किसे सता रहा लोकेशन ट्रेस होने का डर?
किसे सता रहा लोकेशन ट्रेस होने का डर?
जमीन से जुड़े रसूखदारों की दिल्ली तक शिकायत, टिकट के बाद बाबा फैक्टर ….
- हर शनिवार पढ़िए और सुनिए- ब्यूरोक्रेसी, राजनीति से जुड़े अनसुने किस्से
मलाईदार पद पाने के लिए क्या-क्या नहीं करना पड़ता। जिसे मलाईदार पद पाना होता है वह मंत्री से लेकर संतरी तक को मैनेज करने की कला भी जानते हैं। इंजीनियरिंग विंग से जुड़े एक टेक्नोक्रेट ने महकमे में मलाईदार पद पाने के लिए अपने शहर के मंत्रीजी तक को पक्ष में कर लिया।
जूनियर मंत्री सीनियर मंत्री के पास अफसर को मलाईदार पद पर लगाने की सिफारिश लेकर पहुंचे। वहां लंबे वक्त तक बैठे रहे, इस गंभीर मंत्रणा का मलाईदार पद पर लगने वाले के पक्ष में कोई रिजल्ट नहीं निकला।
सीनियर मंत्री ने मलाईदार पद पर लगने वाले का ट्रेक रिकॅार्ड देखते हुए भविष्य के नतीजे पहले ही भांप लिए। दोनों मंत्रियों की अंदर मुलाकात चल रही थी तो मलाईदार पद पाने के इच्छुक बहर ही चक्कर काट रहे थे।
बड़े अफसरों को क्यों हुआ लोकेशन ट्रेस होने का शक?
बड़े पदों पर बैठे अफसरों को अचानक ही प्राइवेसी को लेकर तरह-तरह के शक हो रहे हैं। पिछले दिनों कुछ अफसर मिलकर चर्चा कर रहे थे। मुख्य मुद्दा लोकेशन ट्रेस की चिंता थी। प्रदेश के सबसे बड़े दफ्तर से लेकर फील्ड में तैनात अफसर तक जानकारों के सामने लोकेशन और कॉल ट्रेस को लेकर चिंता जता रहे थे।
अब मलाईदार पद वालों को तो चिंता होना स्वाभाविक है। कब क्या मामला निकल जाए, कह नहीं सकते। एक पुरानी राजस्थानी कहावत है कि रोगी और भोगी तो ठगाते ही हैं। मलईदार पदों वालों पर भी यह कहावत लागू होती रही है, इसलिए उनका डर स्वाभविक है। पता नहीं कब एसीबी ही पीछे लग जाए।
सत्ता और संगठन को बाबा फैक्टर से राहत
सत्ता वाली पार्टी में उपचुनावों की टिकटों के बाद संगठन से लेकर सत्ता तक में एक बात की खुशी है। पूर्वी राजस्थान की चर्चित सीट की चिंता से सत्ता और संगठन के मुखिया मुक्त हैं। इस सीट पर बाबा के भाई को टिकट देकर एक साथ कई समीकरण साध लिए।
सत्ता और संगठन के नजदीकी एक नेताजी ने सियासी चर्चा में भी मान लिया कि इस सीट के रिजल्ट की जिम्मेदारी बाबा की है। बाबा के जिस रुख से सत्ता-संगठन परेशान थे, अब बाबा का स्टैंड बदलने की भी उम्मीद है। सियासत में एक साथ इतनी राहत मिल जाए यह कम बात नहीं है।
जमीन से जुड़े रसूखदारों की क्यों हुई दिल्ली तक शिकायत?
पहले किसी नेता या सार्वजनिक जीवन से जुड़े व्यक्ति के बारे में कहा जाता था कि वे जमीन से जुड़े हुए हैं तो सम्मान की बात होती थी। अब जमीन से जुड़ने का मतलब कुछ और होता है।
हाल ही राजधानी की एक पॉश कॉलोनी की जमीन के सौदे की चर्चाएं देश की राजधानी तक पहुंच गई। पहले किसी नामी व्यक्ति के नाम इस जमीन पर कई पेच जुड़े थे।
हाल ही इसका गुपचुप सौदा हुआ तो एक व्हिसल ब्लोअर ने मामला दिल्ली तक पहुंचा दिया। पूरा मामला गड़बड़ था। व्हिसल ब्लोअर ने प्रभावशाली लोगों के नाम लिखते हुए दिल्ली तक शिकायत कर दी। अब सबको इसके सियासी परिणाम का इंतजार है।
रिटायर्ड अफसर का हुआ सच से सामना
सरकारी पदों पर रहने वालों से ज्यादा प्रैक्टिकल और वर्तमान में जीने वाला शायद ही कोई हो। जो आज कुर्सी पर है उसी का राज है। जैसे ही वर्तमान से कोई भूतपूर्व हुआ तो सत्ता और कुर्सी कोई मदद नहीं कर सकती।
पिछले दिनों बड़े पद पर रहे एक रिटायर्ड अफसर का सत्ता के इस चरित्र से अच्छी तरह आमना सामना हुआ। रिटायर्ड अफसर का कोई टेढ़ा काम फंस गया था।
रिटायर्ड अफसर अपना काम लेकर बड़ी कुर्सी पर बैठे अफसर के पास गए। वर्तमान पदवाले बड़े अफसर ने सम्मान तो दिया लेकिन टेढ़े फंसे काम में मदद से इनकार कर दिया। अब नियम कायदे भी तो कोई चीज है।
बड़े अफसर की पोस्टिंग से कौन नाराज
सरकार बदलने के बाद पिछले राज में अच्छे पदों पर रहे अफसरों पर कुछ समय तक नई सत्ता की तिरछी निगाह रहती है, लेकिन बाद में सब सामान्य हो जाता है। पुराने राज में कई अहम पदों पर रहे अफसर को इस राज में भी दो-दो अहम महकमों की जिम्मेदारी दी गई।
अफसर ने वैचारिक संगठन के प्रतिष्ठित व्यक्ति से सिफारिश करवाई थी, इसलिए अच्छी पोस्टिंग मिलनी ही थी। अफसर के पास गांव से लेकर सत्ता के अहम फैसले वाले विभाग हैं।
वे कैबिनेट की मीटिग तक में बैठते हैं। विरोधियों को यह बात हजम नहीं हुई। इसे लेकर टॉप तक शिकायत की गई। फिलहाल शिकायत का कुछ होता हुआ दिख नहीं रहा, क्योंकि शिकायत का आधार ठोस नहीं बताया जा रहा।