आदिवासी वोट बैंक बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती या अवसर?

महाराष्ट्र-झारखंड में आदिवासी वोट बैंक बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती या अवसर?
2019 झारखंड विधानसभा चुनाव में 28 आदिवासी सीटों में से 26 सीटें JMM-कांग्रेस के गठबंधन ने जीतीं थी. आखिर महाराष्ट्र-झारखंड चुनाव में आदिवासी अहम क्यों हैं? इस स्पेशल स्टोरी में आंकड़ों से समझते हैं.

महाराष्ट्र और झारखंड में अगले महीने विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है. दोनों ही राज्यों में आदिवासी आबादी काफी है. राज्य में किसकी सरकार बनेगी, ये तय करने में आदिवासी समुदाय अहम भूमिका निभाते हैं. 

महाराष्ट्र में आदिवासी आबादी लगभग 10% है, जो मुख्य रूप से उत्तरी महाराष्ट्र और विदर्भ क्षेत्रों में रहती है. यह राज्य के 47 से ज्यादा निर्वाचन क्षेत्रों को प्रभावित करता है, जिनमें से 25 से ज्यादा आरक्षित आदिवासी (ST) सीटें हैं. वहीं झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है, जहां 28% आबादी आदिवासी समुदाय से है. राज्य में 28 विधानसभा सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं और ये सीटें चुनावी परिणामों को अहम भूमिका निभाती हैं.

महाराष्ट्र में आदिवासी की कितनी आबादी
2011 की जनगणना के अनुसार, महाराष्ट्र में अनुसूचित जनजातियों (ST) की जनसंख्या 1.05 करोड़ है, जो राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग 10% हिस्सा बनाते हैं. राज्य के 36 जिलों में से 21 जिलों में कम से कम 1 लाख आदिवासी रहते हैं. 

सबसे बड़ी आदिवासी जातियों में भील, गोंड, कोली और वरली शामिल हैं, जिनकी कुल संख्या लगभग 65 लाख है. लगभग 5 लाख लोग विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) से आते हैं. राज्य की 38 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां ST जनसंख्या का कम से कम 20% हिस्सा है. इससे चुनावी समीकरण में आदिवासी वोटों की अहमियत पता चलती है.

महाराष्ट्र-झारखंड में आदिवासी वोट बैंक बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती या अवसर?

झारखंड में आदिवासी की कितनी आबादी
2011 की जनगणना के अनुसार, झारखंड की 26% जनसंख्या आदिवासी है और राज्य के 24 जिलों में से 21 जिलों में कम से कम 1 लाख आदिवासी हैं. संथाल सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है, जिनकी संख्या 27.55 लाख है. इसके बाद उरांव (17.17 लाख) और मुंडा (12.29 लाख) आते हैं. हो, खरवार, लोहरा और भूमिज  भी प्रमुख आदिवासी समुदाय हैं.

झारखंड में 43 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां आदिवासी आबादी 20% से ज्यादा है. यहां तक कि 22 सीटों पर तो आधी से ज्यादा आबादी आदिवासियों की है.

आदिवासी समाज के लिए कौन से मुद्दे अहम 
आदिवासी समुदायों के लिए जल, जंगल, जमीन और सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दे बहुत अहम होते हैं. बीजेपी, कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियां आदिवासी समुदाय के इन्हीं मुद्दों को अपने चुनावी एजेंडे में शामिल करती हैं. झारखंड में भूमि अधिग्रहण और आदिवासी अधिकारों से जुड़े मुद्दों ने कई बार विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया है. महाराष्ट्र में भी आदिवासी समुदाय अपने वन अधिकारों के संरक्षण के लिए संघर्ष करता रहा है.

आदिवासी सीटें झारखंड और महाराष्ट्र में सत्ता की चाबी होती हैं. उद्धव ठाकरे गुट वाली शिवसेना, शरद पवार गुट वाली एनसीपी और कांग्रेस का आदिवासी क्षेत्रों में पारंपरिक प्रभाव रहा है, लेकिन बीजेपी ने भी पिछले कुछ सालों में यहां अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश की है. झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का गहरा असर है और हेमंत सोरेन के नेतृत्व में यह पार्टी आदिवासी वोट बैंक के लिए जानी जाती है. 

आदिवासी सीटों पर भाजपा को झटका
महाराष्ट्र और झारखंड में पिछले दो विधानसभा चुनाव के नतीजे देखें जाएं तो पता चलता है कि दोनों ही राज्यों में बीजेपी को झटका लगा है. दोनों ही राज्यों में बीजेपी की आदिवासी सीटें कम हुई हैं. झारखंड में 2014 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 11 आदिवासी सीटों पर कब्जा किया था. लेकिन अगले 2019 विधानसभा चुनाव में बीजेपी के पास घटकर 2 सीटें ही रह गईं. हालांकि आदिवासी समुदाय में बीजेपी का वोट परसेंटेज 30.1% से 33.5% हो गया

ऐसे ही महाराष्ट्र में बीजेपी को सीटें और वोट प्रतिशत दोनों का नुकसान हुआ. 2014 चुनाव में राज्य में बीजेपी ने 11 सीटें जीती थी और 27.9% वोट हासिल किया था. 2019 चुनाव में ये सीटों की संख्या घटकर 8 रह गई और वोट परसेंटेज घटकर 26.9% रह गया.

महाराष्ट्र-झारखंड में आदिवासी वोट बैंक बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती या अवसर?

महाराष्ट्र-झारखंड के आदिवासी वोटर्स में उलटफेर
झारखंड में JMM प्रमुख हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार है. झारखंड में आदिवासी वोटर्स से जुड़ी राजनीति में बीते 5 सालों में काफी उलटफेर देखने को मिला है. जेएमएम अध्यक्ष शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन पार्टी से अलग हो गईं. इसके अलावा चंपई सोरेन काफी लंबे समय से जेएमएम के साथ थे, वो भी अलग हो गए. वहीं बीजेपी को बाबूलाल मरांडी जैसा आदिवासी समुदाय से जुड़ा बड़ा चहेरा मिला. उन्होंने अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर लिया. वहीं झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास राजनीति से अलग हो गए और उन्हें ओडिशा का राज्यपाल बना दिया गया.

वहीं महाराष्ट्र की राजनीति में बड़े फेरबदल के बाद महा विकास अघाड़ी (MVA) और महायुति गठबंधन उभर कर सामने आए, दोनों खेमों में तीन-तीन प्रमुख पार्टियां शामिल हैं. इस साल के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को आदिवासी सीटों पर बड़ा झटका लगा, जहां वह सिर्फ एक सीट पर जीत पाई, जबकि कांग्रेस ने दो सीटें और एनसीपी (शरद पवार) ने एक सीट जीती. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 8 आदिवासी सीटों पर बढ़त बनाई, जबकि MVA ने 14 सीटों पर (कांग्रेस 4, शिवसेना 3 4, एनसीपी 6) बढ़त हासिल की. 

महाराष्ट्र-झारखंड में आदिवासी वोटर्स किसके साथ
झारखंड में जेएमए का आधार आदिवासी समुदाय में मजबूत माना जाता है और सरकार ने अपनी नीतियों से इन्हें साधने की कोशिश भी की है. मगर लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी की स्थिति थोड़ी कमजोर मानी जा रही है. कथित भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते हेमंत सोरेन की छवि को खासा नुकसान पहुंचा है. हालांकि हेमंत आरोप लगा रहे हैं कि बीजेपी उनकी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है. हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद JMM इस मुद्दे को सहानुभूति कार्ड के रूप में खेल सकता है, जो भाजपा के लिए एक और चुनौती बन सकता है.

वहीं बीजेपी झारखंड में आदिवासी नेतृत्व को साधने की कोशिश में लगी है. बीजेपी ने पहले आदिवासी समुदाय से आने वाली द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाया. इसके बाद मोहन माझी को ओडिशा का मुख्यमंत्री बनाया. माना जा रहा है कि बीजेपी आदिवासी समुदाय पर विशेष ध्यान दे रही है. 

उधर महाराष्ट्र में आरक्षण एक बड़ा मुद्दा है. एक तरफ मराठा समुदाय ओबीसी कोटे से आरक्षण की मांग कर रहा है, वहीं अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदाय इस मांग के खिलाफ है. इस बीच अब धनगर समाज भी आदिवासी दर्जा देने की मांग करने लगा है. मगर, आदिवासी समुदाय (एसटी) इस मांग का विरोध कर रहा है. ऐसे में बीजेपी के सामने डैमेज कंट्रोल और बीच का कुछ रास्ता निकालने की चुनौती है. ये तो चुनाव नतीजे ही बताएंगे कि इस बार आदिवासी वोटर्स ने किस राजनीतिक पार्टी का साथ दिया.

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