वक्फ बोर्ड में संशोधन की जरुरत !

वक्फ बोर्ड में संशोधन की जरुरत, सवाल और धर्म के नाम पर चमकायी जा रही सियासत

कुछ इसी तरह के रिएक्शन इंडिया गठबंधन की सहयोगी समाजवादी पार्टी के रहे. समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कहा कि ये बिल सोची समझी राजनीति के तहत लाया जा रहा है. उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि वक्फ बोर्ड में आखिर गैर मुस्लिम को शामिल करने का क्या औचित्य है. चंद कट्टर समर्थकों के समर्थन के लिए ये बिल लाया जा रहा है.  

कांग्रेस नेता इमरान मसूद ने जहां इसे वक्फ के खिलाफ एक बड़ी साजिश करार दिया, तो वहीं शरद पवार वाली एनसीपी का कहना है कि इस बिल को वापस लिया जाना चाहिए. सांसद और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने लोकसभा में इस बिल पर चर्चा के दौरान कहा कि इसे कम से कम स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजा जाना चाहिए. उन्होंने सवाल किया कि सरकार इस बिल पर इतनी जल्दबाजी में क्यों है और जब कोई ट्रिब्यूनल के खिलाफ कोर्ट जाएगा तो फिर उसका क्या महत्व रह जाएगा. फिलहाल, सरकार ने इस बिल को जेपीसी के पास भेज दिया है. 

वक्फ पर संशोधन की जरुरत या सियासत
सुप्रिया सुले ने ये सवाल किया कि डीएम को इतना अधिकार नए बिल में दिया जा रहा है, एकतरफा फैसला कलेक्टर कैसे ले सकता है. सेक्शन 40 क्यों डिलीट किया गया और उन्होंने आरोप लगाया कि बिल की कॉपी उन्हें पार्लियामेंट से नहीं बल्कि मीडिया से मिली. हालांकि, उनके इस आरोप को लोकसभा स्पीकर ओम बिरल ने खारिज कर दिया.     

 दरअसल, इन सभी चीजों पर गौर करने के बाद सवाल उठता है कि आखिर वक्फ बोर्ड है क्या, कब-कब इसमें संशोधन हुआ और क्यों इसकी जरूरत पड़ी. हालांकि, राजनीति के जानकार और आईआईएमसी के प्रोफेसर शिवाजी सरकार इस बारे में बताते हैं कि संशोधन वक्फ बोर्ड में कोई नहीं बात नहीं है, पहले भी संशोधन हुए हैं. उनका कहना है कि धर्म के नाम पर सियासत राजनेता न करें ये कैसे हो सकता है. लेकिन, ये सुधार की दिशा में एक बड़ा लॉ है क्योंकि डिफेंस और रेलवे के बाद देश में अगर किसी के पास सबसे ज्यादा जमीन है तो वो वक्फ ही है.

वक्फ पर इससे आगे बढ़ने से पहले ये यहां पर जानना जरूरी है कि आखिर वक्फ क्या है और इसको कब क्या अधिकार दिए गए. वक्फ का मतलब है अल्लाह के नाम, यानी ऐसी संपत्ति जो किसी संस्था या व्यक्ति के नाम नहीं है. इसका गठन 1954 में हुआ. वक्फ बोर्ड में एक सर्वेयर होता है जो तय करता है कि कौन सी संपत्ति वक्फ की है और कौन सी नही है. देश में 30 वक्फ बोर्ड हैं और करीबन 9.4 लाख एकड़ जमीन वक्फ के पास है. ये देश में रेलवे और सेना के बाद सबसे अधिक जमीन रखने वाली संस्था है. वक्फ के ऊपर जमीनों पर अवैध रूप से कब्जा करने, अतिक्रमण औऱ भ्रष्टाचार का भी आरोप है. यहां तक कि केंद्रीय मंत्री रिजिजू ने तो चर्चा के दौरान यह भी कहा कि वक्फ पर माफिया का कब्जा हो गया है. 

इसका उद्देश्य ये भी था कि वक्फ के जरिए मुस्लिम समाज की जमीनों पर नियंत्रण रखा जाए ताकि इन जमीनों के गैरकानूनी ढंग से बेचने या उसके बेजा इस्तेमाल पर रोक लगाई जा सके. वक्फ बोर्ड मुसलमानों के हित में कई काम करता है.  

क्यों उठ रहे सवाल

दरअसल, वक्फ बोर्ड में पीवी नरसिम्हा राव सरकार के दौरान संशोधन किया गया. देशभर में वक्फ बोर्ड की तरफ से जहां भी घेरेबंदी कराया जाता है, उसके आसपान की जमीन भी अपनी प्रॉपर्टी करार देता है. इनमें आसपास की जमीनों और मजारों पर वक्फ का कब्जा हो जाता है. 

1995 में नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान वक्फ बोर्ड में जो संशोधन किया गया, उसमें इसे असीमित अधिकार दे दिए गए. उसके बाद अगर वक्फ बोर्ड को लगता है कि कोई जमीन उसकी है तो उस संपत्ति के मालिक को ये साबित करना होगा कि ये उसकी है, वक्फ को ये साबित करने की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी. हालांकि, इस कानून में ये जरूर कहा गया कि किसी निजी संपत्ति पर वक्फ बोर्ड अपना दावा नहीं कर सकता, लेकिन कई लोगों के पास पुख्ता प्रॉपर्टी के पेपर्स नहीं होते हैं, ऐसे में वक्फ की तरफ से इसका फायदा उठाने का आरोप लगाया जाता है.

2013 में वक्फ में मनमोहन सिंह सरकार के दौरान फिर से संशोधन किया गया. वक्त के अधिकारों पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि वक्फ ने आपकी किसी प्रोपर्टी को अपनी बताई तो ये आपको साबित करना होगा कि वो वक्फ की नहीं बल्कि आपकी है. इस फैसले के खिलाफ आपको किसी कोर्ट में नहीं बल्कि वक्फ बोर्ड से ही गुहार लगानी पड़ेगी. अगर ये फैसला आपके पक्ष में नहीं आया उस परिस्थिति में भी आप कोर्ट का रुख नहीं कर सकते बल्कि ट्राइब्यूनल में जा सकते हैं. ट्राइब्यूनल का फैसला भी अगर आपके हक में नहीं रहा तो उसके खिलाफ आप न किसी हाईकोर्ट जा सकते हैं और न सुप्रीम कोर्ट. ऐसा अनुमान है कि देश में इस वक्त जो 30 वक्फ बोर्ड है, उससे सालाना करीब 200 करोड़ का राजस्व हासिल होता है.

समर्थन में दलील

वक्फ बोर्ड के संशोधन में जो दलील जेडीयू की तरफ से दी गयी, उसमें कहा गया है कि मुसलमानों में भ्रम फैलाने की कोशिश की जा रही है. जेडीयू सांसद ललन सिंह ने कहा कि संस्था को पारदर्शी बनाने के लिए कानून लाया जा रहा है. अगर कोई संस्था निरंकुश हो जाए तो पारदर्शिता लाने के लिए सरकार को कानून लाने का हक है. उन्होंने सवाल किया कि इस देश में हजारों पंजाब सिखों को मारने का काम किसने किया? हजारों सिख समुदाय, जो टैक्सी ड्राइवर था, उसने कौन से किसकी हत्या की थी? इस बिल को आना चाहिए, पारदर्शिता होनी चाहिए. विपक्ष बिल पर भ्रम फैला रहा है.

दूसरी तरफ, संसदीय कार्य और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि वक्फ पर बिल से संविधान का उल्लंघन नहीं हुआ बल्कि वक्फ एक्ट में पहले भी बदलाव हो चुका है. उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड को कुछ लोगों ने कब्जा कर रखा है, ये बिल धार्मिक आजादी के खिलाफ नहीं है. वक्फ बिल किसी के अधिकारों पर चोट करने के लिए नहीं लाया गया बल्कि ये न्याय के लिए लाया गया. 

उन्होंने कहा कि जिन्हें हक नहीं मिलता, उन्हें हक देने का बिल ला गया, कोई लॉ देश में सुपर लॉ नहीं हो सकता है. रिजिजू ने कहा कि किसी धार्मिक संस्था में हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं बल्कि जो कांग्रेस नहीं कर पायी वो हम कर रहे हैं और आज गलतियों को सुधारने का वक्त है.

जाहिर तौर पर वक्फ में ये कोई पहला बदलाव नहीं है बल्कि इससे पहले भी बदलाव हुए हैं. ऐसे में धार्मिक मामलों की जब बात हो तो राजनीतिक दलों की तरफ से इस पर सियासत न हो या ऐसी मंशा न हो इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है. बहरहाल, नेक नीयत से कोई काम होता है तो हमेशा उसके नतीजे अच्छे होते हैं.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि  … न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *