक्षा में पीछे रह जाते हैं। जबकि कुछ सामान्य छात्र अच्छी हैंड राइटिंग और प्रेजेंटेशन स्किल की मदद से अच्छे अंक पा जाते हैं।
यहां भी सारा माजरा प्रेजेंटेशन स्किल का है, जिसकी कमी की वजह से नॉलेज, अनुभव और बाकी स्किल किसी काम के नहीं रह जाते।
टारगेट ऑडियंस की पहचान और सही मीडियम का चुनाव जरूरी
अगर आप अपनी प्रेजेंटेशन स्किल बेहतर करना चाहते हैं तो सबसे पहले अपना लक्ष्य निर्धारित करें। मसलन, किसी दोस्त के सामने प्यार का इजहार करना है या बॉस के सामने प्रोजेक्ट रिपोर्ट देनी है या फिर किसी पार्टी में लोगों के बीच कुछ बोलना है। फिर उसी के मुताबिक आगे की प्लानिंग करें।
प्रेजेंटेशन स्किल सुधारने में दूसरी सबसे अहम बात सही माध्यम का चुनाव है। उदाहरण के लिए पीपीटी के माध्यम से लिखा गया प्रेम पत्र और कोरे कागज पर बनाई गई प्रोजेक्ट रिपोर्ट, दोनों ही खराब प्रेजेंटेशन माने जाएंगे। उपयुक्त माध्यम की मदद से किया गया प्रेजेंटेशन ही बेहतर माना जाता है।
मीडियम भी है मैसेज, खत देखकर मजमून भांप लेते हैं लोग
जाने-माने कैनेडियन कम्युनिकेशन एक्सपर्ट मार्शल मैक्लुहन का मशहूर कथन है- ‘मीडियम इज द मैसेज’ यानी माध्यम ही मैसेज है।
मार्शल मैक्लुहन के मुताबिक अगर हम किसी को चिट्ठी लिखते हैं तो उसका लिफाफा भी अपने आप में एक मैसेज है। इसी तरह इंटरनेट, पीपीटी, चैट और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग मीडियम के साथ-साथ मैसेज भी हैं।
अगर हम किसी को खत लिखते हैं तो वह शब्द से पहले उस मीडियम यानी लिफाफे को पढ़ेगा। इस बात को समझते हुए, जिसके सामने खुद को प्रेजेंट करना हो, उसके लिए मुफीद मीडियम का चुनाव करें।
प्रेजेंटेशन सिर्फ मैसेज की डिलीवरी नहीं, इमोशनल बॉन्डिंग जरूरी
किसी भी तरह के प्रेजेंटेशन में इस बात का ध्यान रखें कि वह सिर्फ मैसेज की डिलीवरी नहीं है। अगर सिर्फ मैसेज की डिलीवरी हुई तो वह प्रेजेंटेशन कहा भी नहीं जाएगा।
प्रेजेंटेशन का मतलब है कि साधारण सी सूचना को भी कलात्मक और रोचक ढंग से प्रस्तुत किया जाए। इसके लिए अपने ऑडियंस के साथ इमोशनली कनेक्ट होना जरूरी है।
प्रेजेंटेशन की किसी भी स्थिति में ऑडियंस को यह न लगे कि कहीं और की बात की जा रही है। जिसके लिए प्रेजेंटेशन तैयार किया गया है, उन्हें हर कदम पर इस बात का एहसास होना चाहिए। ऑडियंस मैसेज के साथ जितना ज्यादा कनेक्ट कर पाएंगे, प्रेजेंटेशन उतना ही बेहतर माना जाएगा।
जुबान और बॉडी का तालमेल जरूरी, ये एक-दूसरे के पूरक हों
मान लीजिए, कोई शख्स अपने दफ्तर में वर्किंग रिपोर्ट पेश कर रहा है। ग्रोथ की बात करने के दौरान वह अपने हाथ को ऊपर से नीचे की ओर घुमाए तो इस स्थिति में जुबान और बॉडी लैंग्वेज अलग-अलग कहानी कह रही होती हैं। यह आदत प्रेजेंटेशन को बिगाड़ सकती है।
यूनिवर्सिटी ऑफ शेफील्ड की रिपोर्ट के मुताबिक प्रेजेंटेशन के दौरान कहे हुए शब्द और बॉडी लैंग्वेज में सही तालमेल जरूरी है। उदाहरण के लिए जब ग्रोथ की बात कर रहे हों तो चेहरे पर भी वह ग्रोथ झलकनी चाहिए। इसी तरह अगर किसी की तारीफ कर रहे हों तो आंखों में आंखें डालना और चेहरे से इमोशन दिखाना भी जरूरी हो जाता है।
कम शब्दों में ज्यादा कहने की कोशिश करें, नए आइडियाज चुनें
जरूरी नहीं कि आधे घंटे में कही गई कोई बात 15 मिनट में कही गई बात से ज्यादा असरदार साबित हो। प्रेजेंटेशन जितना छोटा और ‘टू द पॉइंट’ होगा, उसके असरदार होने की संभावना उतनी अधिक होगी। ज्यादा लंबी बात या स्लाइड ऑडियंस को डिस्कनेक्ट कर सकती है।