राजनीतिक अवसरवाद से ऊपर उठ कर सोचें जम्मू कश्मीर की राजनीतिक पार्टियां !
राजनीतिक अवसरवाद से ऊपर उठ कर सोचें जम्मू कश्मीर की राजनीतिक पार्टियां, तो बन जाएगी बात
कांग्रेस की रणनीति सेफ पॉलिटिक्स की
कांग्रेस ने एक प्रकार से सब कुछ उमर अब्दुल्लाह पर ही छोड़ा हुआ है और अपना हर क़दम फूंक-फूंक कर उठा रही है. शायद कांग्रेस अपने 6 विधायकों के बीच असंतोष पनपने नहीं देना चाहती है. या फिर उसे इस सरकार के अधिक चलने की आशा नहीं है. यह भी मुमकिन है कि उसे लगता है कि उमर अब्दुल्लाह सरकार अधिक सफल नहीं होगी और रह-रह कर उस को ऐसे मुद्दे उठाने होंगे जिन के कारण कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर हानि पहुंच सकती है. इसमें अनुच्छेद 370 का मामला सबसे ऊपर है. देखा जाये तो विधानसभा के पहले सत्र में पहले ही दिन 370 के लेकर उस समय हंगामा हो गया जब पीडीपी के हमीद पर्रह ने 370 की बहाली का प्रस्ताव प्रस्तुत किया और जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा बहाल करने की मांग भी उठाई. भाजपा के विधायकों ने इसका भरपूर विरोध किया जिस पर दोनों ओर से काफ़ी हंगामा हुआ. यह केवल एक इशारा भर है कि आगे भी विधानसभा में किस प्रकार कामकाज चलेगा और किस प्रकार राज्य के दर्जे की बहाली और 370 की वापसी की मांग को लेकर कश्मीर की पार्टियाँ एक दूसरे को घेरने की कोशिश करती रहेंगी.
राजनीतिक फैसलों में न हो कश्मीर का नुकसान
विधान सभा के पहले सत्र से पहले ही देखा जाए तो राजनितिक पार्टियों ने प्रदेश के केंद्र शासित होने को लेकर अपनी सोच उस समय दर्शा दी थी जब यूटी स्थापना दिवस के अवसर पर उप राज्यपाल के सरकारी कार्यक्रम का मुख मंत्री उमर अब्दुल्लाह ने बहिष्कार किया था. इस पर राज्यपाल ने यूटी दिवस का विरोध करने वालों को आड़े हाथों लिया था और कहा था कि जो लोग कुछ दिन पहले संविधान की शपथ लेते हैं वह इस प्रकार यूटी दिवस का बहिष्कार कैसे कर सकते हैं. उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा था कि इस सच्चाई को सभी को मानना होगा कि जम्मू-कश्मीर अब केंद्र शासित प्रदेश (UT) है. जब यह फिर से राज्य बनेगा तो उस दिन भी जश्न मनाया जाएगा. उमर अब्दुल्ला, उनके मंत्री, सभी क्षेत्रीय दलों के साथ-साथ कांग्रेस और सीपीआई (एम) भी इस कार्यक्रम में नहीं आई थीं. बाद में मीडिया से बात करते हुए मनोज सिन्हा ने कहा था कि सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के वादे अनुसार हो रहा है. उन्हों ने कहा था कि पहले परिसीमन होगा फिर विधानसभा चुनाव होंगे और फिर सही वक़्त पर राज्य का दर्जा दिया जायेगा.
सोमवार को जम्मू-कश्मीर यूटी की पहली विधानसभा के पहले सत्र को संबोधित करते हुए उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने दोहराया कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए सरकार पूरा प्रयास करेगी. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ने जल्द से जल्द जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल करने की प्रतिबद्धता दोहराई है और मेरी सरकार राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए प्रयास करेगी और विकास के लिए अनुकूल माहौल बनाएगी.
चुनाव के बाद आतंकी घटनाओं में बढ़ोतरी
इस बीच चुनाव के बाद अचानक कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं में चिंताजनक बढ़ोतरी हुई है. जहां एक तरफ़ उमर अब्दुल्लाह ने इस को लेकर सुरक्षा बलों से उचित कार्यवाई करने का आह्वान किया है वहीँ नेशनल कांफ्रेंस अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला के एक बयान से ऐसा प्रतीत होता है कि वह इन आतंकवादी घटनाओं को लेकर अपनों को ही कटघरे में खड़ा करना चाहते हैं. उन्होंने सवाल किया है कि चुनी हुई सरकार के आने के बाद ही यह घटनाएँ क्यों बढ़ी हैं इसकी जांच होनी चाहिए. उनके एक बयान ने कि आतंकवादियों को मारना नहीं चाहिए बल्कि उनको पकड़ कर उनसे पूछना चाहिए कि उनके पीछे कौन हैं, लोगों को हैरान कर दिया है क्योंकि वह खुद जानते हैं कि आतंकवाद के पीछे सरहद पार के आक़ा होते हैं और वह इस को लेकर संयुक्त राष्ट्र तक में भारत का पक्ष रख चुके हैं. ऐसे में उनका यह सवाल अपने आप में चौंकाने वाला है.
अगर देखा जाए तो जम्मू कश्मीर में कामयाब चुनाव होने और उमर सरकार के सत्ता संभालने के बाद आतंवादियों के आक़ाओं में घबराहट फेल चुकी है और वह अपनी मौजूदगी दिखाने के लिए बेगुनाह और निहत्थे लोगों को निशाना बना रहे हैं. श्रीनगर में एक बरस के बाद इतवार बाज़ार में ग्रेनेड फेंकने के पीछे भी उनकी मंशा यही नज़र आती है कि जब लश्कर के कमांडर के मरने के बाद लोगों ने उन के बंद के आह्वान पर ध्यान नहीं दिया तो बाज़ार में हथगोला फेंक कर भागने का काम किया गया. यह आतंकवाद की सब से डरी हुई और कमज़ोर स्थिति होती है जब भीड़ भाड़ में रात के अंधेरे में ग्रेनेड फेंक कर भगदड़ में छुप कर निकल जाने की कोशिश की जाती है. आतंकवादियों को इसका पता नहीं कि सीसीटीवी को खंगाल कर उन्हें उनके दरबों से निकाल लिया जायेगा और उन्हें उनके अंजाम तक हर हाल में पहुंचाया जाएगा.
जहां तक घाटी में अचानक आतंकवादी कार्यवाई में हो रही बढ़ोतरी की बात है तो सुरक्षा बलों को यह सोच कर कि चुनाव करवा दिया काम ख़त्म अब आराम किया जाए से बचना होगा. कश्मीर में आतंकवाद भी मौसम की तरह है जो रह-रह कर वापस लौटता है. इस लिए जब तक आतंकवाद के पूरे क़िले को ध्वस्त नहीं कर दिया जाता तब तक चैन से नहीं बैठना होगा. हर ज़रूरी क़दम उठाना होगा ताकि नई सरकार को काम करने का अवसर मिले और जम्मू कश्मीर के लोगों के जीवन को शांति के साथ प्रगति से जोड़ा जा सके. जम्मू कश्मीर की राजनीतक पार्टियों को भी कुछ समय के लिए आपस के भेदभाव और राजनितिक अवसरवाद से ऊपर उठ कर सोचना होगा क्योंकि चाहे हर पार्टी की सोच अलग अलग ही क्यों न हो उनका मक़सद एक ही है. वह है जम्मू कश्मीर के अवाम की भलाई. इस उदेश्य को सामने रख कर अगर सब राजनितिक पार्टियाँ कार्य करेंगी तो जम्मू कश्मीर को एक बार फिर जन्नते बेनज़ीर बन्ने से कोई नहीं रोक पायेगा.
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