जटिल और अनुठी है अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया

 जटिल और अनुठी है अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया

प्राइमरी और कॉकस के बाद प्रत्येक पार्टी (मुख्यतः डेमोक्रैट और रिपब्लिकन) आम चुनाव से पहले गर्मियों में एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करती है। इन सम्मेलनों का उद्देश्य राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए आधिकारिक रूप से पार्टी उम्मीदवार को नामित करना।
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होना है। ….

विश्व के सबसे शक्तिशाली देश संयुक्त राज्य अमेरिका के सबसे शक्तिशाली पद राष्टपति के लिये देश का 60वां चुनाव अगामी 5 नवम्बर मगंलवार को होने जा रहा है। चूकि अमरीकी राष्ट्रपति सारी विश्व व्यवस्था को प्रभावित करता है इसलिये सारा विश्व बेसब्री से इंतजार कर रहा है कि डोनाल्ड ट्रम्प और कमला हैरिस में से कौन अगले चार सालों के लिये दुनियां को हांकने जा रहा है।

आगामी 5 नवम्बर को प्रत्येक राज्य और कोलंबिया जिले के मतदाता निर्वाचक मंडल के लिए निर्वाचकों का चयन करेंगे, जो फिर चार साल की अवधि के लिए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करेंगे। भारत के संसदीय लोकतंत्र से भिन्न अमेरिका की राष्ट्रपति चुनाव प्रणाली एक जटिल और अनूठी प्रक्रिया है। संविधान के अनुसार यह प्रणाली प्राइमरी, राष्ट्रीय सम्मेलन और इलेक्टोरल कॉलेज के विभिन्न चरणों से गुजरेगी।

राष्ट्रपति पद के लिए प्राइमरी और कॉकस

भारत में सामान्यतः पार्टी नेतृत्व मतदाताओं पर प्रत्याशी थोपते हैं लेकिन अमेरिका में उम्मरदवारी के लिये भी चुनाव जीतना होता है। अमरीकी राष्ट्रपति पद की राह प्राइमरी और कॉकस से शुरू होती है, जो प्रत्येक राज्य में आयोजित की जाती है। ये चुनाव और बैठकें उन प्रतिनिधियों का चयन करने के लिए होती हैं जो पार्टियों के राष्ट्रीय सम्मेलनों में उम्मीदवारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह प्रक्रिया, आमतौर पर चुनावी वर्ष के जनवरी से लेकर गर्मियों के मध्य तक चलती है। प्राइमरी के लिये प्रत्यक्ष चुनाव होते हैं जिसमें पंजीकृत मतदाता अपने पसंदीदा उम्मीदवार के लिए मतदान करते हैं।

प्राइमरी खुली हो सकती है (जिसमें पार्टी से जुड़े सभी मतदाताओं को भाग लेने की अनुमति होती है) या  फिर केवल पंजीकृत पार्टी सदस्यों तक सीमित हो सकती है। इसी तरह कॉकस स्थानीय सभाओं या बैठकों की तरह होते हैं, जहां पार्टी के सदस्य खुलकर चर्चा करते हैं और अपने पसंदीदा उम्मीदवार के लिए वोट करते हैं। वे आम तौर पर कम औपचारिक होते हैं और उनमें सामुदायिक चर्चाएँ शामिल होती हैं। प्राइमरी और कॉकस का लक्ष्य राष्ट्रीय पार्टी सम्मेलनों के लिए प्रतिनिधियों का चयन करना है। एक उम्मीदवार द्वारा जीते गए प्रतिनिधियों की संख्या अक्सर राज्य के नियमों पर निर्भर करती है, कुछ राज्य आनुपातिक रूप से प्रतिनिधियों को तय करते हैं और अन्य विजेता-सभी-ले-जाओ प्रणाली का उपयोग करते हैं।

राष्ट्रीय सम्मेलन में तय होती है उम्मीदवारी

प्राइमरी और कॉकस के बाद प्रत्येक पार्टी (मुख्यतः डेमोक्रैट और रिपब्लिकन) आम चुनाव से पहले गर्मियों में एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करती है। इन सम्मेलनों का उद्देश्य राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए आधिकारिक रूप से पार्टी उम्मीदवार को नामित करना। सम्मेलन का उद्धेश्य पार्टी प्लेटफॉर्म में देश के लिए पार्टी की नीतियों और लक्ष्यों को रेखांकित करना और अक्सर विवादास्पद प्राथमिक सत्रों के बाद पार्टी को एकजुट करना होता। सम्मेलन में प्रतिनिधि प्राइमरी और कॉकस के परिणामों के आधार पर अपने समर्थित उम्मीदवार के लिए वोट देते हैं। एक बार जब कोई उम्मीदवार प्रतिनिधियों का बहुमत हासिल कर लेता है तो वह आधिकारिक तौर पर पार्टी का उम्मीदवार बन जाता है।

आम चुनाव अभियान

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रीय सम्मेलनों के बाद प्रत्येक पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार आम चुनाव के लिए अपना अभियान शुरू करते हैं। इस चरण में चुनावी बहसें, प्रचार अभियान और विज्ञापन प्रचार शामिल होता है। परम्परानुसार चुनावी वर्ष में राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति पद की बहसें शरद ऋतु में आयोजित की जाती हैं जिससे उम्मीदवारों को अपनी नीतियों को प्रस्तुत करने और अपने विरोधियों को चुनौती देने का अवसर मिलता है।

इसी दौर में उम्मीदवार अपने समर्थकों को एकजुट करने, मीडिया में आने और धन जुटाने के लिए पूरे देश में यात्रा करते हैं। इस चुनाव में पारंपरिक और डिजिटल विज्ञापन दोनों ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि उम्मीदवार अपने संदेशों के साथ मतदाताओं तक अपना लक्ष्य और कार्यक्रम रखते हैं। आम चुनाव अभियान एक अत्यधिक प्रतिस्पर्धी अवधि होती है जहाँ उम्मीदवार अनिर्णीत मतदाताओं को जीतने की कोशिश करते हैं।

इलेक्टोरल कॉलेज या निर्वाचक मंडल

अन्य अमेरिकी चुनावों में मतदाताओं द्वारा उम्मीदवारों का चुनाव सीधे लोकप्रिय वोट से होता है। लेकिन राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव सीधे नागरिकों द्वारा नहीं किया जाता। इसके बजाय उन्हें इलेक्टोरल कॉलेज (निर्वाचक मंडल ) प्रक्रिया के माध्यम से चुना जाता है। प्रत्येक राज्य को उतने ही निर्वाचक मिलते हैं जितने उसके पास कांग्रेस (हाउस और सीनेट) के सदस्य हैं। उदाहरण के लिए, सबसे अधिक आबादी वाले राज्य कैलिफोर्निया में 55 इलेक्टर (53 प्रतिनिधि और 2 सीनेटर) हैं, जबकि व्योमिंग जैसे छोटे राज्यों में 3 इलेक्टर (1 प्रतिनिधि और 2 सीनेटर) हैं।

वाशिंगटन, डीसी के तीन इलेक्टर को मिलाकर, वर्तमान में कुल 538 इलेक्टर हैं और राष्ट्रपति बनने के लिए किसी उम्मीदवार को 270 निर्वाचक मतों का बहुमत जीतना होता। आगमी 5 नवम्बर को चुनाव के दिन संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार सभी नागरिक अपने पसंदीदा राष्ट्रपति उम्मीदवार को सीधे वोट देने के बजाय तकनीकी रूप से वे अपने पसन्दीदा उम्मीदवार के लिए प्रतिबद्ध निर्वाचक के स्लेट के लिए वोट करेंगे। फिर दिसंबर में इलेक्टर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए वास्तविक वोट डालने के लिए अपने-अपने राज्यों में मिलेंगे।

निर्वाचकों में 435 सदस्य प्रतिनिधि सभा से, प्रत्येक राज्य से दो-दो सीनेटर और 3 निर्वाचक कोलंबिया जिले से चुने जाते हैं। अधिकांश राज्यों में लोकप्रिय वोट जीतने वाले उम्मीदवार को राज्य के सभी इलेक्टोरल वोट मिलते हैं (विजेता-सभी-लेता-है प्रणाली), मेन और नेब्रास्का को छोड़कर, जो अपने वोट आनुपातिक रूप से आवंटित करते हैं।

स्विंग स्टेट्स की  निर्णायक भूमिका

इलेक्टोरल कॉलेज सिस्टम की वजह से स्विंग स्टेट्स (जिन्हें बैटलग्राउंड स्टेट्स भी कहा जाता है) चुनाव के नतीजे को प्रभावित करने में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये ऐसे राज्य हैं जहाँ वोट रिपब्लिकन या डेमोक्रेट किसी के भी पक्ष में जा सकते हैं। उम्मीदवार अक्सर अपने अभियान के ज्यादातर प्रयासों को इन राज्यों पर केंद्रित करते हैं, क्योंकि उन्हें चुनाव जीतने के लिये 270 इलेक्टोरल वोट हासिल करने बहुत जरूरी हैं। 

ऐतिहासिक रूप से फ्लोरिडा, पेंसिल्वेनिया, मिशिगन, विस्कान्सिन ऐरिजोना और जार्जिया जैसे स्विंग स्टेट्स राष्ट्रपति चुनावों में निर्णायक रहे हैं। इन राज्यों में राजनीतिक संतुलन चुनाव दर चुनाव बदल सकता है जिससे वे अप्रत्याशित और अत्यधिक प्रतिस्पर्धी बन जाते हैं।

अगर किसी को बहुमत न मिला तो

राष्ट्रपति पद का फैसला अंततः इलेक्टोरल वोट द्वारा किया जाता है। चुनाव दिवस पर देश भर के मतदाता अपने मतपत्र तो डालते हैं लेकिन परिणाम आधिकारिक तौर पर तब तक अंतिम रूप नहीं दिए जाते जब तक कि इलेक्टोरल कॉलेज की बैठक नहीं हो जाती। जबकि लोकप्रिय वोट महत्वपूर्ण हैं।

यदि किसी भी उम्मीदवार को इलेक्टोरल वोटों (270) का बहुमत प्राप्त नहीं होता है, तो प्रतिनिधि सभा चुनाव का फैसला करती है। जिसमें प्रत्येक राज्य प्रतिनिधिमंडल के पास एक वोट होता है। ऐसी स्थिति अमेरिकी इतिहास में केवल कुछ ही बार आयी है। नव निर्वाचित राष्ट्रपति का उद्घाटन अगले वर्ष 20 जनवरी को उस दिन होगा  जिसे उद्घाटन दिवस के रूप में जाना जाता है।

इस प्रकिया में आलोचनाएं और विवाद भी

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव प्रणाली, विशेष रूप से इलेक्टोरल कॉलेज, को पिछले कुछ वर्षों में आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। आलोचकों का मानना है कि लोकप्रिय वोट और इलेक्टोरल वोट के बीच विसंगतियों के कारण किसी उम्मीदवार के लिए राष्ट्रीय लोकप्रिय वोट जीते बिना राष्ट्रपति पद जीतना संभव है, जैसा कि 2000 और 2016 के चुनावों में हुआ था। इससे कुछ लोगों का तर्क है कि इलेक्टोरल कॉलेज पुराना और अलोकतांत्रिक है।

आलोचकों का यह भी तर्क है कि इलेक्टोरल कॉलेज कुछ स्विंग राज्यों को बहुत अधिक शक्ति देता है, जिससे अधिकांश राज्य चुनाव में कम प्रासंगिक हो जाते हैं। यह प्रणाली दो-पक्षीय प्रणाली का बहुत अधिक समर्थन करती है, जिससे तीसरे पक्ष के उम्मीदवारों के लिए चुनावी वोट जीतना या परिणाम को प्रभावित करना मुश्किल हो जाता है। इन आलोचनाओं के बावजूद, इलेक्टोरल कॉलेज अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव प्रणाली की आधारशिला बना हुआ है, और इस प्रक्रिया में किसी भी महत्वपूर्ण बदलाव के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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