गणपति पूजा से इफ़्तार पार्टी तक राजनीतिक द्वंद्व

गणपति पूजा से इफ़्तार पार्टी तक राजनीतिक द्वंद्व …

ये विवादों का देश है। फिलहाल देश में गणेश उत्सव चल रहा है और विवाद भी गणपति पूजा को लेकर ही शुरू हो गया है। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाराष्ट्रियन पोशाक पहनकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ( सीजेआई) चंद्रचूड़ के घर चले गए थे। वहाँ उन्होंने गणपति पूजा भी की। प्रधानमंत्री ने गणपति की आरती उतारी और गाई सीजेआई ने। विपक्ष ने इस पर हंगामा कर दिया।

विपक्ष का कहना है कि राजनीति और न्यायिक व्यवस्था दोनों में एक मर्यादा होती है। एक लक्ष्मण रेखा होती है। इसका पालन होना ही चाहिए। अगर मुख्य न्यायाधीश ने प्रधानमंत्री को गणपति पूजा का आमंत्रण दिया भी था तो इसकी वीडियोग्राफ़ी करने की क्या ज़रूरत थी? या प्रचार की आवश्यकता क्यों पड़ी?

जवाब में भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि कांग्रेस के सत्ताकाल में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इफ़्तार पार्टी दी थी और उसमें तब के मुख्य न्यायाधीश शामिल हुए थे तब कांग्रेस और बाक़ी पार्टियों ने ऐतराज क्यों नहीं किया? सवाल यह है कि इफ़्तार पार्टी हो या गणपति पूजा, कोई भी किसी के कार्यक्रम या उसके आमंत्रण पर कहीं भी जा सकता है।

पीएम मोदी 11 सितंबर को CJI चंद्रचूड़ के घर गणेश पूजन में गए थे।
पीएम मोदी 11 सितंबर को CJI चंद्रचूड़ के घर गणेश पूजन में गए थे।

इसमें ऐतराज कैसा? आख़िर किसी सीजेआई या किसी प्रधानमंत्री की निजी और सामाजिक ज़िंदगी है या नहीं? फिर किसी प्रधानमंत्री के किसी सीजेआई के घर पूजा करने जाने से क्या सीजेआई के फ़ैसलों पर असर पड़ सकता है? नहीं। हमारी संवैधानिक संस्थाएँ इतनी भी कमजोर नहीं हैं कि किसी के किसी के घर जाने से प्रभावित हो जाएं!

वे कश्मीर वाले फारुख अब्दुल्ला भी प्रधानमंत्री के सीजेआई के घर जाने की निंदा कर रहे हैं, जिन्होंने कश्मीर में अपना राज रहते हुए किसी कानून, किसी संवैधानिक संस्था की परवाह नहीं की। वे उद्धव ठाकरे जिनकी पार्टी सालों तक भाजपा के साथ रही, वे भी कह रहे हैं कि सीजेआई चंद्रचूड़ को हमसे जुड़े हुए न्यायिक मामलों से खुद को अलग कर लेना चाहिए!

आख़िर ये कैसी बहस है? ये कैसा दौर है जहां मुख्य न्यायाधीश के फ़ैसलों, उनकी शिद्दत और ईमानदारी पर शक किया जा रहा है! सिर्फ़ इसलिए कि देश के प्रधानमंत्री ने उनके घर जाकर गणपति पूजा में हिस्सा ले लिया?

सही है, राजनीति में और न्यायिक तंत्र में एक मर्यादा और एक लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए, लेकिन इसके लिए किसी सीजेआई या किसी प्रधानमंत्री की धार्मिक भावनाओं को हाशिए पर कैसे डाला जा सकता है?

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