मानव भ्रूण मॉडल: क्या है विज्ञान की यह नई खोज?
मानव भ्रूण मॉडल: क्या है विज्ञान की यह नई खोज? उठ रहे नैतिक सवाल
मानव भ्रूण मॉडल के क्षेत्र में विज्ञान बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है. वैज्ञानिक नए-नए मॉडल बना रहे हैं और इन मॉडलों का अध्ययन कर रहे हैं.
विज्ञान लगातार नई-नई खोजों के साथ मानव जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास कर रहा है. इन खोजों में से एक है मानव भ्रूण मॉडल (Human Embryo Models). यह एक ऐसा मॉडल है जो मानव भ्रूण की शुरुआती अवस्था को प्रयोगशाला में विकसित करता है. लेकिन यह खोज कई संभावनाओं के साथ-साथ कई नैतिक सवाल भी उठाती है.
मानव भ्रूण मॉडल को ऐसे समझिए जैसे कि हमने लैब में एक छोटा सा मानव भ्रूण बनाया हो. ये असली भ्रूण नहीं होते हैं, बल्कि इनकी नकल होते हैं. इन्हें बनाने के लिए वैज्ञानिक स्टेम कोशिकाओं का उपयोग करते हैं. ये शरीर की ऐसी कोशिकाएं होती हैं जो किसी भी तरह की कोशिका में बदल सकती हैं. इन कोशिकाओं को खास तरीके से विकसित करके, वैज्ञानिक एक ऐसा मॉडल बनाते हैं जो शुरुआती अवस्था में एक मानव भ्रूण जैसा दिखता है और काम करता है.
इन मॉडलों से वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश करते हैं कि एक बच्चा बनता कैसे है. 2023 में कई वैज्ञानिकों ने ऐसे मॉडल बनाए, जो भ्रूण के विकास के बाद के चरणों को दोहराते हैं. इन मॉडलों में कुछ कोशिकाएं नहीं होती हैं जो भ्रूण को पोषण प्रदान करती हैं. इसलिए ये मॉडल पूरी तरह से पूर्ण नहीं हैं.
कैसे बनता है मानव शरीर?
नेचर जर्नल में पब्लिश स्टडी में बताया गया है कि जब अंडाणु और शुक्राणु मिलते हैं तो एक बहुत ही तेज और व्यवस्थित तरीके से प्रक्रिया शुरू होती है, जिसमें कोशिकाएं विभाजित होती हैं और अलग-अलग काम करने लगती हैं. पहले हफ्ते में करीब 100 कोशिकाएं एक खोखले घेरे जैसी संरचना बनाती हैं, जिसे ब्लास्टोसिस्ट कहते हैं. इसमें तीन अलग-अलग समूह होते हैं जो आगे चलकर में भ्रूण, योक थैली और प्लेसेंटा में बदल जाते हैं.
फिर भ्रूण गर्भाशय में अपने आप को स्थापित करता है. लगभग दो हफ्ते भ्रूण एक प्रक्रिया से गुजरता है जिसे गैस्ट्रुलेशन कहते हैं. इसमें कोशिकाएं तीन अलग-अलग तरह की कोशिकाओं में बदल जाती हैं और परतों में व्यवस्थित हो जाती हैं. ये परतें आगे चलकर फेफड़े, आंत, मांसपेशियां और अन्य अंगों में बदल जाती हैं, इसे ऑर्गनोजेनेसिस कहते हैं.
लंदन के फ्रांसिस क्रिक इंस्टिट्यूट में विकासात्मक जीवविज्ञानी नोमी मोरिस कहती हैं, “भ्रूण कभी स्थिर नहीं होता है. यह इन विशाल नाटकीय बदलावों से गुजरता है.”
मानव भ्रूण मॉडल: एक नई वैज्ञानिक खोज
अब वैज्ञानिक मानव भ्रूण के विकास की प्रक्रिया को लैब में दोहराने की कोशिश कर रहे हैं. इसके लिए वे चूहों और मनुष्य की स्टेम कोशिकाओं का उपयोग कर रहे हैं. ये कोशिकाएं भ्रूण के विकास के शुरुआती चरणों को दोहराती हैं.
2014 में वैज्ञानिकों ने मानव भ्रूण स्टेम कोशिकाओं को तीन अलग-अलग छल्ले में बदलने में सफलता हासिल की. ये छल्ले भ्रूण, प्लेसेंटा और योक थैली के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. 2020 तक कुछ शोधकर्ताओं ने गैस्ट्रुलेशन के एक पहलू का दोहराया था जिसमें भ्रूण एक ट्यूब-जैसी संरचना में बढ़ता है. लेकिन आज के मानकों के अनुसार, इनमें से कई शुरुआती अध्ययन पूरे भ्रूण के मॉडल नहीं माने जाएंगे.
मानव भ्रूण मॉडल पर नैतिक सवाल
ये मॉडल मानव जीवन की शुरुआत से जुड़े कई नैतिक सवाल उठाते हैं. जैसे, क्या यह मॉडल मानव जीवन के समान है? अगर हां, तो क्या इन मॉडलों को नष्ट करना सही है क्या इसे मानव जीवन के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए? क्या भ्रूण का इस्तेमाल सिर्फ रिसर्च के लिए किया जाना नैतिक है? क्या मानव भ्रूण मॉडल का उपयोग डिजाइनर बेबी बनाने के लिए किया जा सकता है? इन मॉडलों का उपयोग क्लोनिंग जैसे गलत कामों के लिए भी किया जा सकता है.
जब वैज्ञानिकों ने मानव भ्रूण मॉडल बनाए तो उन्हें इन मॉडलों पर शोध करने के लिए अनुमति लेनी पड़ी. ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने इन वैज्ञानिकों को अनुमति नहीं दी, क्योंकि ऑस्ट्रेलिया के नियमों के अनुसार, मानव भ्रूण मॉडल भी असली भ्रूण की तरह ही माने जाते हैं. इस फैसले से वैज्ञानिक बहुत निराश हुए. उन्होंने कहा कि यह गलत फैसला है. क्योंकि मानव भ्रूण मॉडल असली भ्रूण नहीं हैं. इन मॉडलों पर शोध करने के लिए अलग से नियम बनाने चाहिए.
ऑस्ट्रेलिया के अलावा, दुनिया के अन्य देशों में भी अलग-अलग नियम हैं. कुछ देशों में मानव भ्रूण मॉडल पर शोध करने की अनुमति है, जबकि कुछ देशों में नहीं. ये नियम और कानून सिर्फ वैज्ञानिकों के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के अन्य क्षेत्रों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं. इन नियमों का प्रभाव प्रजनन स्वास्थ्य, गर्भपात, महिलाओं के अधिकार पर भी पड़ता है.
मानव भ्रूण मॉडल और असली भ्रूण में अंतर
आज के मानव भ्रूण मॉडल असली भ्रूण से बहुत अलग हैं. वैज्ञानिकों को यह तय करना मुश्किल है कि कब एक मॉडल को असली भ्रूण माना जाना चाहिए. नैतिक नियमों के कारण, मॉडलों को गर्भाशय में स्थानांतरित करने की अनुमति नहीं है. इसलिए, वैज्ञानिकों को अन्य तरीकों से मॉडलों की तुलना करनी होती है.
नीदरलैंड में लीडेन यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर में एक जैव नीतिशास्त्री नींके डी ग्रेफ कहती हैं कि मानव भ्रूण मॉडल असली भ्रूण से कई तरीकों से अलग होते हैं. इसलिए कई देशों में इन दोनों को अलग-अलग माना जाता है. स्पेन में भ्रूण की परिभाषा निषेचन (Fertilization) पर आधारित है. मानव भ्रूण मॉडल को भ्रूण नहीं माना जाता है.
अंतर्राष्ट्रीय स्टेम सेल अनुसंधान सोसायटी (ISSCR) का मानना है कि मानव भ्रूण मॉडल भ्रूण नहीं हैं क्योंकि इनमें भ्रूण बनने की क्षमता नहीं होती है. ऐसे ही कई देशों में भी इसी तरह का नजरिया है. यानी मानव भ्रूण मॉडल और असली भ्रूण में कई अंतर होते हैं. कई देशों में इन दोनों के लिए अलग-अलग नियम बनाए गए हैं.
मानव भ्रूण मॉडल पर नियमों में बदलाव की मांग
कुछ देशों में मानव भ्रूण मॉडल पर रिसर्च करने के लिए नियमों में बदलाव करने की मांग की जा रही है. कुछ लोगों का मानना है कि असली भ्रूण के लिए बने नियमों में बदलाव किया जाना चाहिए ताकि वे मानव भ्रूण मॉडल को भी शामिल करें. नीदरलैंड में एक वैज्ञानिक सलाहकार समूह ने प्रस्ताव किया है कि मानव भ्रूण मॉडल को 28 दिनों से ज्यादा समय तक विकसित करने पर प्रतिबंध लगा दिया जाए. फ्रांस भी इसी तरह की सीमा पर विचार कर रहा है.
वहीं यूनाइटेड किंगडम में शोधकर्ताओं ने जुलाई में कुछ अलग किया. यूके में शोधकर्ताओं ने स्वैच्छिक दिशानिर्देश प्रकाशित किए हैं जो मानव भ्रूण मॉडलों के लिए सीमाएं तय नहीं करते हैं.यूके के दिशानिर्देश और 2021 के ISSCR दिशानिर्देश मानव भ्रूण मॉडलों को गर्भाशय में स्थानांतरित करने पर प्रतिबंध लगाते हैं. स्वीडन और जापान जैसे कई अन्य देश भी इस तरह के प्रतिबंध पर विचार कर रहे हैं.
मस्तिष्क या हृदय के बिना मानव भ्रूण अधूरा!
कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि मानव भ्रूण मॉडल को पूरी तरह से असली भ्रूण की तरह बनाने की कोशिश करना जरूरी नहीं है. वे कहते हैं कि मॉडल को केवल इतना ही वास्तविक होना चाहिए कि इससे हम मानव विकास के बारे में समझ सकें. अगर मॉडल बहुत ज्यादा असली हो जाए तो इस पर शोध करने में बहुत सारे नियम और प्रतिबंध लग सकते हैं.
कुछ वैज्ञानिक इस नैतिक समस्या से बचने के लिए अपने मॉडलों में जानबूझकर कुछ बदलाव करते हैं. एक शोधकर्ता हन्ना ने ऐसे मॉडल बनाए जिनमें मस्तिष्क और हृदय के विकास से जुड़े जीन निष्क्रिय कर दिए गए. उन्होंने अपने समुदाय के ईसाई और यहूदी नेताओं से चर्चा करके यह निष्कर्ष निकाला है कि मस्तिष्क या हृदय के बिना मॉडल को व्यक्ति नहीं माना जाएगा.
एक शोधकर्ता ने एक ऐसा मॉडल तैयार किया है जो कुछ नैतिक चिंताओं को कम करता है. यह मॉडल गैस्ट्रुलेशन तक पहुंचता है, लेकिन प्राइमिटिव स्ट्रीक नहीं बनाता है. ये मॉडल बहुत उपयोगी हो सकते हैं क्योंकि वे मानव भ्रूण के कुछ पहलुओं को अच्छी तरह से दिखाते हैं. वहीं एक शोधकर्ता ने इन मॉडलों का उपयोग करके रक्त कोशिकाओं का उत्पादन किया है. ये रक्त कोशिकाएं कैंसर या अन्य बीमारियों वाले लोगों के लिए उपयोगी हो सकती हैं.
भ्रूण गर्भाशय के साथ कैसे जुड़ जाता है?
वैज्ञानिक अब मानव भ्रूण मॉडलों को ऐसे वातावरण में रखने की कोशिश कर रहे हैं जो गर्भाशय के वातावरण के ज्यादा से ज्यादा मिलता-जुलता हो. इससे यह पता चल सकता है कि भ्रूण गर्भाशय के साथ कैसे जुड़ जाता है. कुछ वैज्ञानिकों ने मानव भ्रूण मॉडलों को गर्भाशय की परत बनाने वाली कोशिकाओं के साथ जोड़ा है. इससे पता चला है कि भ्रूण मॉडल गर्भाशय की परत में घुस सकते हैं और सही तरीके से जुड़ सकते हैं.
कुछ वैज्ञानिकों ने बंदरों जैसी अन्य जानवरों की कोशिकाओं का भी उपयोग किया है. इन कोशिकाओं से बने भ्रूण मॉडलों को उन्होंने जानवरों के गर्भाशय में स्थानांतरित किया है. लेकिन ये मॉडल ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह पाए. बंदरों में ब्लास्टॉइड्स गर्भावस्था को पूरा नहीं कर सके.
इस तरह के प्रयोगों पर अभी कोई प्रतिबंध नहीं है. लेकिन कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर इन मॉडलों से कोई जीव पैदा होता है, तो इससे लोगों का विरोध हो सकता है और मानव भ्रूण मॉडलों पर शोध करने में बहुत दिक्कतें आ सकती हैं.