महिलाओं को नकद ट्रांसफर स्कीम्स से फायदा मिल रहा है !

महिलाओं को नकद ट्रांसफर स्कीम्स से फायदा मिल रहा है

भारत की श्रम-शक्ति में महिलाओं की भागीदारी दर सिर्फ 28% है। भारत में हर तीन में से एक युवा शिक्षा, रोजगार या प्रशिक्षण संबंधी किसी गतिविधि में सम्मिलित नहीं है और इसमें भी 95% महिलाएं हैं। प्रबंधकीय पदों पर हर पांच पुरुषों पर एक महिला है।

ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2023 में भारत 146 देशों में 127वें स्थान पर है। नीति आयोग के एक सर्वेक्षण के अनुसार 18 से 49 वर्ष की दस में से तीन महिलाओं ने अपने पति की हिंसा सही है। चुनावी घोषणा-पत्रों, संसदीय भाषणों या आंतरिक प्रस्तावों में, हर दल आपको बताएगा कि महिलाओं को ‘आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाने की आवश्यकता है।’ कहना आसान है, करना मुश्किल। चुनौती यह है कि जब महिलाएं श्रम-शक्ति के दायरे से बाहर हैं, तो उन्हें आर्थिक आजादी कैसे देंगे? यहीं पर प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) का परिदृश्य में प्रवेश होता है।

डीबीटी से मिलने वाली आय का अधिकांश हिस्सा महिला अपने विवेक से खर्च करती है। इन योजनाओं के माध्यम से कम आय वाले परिवारों को लक्षित करना विशेष रूप से फायदेमंद है, क्योंकि ये परिवार आय का बड़ा हिस्सा भोजन व ईंधन जैसी बुनियादी आवश्यकताओं पर खर्च करते हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे निचले स्तर पर मौजूद 20% परिवार अपनी आय का 53% भोजन पर खर्च करते हैं, जबकि इसी वर्ग के शहरी परिवार 49% खर्च करते हैं। उच्च-खपत के इन पैटर्न को देखते हुए, डीबीटी के माध्यम से दिया गया अधिकांश पैसा वापस अर्थव्यवस्था में चला जाता है। लेकिन अगर डीबीटी की राजनीति की बात करें तो यह इतनी स्पष्ट नहीं है।

इस योजना से चुनाव जीतने की गारंटी नहीं मिलती। जनवरी 2020 में शुरू की गई वाईएसआरसीपी की जगन्नाना अम्मावोडी योजना इस साल के लोकसभा चुनाव में आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी के लिए जादू नहीं कर पाई। लेकिन तेलंगाना में कहानी अलग थी। केसीआर की बीआरएस को इस बात का अफसोस हो रहा होगा कि उनके पास ऐसी कोई डीबीटी योजना नहीं थी।

कांग्रेस की महालक्ष्मी योजना- जो उसके अपने कर्नाटक (गृह लक्ष्मी) मॉडल से प्रेरित थी- को 2023 में तेलंगाना विधानसभा में बड़ी जीत के बाद बहुत जोर-शोर से पेश किया गया था, और उसने 18वीं लोकसभा में भरपूर चुनावी लाभ दिया।

महाराष्ट्र में सरकार ने इस साल जून में बजट के दौरान लड़की बहन योजना की घोषणा की। पहली किश्त अगस्त में महिलाओं के बैंक खातों में पहुंच गई। दूसरी किश्त अक्टूबर के मध्य में लाभार्थियों तक पहुंचने की संभावना है। क्या यही कारण है कि हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के साथ महाराष्ट्र के चुनावों की घोषणा नहीं की गई? क्या लड़की बहन योजना एनडीए सरकार को बचाने के लिए काफी होगी?

महाराष्ट्र के अलावा, असम और मध्य प्रदेश जैसे एनडीए-राज्य भी ऐसी ही योजनाएं चलाते हैं। वहीं इस तरह के विपक्षी राज्यों में तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब शामिल हैं। बंगाल में भी लक्ष्मी भंडार योजना है।

अमर्त्य सेन के प्रतीची ट्रस्ट ने कहा है कि नकद प्रोत्साहनों ने महिलाओं की आर्थिक निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाया है और परिवार में उनकी स्थिति में सुधार किया है। अध्ययन में कहा गया है कि पांच में से चार महिलाएं अपनी इच्छा से पैसे खर्च करती हैं और दस में से एक पति से बातचीत करने के बाद पैसे खर्च करने का तरीका तय करती है। महिलाओं ने खुद बताया कि परिवार में उनकी स्थिति में सुधार हुआ है।

ये सभी योजनाएं पूरी तरह से राज्यों द्वारा प्रायोजित हैं। फिर केंद्र सरकार के अधीन भी 53 मंत्रालय हैं, जो 315 डीबीटी योजनाएं चलाते हैं। इनमें से 13 महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से संबंधित हैं। लेकिन योजनाओं को लागू करने में मंत्रालय का रिकॉर्ड बहुत खराब है और डीबीटी प्रदर्शन रैंकिंग में वह 53 मंत्रालयों में से 31वें स्थान पर है।

दिलचस्प बात यह है कि ऐसी कोई केंद्रीय योजना नहीं है, जो सभी महिलाओं को सीधे वित्तीय सहायता हस्तांतरित करती हो या विशेष रूप से कम आय वाली महिलाओं को लक्षित करती हो। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को वित्तीय सहायता देती है।

इस साल की शुरुआत में अमित शाह ने कहा था, हम डीबीटी योजना (लक्ष्मी भंडार) को बंद नहीं करेंगे। उलटे सहायता राशि 100 रु. बढ़ा देंगे। आईएमएफ तक ने भारत की डीबीटी योजनाओं को लॉजिस्टिकल चमत्कार करार दिया है। तो क्या हमें राष्ट्रीय स्तर पर इसके लागू होने का इंतजार करना चाहिए!

नकद प्रोत्साहनों ने महिलाओं की आर्थिक निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाया है और परिवार में उनकी स्थिति में सुधार किया है। अध्ययन में कहा गया है कि पांच में से चार महिलाएं अपनी इच्छा से पैसे खर्च करती हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं। इस लेख के सहायक शोधकर्ता धीमंत जैन हैं।)

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