बंगाल में खत्म हो चुका है सरकार का इकबाल ?

बंगाल में खत्म हो चुका है सरकार का इकबाल, पर राष्ट्रपति शासन लगाना नहीं एकमात्र उपाय

भारत का पश्चिम बंगाल अपनी बौद्धिकता के लिए जाना जाता है. पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता है, और वहां का एक मेडिकल कॉलेज आज के समय में सुर्खियों में हैं. एक महिला चिकित्सक इंटर्न की दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गयी. इस घटना के बाद देश भर के चिकित्सकों में प्रतिरोध हैं. कई जगहों पर मार्च निकाले गए. इसी बीच में कुछ गुंडों ने वहां कॉलेज और सड़कों पर आकर तोड़फोड़ किया है.

इसके बाद पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी का एक बयान आया, जिसमें उन्होंने  ये कहा कि इस घटना को अंजाम राम और वाम ने दिया है. एक बार फिर से देखा गया कि ममता बनर्जी ने इस का आरोप दूसरों पर लगाया है. चाहें वो मुर्शिदाबाद का मामला हो या फिर संदेशखाली का, वह लगातार दूसरों पर ऊंगली उठाती रही हैं. अब ये मांग उठने लगी है कि वहां की सीएम ममता बनर्जी को अपने सीएम पद से त्याग पत्र दे देना चाहिए या फिर केंद्र सरकार को वहां पर संविधान का धारा 356 का इस्तेमाल करना चाहिए.

सरकार ने की घटना छिपाने की कोशिश

कोलकाता में जो घटना घटी है वो वास्तव में ही दरिंदगी है और मानवता को शर्मसार करने वाला है. अक्सर कोई घटना होती है तो संबंधित राज्य दूसरे राज्यों में हुई घटनाओं का आंकड़ा सामने लाने लगते हैं, उसी प्रकार से ही इस घटना को भी देखा जाना चाहिए, लेकिन घटना की जिम्मेदारी ना लेके दूसरे राज्यों के मामला को दिखाना यहीं कहीं से भी सही नहीं है. इस घटना में राज्य की सीएम, पुलिस और प्रशासन का जिस प्रकार का रवैया रहा है, वो काफी निंदनीय और शर्मसार करने वाला रहा है.

इस घटना के बाद इसको छिपाने या फिर बचाने का काम प्रशासन के द्वारा किया गया. घटना के बाद परिवार वालों को घटना के बारे में ना बताकर दूसरी बातें बताई गई, जिससे ये बात तो सामने आई कि इसके पीछे या तो अस्पताल का प्रशासन है या फिर किसी का समर्थन में ऐसा किया गया है. पूरा घटनाक्रम देखा जाए तो कहीं ना कहीं इस को दबाने की कोशिश की गई.  इस तरह की बात हाईकोर्ट की टिप्पणी में भी यही बात सामने आई है.  

धारा 356 का इस्तेमाल 

जब राज्य की सीएम खुद एक महिला है, और महिला के होते हुए ऐसी घटना होती है तो मामला बहुत दुखद हो जाता है. ममता बनर्जी ये खुद कहती रहती हैं कि उनकी पार्टी की महिला सांसदों को लोगों ने जिताया है, जिनकी संख्या अच्छी-खासी है. टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा भी इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं, अभी तक कुछ नहीं बोली हैं. अभी तक चुप्पी रखना बड़ा प्रश्न खड़ा करता है. इस घटना का सिर्फ कोलकाता में ही नहीं बल्कि बंगाल के कई जिलों के साथ देश के भी कई कोनों में इसका विरोध होना शुरू हो गया है. ये केस टीएमसी की सरकार के लिए काफी परेशान करने वाला होगा.

ममता बनर्जी की सरकार के लिए ये एक काला धब्बा होगा जिसको मिटाना आसान नहीं होगा, जिस प्रकार से निर्भया का जिक्र बार-बार होता रहता है. जहां तक ये मांग उठाई जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में धारा 356 लगा दी जाए, हालांकि मेरी नजर में ये एक राजनीतिक कदम होगा क्योंकि अगर ऐसा होता है तो यूपी में हुए दुष्कर्म की घटना और दो दिन पहले हुए बिहार के मुजफ्फरपुर की घटना को भी देखना होगा. वहां इसके लिए क्यों मांग नहीं की गई. हालांकि, देश में एक ऐसी मानसिकता वाले लोगों की वर्ग तैयार हो गई है, जिनके दिमाग में ऐसी बातें चलते रहती है. इस बात का जिक्र खुद पीएम मोदी भी लाल किला से कर चुके हैं.  

समाज में  बीमारी

देश की समस्या ये हैं कि यहां जब बात करने की हो तो महिला सुरक्षा और उसके पढ़ाई की बात सब करते हैं, लेकिन वास्तविकता में ये बात समाज में नहीं पहुंच पा रही है और ये काम नहीं हो रहा हैं. समाज में प्रैक्टिकल रूप में नहीं हो पा रहा है और लोगों के जेहन में ये बात नहीं जा पा रही हैं. समाज में ये किस तरह से फैल रहा है, इस पर रोक कैसे लगाई जा सकेगी इसके बारे में तो कोई विश्लेषक या फिर मनोवैज्ञानिक चिकित्सक ही कर सकता है.

समाज इस तरह की मानसिकता से बीमार है, और इसका इलाज जरूरी है. बंगाल की तरह ही बिहार में भी घटना हुई लेकिन वहां की चर्चा नहीं की जा रही है. बंगाल के लोग सांस्कृतिक और बौद्धिक रूप से जागरूक हैं, इसलिए वहां पर प्रतिबंध और धारा 356 लगाने की बात हो रही है.  

हाईकोर्ट तक ने माना, बढ़ी है हिंसा 

पश्चिम बंगाल की घटना को लेकर बात की जा रही है कि पंचायत चुनाव से लेकर कई मामलों में हिंसा बढ़ गई हैं तो ये एक पॉलिटिकल कदम हो सकता है क्योंकि हर राज्यों में ऐसी घटनाएं होती रही है. पश्चिम बंगाल में लगातार घटनाएं बढ़ रही है, ये सच है. हाईकोर्ट ने भी कहा है कि पंचायत के चुनाव में हिंसा काफी हुई हैं. टीएमसी के लोग भी इस बात को मानते हैं कि हिंसा में इजाफा हुआ है. जहां तक मेडिकल कॉलेज की घटना की बात हैं इसमें तो टीएमसी ही दो फांक में दिख रही हैं. अभिषेक बनर्जी के ट्वीट हैं कि इस मामले को क्यों छोड़ दिया गया तो पार्टी के अंदर के कुछ लोगों की अलग राय है.

इस कारण कई लोगों को शांत करा दिया गया है, और कुछ ना बोलने की सलाह दे दी गई है, जहां तक राष्ट्रपति शासन लगाने की बात है तो वहां के राज्यपाल केंद्र को क्या रिपोर्ट करते हैं ये देखना होगा, और केंद्र की सरकार क्या डिसिजन लेती है ये देखना होगा. सवाल ये हैं कि केंद्र के शासन लगा देने से क्या होगा, क्या ऐसी घटनाएं रुक जाएंगी? जम्मू कश्मीर भी भारत का केंद्र शासित प्रदेश हैं, वहां पर पिछले 67 दिनों में 17 आतंकी हमले हुए और करीब एक दर्जन से अधिक सेना के जवान मारे गए.  अगर बंगाल में राष्ट्रपति शासन या केंद्र द्वारा शासित राज्य किया जाता है तो फिर तुलना की जाएगी और फिर ये बात राजनीतिक होगी. बंगाल के लोग इसके लिए कितना तैयार हैं, ये भी देखना होगा.

ममता को देना होगा जवाब 

चुनाव में महिलाओं का एक बड़ा वर्ग है. यही हाल सरकार में भी महिलाओं का एक वर्ग सरकार में है और सरकार के साथ हैं. मुसलमानों का भी ममता बनर्जी को काफी समर्थन है, इसलिए राष्ट्रपति शासन लगाना एक इसका रास्ता नहीं हैं. इसकी जांच स्वतंत्र रूप से की जानी चाहिए. सबूत मिटाने के लिए एक बार में इतने लोग एकत्रित हो गए,  वो कौन लोग थे, क्या पुलिस उनको नहीं पहचानती है. इन प्रश्नों का उत्तर आना बेहद ही जरूरी है. क्योंकि, अगर ये सिर्फ पश्चिम बंगाल में होता है , तो फिर कई राज्यों से ऐसी मांग हो सकती हैं.

ये मामला फिर कई राज्यों में आने के बाद दिक्कत हो सकता है. भाजपा शासित राज्यों में भी ऐसी घटनाएं होती रहती है, लेकिन बीजेपी मैनेज करने में या फिर घटनाओं को दबाने में सक्षम रहती है. 2026 में बंगाल में चुनाव होना है, तो फिर इतने से समय के लिए शासन लगाना भी ठीक नहीं होगा, और अब कोलकाता वाले मामले में टीएमसी अब फंस चुकी है, उसको इससे बाहर आने के लिए रास्ता निकालना होगा. स्वास्थ्य और गृह मंत्रालय खुद सीएम के पास है यानी कि राज्य की पुलिस और राज्य का पूरा स्वास्थ्य, दोनों का जिम्मा उनके पास है इसके साथ ही वो सीएम भी हैं और एक महिला भी हैं. इसलिए इस मुद्दे पर उनको जवाब देना होगा.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि …न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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