अगर गम्भीरता से सोचें तो हर समस्या का समाधान है

अगर गम्भीरता से सोचें तो हर समस्या का समाधान है

मु्द्दा 1 : 2023 में हिमाचल के कई इलाकों में भारी बारिश हुई। वहीं मौजूदा साल में सूखे से किसानों को सिंचाई में दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। इस उतार-चढ़ाव भरे मौसम से सेब के कई किसानों की उपज 2020 के मुकाबले 50 से 75% तक घट गई, जिससे उनकी नियमित आय प्रभावित हो रही है। पर हिमाचल के करसोग की रहने वाली 30 वर्षीय अपराजिता बंसल (तीसरी पीढ़ी की किसान) ने ‘फल-फूल’ नाम से ऑनलाइन कंपनी शुरू की और सीधे देशभर में उपज बेची।

उन्होंने कम दाम देने वाली मंडियों तक जाने के बजाय सीधे ग्राहकों तक पहुंचने का फैसला किया। वे माता-पिता को सीधे सेब बेचने में मदद करने के लिए चार सालों से ऑनलाइन बाजार बिक्री प्रक्रिया पर काम कर रही हैं।

सिर्फ अपराजिता ही नहीं, हिमाचल के कई छात्र हैं, जो उच्च शिक्षा के लिए बाहर गए थे, अब फार्म पर लौट रहे हैं ताकि बिचौलियों पर निर्भर रहने के बजाय देशभर के उपभोक्ताओं तक पहुंचने के लिए ऑनलाइन स्टोर बनाएं। लेकिन इनमें से कई विक्रेता आज पैकेजिंग-लॉजिस्टिक समस्याएं झेल रहे हैं, क्योंकि भारतीय पैकेजिंग व डिलीवरी सिस्टम इतना परिपक्व नहीं कि महंगे व जल्दी खराब होने वाले सामान का सुरक्षित परिवहन करेे। हालांकि मुझे यकीन है, मिलेनियल्स या जेन-ज़ी में से कोई जल्द ही टिकाऊ डिलीवरी तंत्र लाएगा, ताकि फल ग्राहकों तक अच्छी स्थिति में पहुंचा सकें।

मुद्दा 2 : यदि इस साल हिमाचल को कीमत संबंधी दिक्कतें झेलनी पड़ीं तो तमिलनाडु में 15 वर्षों से एक अलग ही मुद्दा था- कीटनाशक तक पहुंच रखने वाले किसानों की बड़ी संख्या में आत्महत्या। उन्होंने 2010 से 2019 के बीच एक प्रयोग किया था- कीटनाशकों के लिए लॉकर प्रणाली! बिल्कुल बैंक लॉकर की तरह जहां खोलने के लिए दो चाबियां लगती हैं।

कीटनाशकों तक पहुंचने के लिए भी हर किसान को अपनी चाबी लेनी होती है और दूसरी कम्युनिटी द्वारा नियुक्त प्रबंधक के पास होती है। बैंकिंग-ऑवर्स की तरह कीटनाशकों के लिए लॉकरों तक केवल तय समय में पहुंचा जा सकता है।

मनोचिकित्सक डॉ. लक्ष्मी विजयकुमार ने कीटनाशकों से संबंधित किसानों की आत्महत्याओं से निपटने के लिए तमिलनाडु की अपनी तरह की पहली केंद्रीकृत ‘लॉकर प्रणाली’ शुरू की। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2010 में इस प्रयोग का समर्थन किया और एक साल के भीतर आत्महत्याओं व आत्महत्याओं के प्रयास की दर हर एक लाख में 33 से घटकर 5 हो गई। 2019 के अंत तक, गांवों को कीटनाशक-आत्महत्या-मुक्त के रूप में मान्यता दी गई।

मुद्दा 3 : पिछले दशक में, गंगा की सहायक नदी सई के जलप्रवाह में अपना योगदान देने वाली ‘सकरनी’ नामक एक छोटी नदी के किनारों पर किसानों ने बड़े पैमाने पर अतिक्रमण कर लिया था। कई ने अपनी खेती नदी के किनारे तक फैला दी थी। नतीजतन, नदी ने रास्ता बदल लिया और कुछ हिस्सों में उथली हो गई।

यूपी के प्रतापगढ़ के तीन ब्लॉकों के 20 गांवों के 30 हजार से अधिक लोगों ने 27.7 किमी लंबे इस रास्ते को ठीक करने के लिए 10 महीने से अधिक मेहनत की, और अब वह अपने प्राकृतिक रास्ते पर बह रही है। पर्यावरण-सेना नामक एक गैर-सरकारी संगठन के प्रमुख और एक स्थानीय हरित-कार्यकर्ता अजय क्रांतिकारी ने नदी को उसके प्राकृतिक रास्ते पर लाने के अभियान का नेतृत्व किया और सबसे पहले जिला पर्यावरण समिति के समक्ष यह मुद्दा उठाया।

समस्याओं का समाधान खोजने की मानसिकता होना इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है कि समाधान कौन खोजता है।

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