निजी और रोडवेज बसों में नजर आईं बेबसी ?

निजी और रोडवेज बसों में नजर आईं बेबसी: हादसे होने के पूरे इंतजाम है इनमें, कैसे सुरक्षित घर पहुंचेंगे यात्री

अलग-अलग मार्गों पर चलने वाली बसों की हालत को भांपने के लिए बुधवार को निकली टीम ने पाया कि हादसे होने के पूरे इंतजाम हैं इनमें। जान जोखिम में पड़ रही है तो यात्रियों की। अमर उजाला और संवाद न्यूज एजेंसी की टीम की पड़ताल में यही बात सामने आई।
There are no facilities in private and roadways buses in uttarakhand
रोडवेज बस के अंदर खराब पड़ा अग्निशमन यंत्र और बदहाल सीट

असुरक्षित सफर के सौदे में हर कोई गुनहगार है, कोई कम कोई ज्यादा। सवारियों की बस इतनी भर गलती है कि जल्दी अपनी मंजिल पहुंचने के प्रयास में कोई भी समझौता कर बैठते हैं। बस संचालक इसी का फायदा उठाकर खूब मुनाफा कमा रहे हैं। जान जोखिम में पड़ रही है तो यात्रियों की। अमर उजाला और संवाद न्यूज एजेंसी की टीम की पड़ताल में यही बात सामने आई।

अलग-अलग मार्गों पर चलने वाली बसों की हालत को भांपने के लिए बुधवार को निकली टीम ने पाया कि हादसे होने के पूरे इंतजाम हैं इनमें। व्यवस्था नहीं है तो हादसा होने के बाद बचने की। घिस चुके टायर फटेंगे तो बसों का दुर्घटना का शिकार होने से कोई नहीं रोक पाएगा। हादसा हो जाए तो घायलों को बाहर निकलने के लिए आपातकाल द्वार हैं नहीं। किसी तरह बाहर आ भी जाएं तो प्राथमिक इलाज के लिए फर्स्ट एड बॉक्स है नहीं। हैं भी तो आधे-अधूरे। पैनिक बटन, अग्निशमन यंत्र जैसी जरूरी चीजें भी नहीं हैं। यह दुर्दशा परिवहन निगम की बसों की भी है और प्राइवेट बसों की भी। बड़ा फर्क यह है कि प्राइवेट बसों में सरकारी बसों की अपेक्षा सवारियां ज्यादा खचाखच भरी जा रही हैं। सुरक्षित सफर के तमाम स्लोगन की सार्थकता इन असुरक्षित बसों से पूरी नहीं हो सकती

एक खास बात और सामने आई, मरचूला में भीषण हादसे के बाद भी जिम्मेदार अभी जागे नहीं हैं। बसें अब भी पुरानी हालत में फर्राटा भर रही हैं। हां इतना जरूर हुआ है कि सरकारी अफसर अपनी नौकरी बचाने के लिए आसानी से सामने आ जाने वाली चीज छिपाने की कोशिश जरूर कर रहे हैं। यानी ओवरलोडिंग। यह कोशिश भी नाकाम है। कारण यह है कि जिस जगह पर बसों से अफसर, पुलिस या संभागीय परिवहन कर्मी ठूंसे गए यात्रियों को उतार देते हैं, उनकी जगह दूसरे यात्री कुछ ही दूरी पर ले ले रहे हैं। सब कुछ बेबस बना हुआ है।

रानीखेत रूट का हाल : घिस चुके टायरों के हवाले ज्यादातर केमू बसें
रानीखेत रूट पर अपना राज जमाए केमू बसों की हालत किसी से छिपी नहीं है। इनकी बनावट ही ऐसी है कि हादसा होने पर घायल उसमें फंस जाते हैं, छतें बहुत नीची हैं। सीटों के बीच में भी जगह कम होने के कारण घायल यात्री का बाहर आना आसान नहीं है। टीम के एक साथी ने हल्द्वानी से भीमताल जाने वाली एक बस में सफर किया। शुरुआत में ही देख लिया कि बस का टायर घिसा हुआ है। इसकी तस्वीर खींचते ही चालक बोला- यह स्टेपनी है, असली पहिया तो पंचर हो गया था, सही होने को दिया है। इसी रूट की एक अन्य बस दोपहर करीब एक बजे रवाना हुई तो उसमें भी सफर किया। मरचूला हादसे के बाद शहर में तो ओवरलोडिंग नहीं की गई, मगर आगे जाकर 30 सीटर इस बस में सवारियां ज्यादा भर ली गईं। इन बसों की सीट में पेच भी पूरे नहीं हैंए सो पटले की तरह बन गई हैं। खिड़कियों के शीशों के हुक टूटे हुए थे। कई खिड़कियों के शीशे ही गायब हैं। बस में कहीं भी अग्निशमन यंत्र, पैनिक बटन, आपातकाल दरवाजा, फर्स्ट एड बाॅक्स नहीं था।

मैं भवाली से बीसीए कर रहा हूं। इसलिए लगभग रोजाना सफर करना पड़ता है। रास्ते में कई जगहें सड़कों की स्थिति सही नहीं है। इससे हादसों की आशंका रहती है। वहीं इस रूट पर बसों की संख्या कम है। अगर बसों की संख्या बढ़े तो ओवरलोडिंग जैसी दिक्कत नहीं रहेगी।
– ललित हटवाल, रामनगर

सप्ताहांत में सवारियां ज्यादा चलती हैं। अब त्योहारी सीजन खत्म हो गया तो थोड़ा लोड कम है। पहाड़ की बसों पर प्रशासन को विशेष ध्यान देना चाहिए।
 – केसी शर्मा, भवाली

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