झांसी हादसे से पहले भी कई बार मासूमों की जा चुकी है जान ?

 झांसी हादसे से पहले भी कई बार मासूमों की जा चुकी है जान, जानिए उन ‘अग्निकांडों’ के बारे में जिनसे देश हुआ था परेशान

साल 2011 के दिसंबर महीने में कोलकाता के एएमआरआई अस्पताल में भीषण आग लग गई थी, इस हादसे में कुल 89 लोगों की जान चली गई थी.

यूपी के झांसी में शुक्रवार को सरकारी मेडिकल कॉलेज के न्यूबॉर्न इंटेंसिव केयर यूनिट (NICU) में आग लगने से 10 नवजात बच्चों की मौत हो गई. इसके अलावा 16 बच्चे घायल हुए हैं, जिनका इलाज चल रहा है.

झांसी की एसएसपी सुधा सिंह ने बताया कि हादसे के बाद जांच के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक कमेटी बनाई है, जो इस घटना की छानबीन करेगी. कमेटी का नेतृत्व कमिश्नर और डीआईजी करेंगे. यह हादसा ऐसे समय में हुआ जब भारत में नवजात शिशु सप्ताह (15 से 21 नवंबर) चल रहा है.

हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है, पिछले कुछ सालों में ऐसी कई घटनाएं हुई है जिसमें अस्पताल में आग लगने से मासूमों की जान गई हो. हर बार प्रशासन ने सुरक्षा बढ़ाने के दावे भी किए हैं, लेकिन बावजूद इसके बार-बार हो रहे ऐसे हादसे ये सवाल उठा रहे हैं कि अस्पताल की सुरक्षा में आखिर इतनी नरमी क्यों बरती जा रही है.

साल 2011

साल 2011 के दिसंबर महीने में कोलकाता के एएमआरआई अस्पताल में भीषण आग लग गई थी, इस हादसे में कुल 89 लोगों की जान चली गई थी. जांच के अनुसार ज्यादातर मौतें दम घुटने से हुईं, क्योंकि कई मरीज अस्पताल में लगी आग के बाद बाहर नहीं निकल पाए थे. जिस वक्त ये घटना हुई उस वक्त अस्पताल में 160 मरीज थे और सबसे ज्यादा मौतें इलाज करा रहे मरीजों की ही हुई थी.

रिपोर्ट्स की मानें तो एएमआरआई अस्पताल में लगे भीषण आग के बाद राहत कार्य में काफी देरी हुई, क्योंकि जिस अस्पताल में आग लगी थी उसकी इमारत कई मंजिला थी जिसके कारण फायर ब्रिगेड को राहत पहुंचाने में काफी कठिनाई हुई. घटना के बाद यह महसूस किया गया कि वहां की राहत टीम इस तरह के बड़े हादसे से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं थी. इसके अलावा इसी साल अक्टूबर महीने में पश्चिम बंगाल के सियालदह स्थित ईएसआई अस्पताल में भी आग लगने के कारण एक व्यक्ति की मौत हो गई. पुलिस की मानें तो यह आग शॉर्ट सर्किट की वजह से लगी थी. 

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साल 2021

साल 2021 के जनवरी महीने में महाराष्ट्र के भंडारा के जिला अस्पताल के न्यूबॉर्न केयर यूनिट में आग लगने से 10 नवजात शिशुओं की मौत हो गई थी. समाचार एजेंसी की मानें तो ये सभी नवजात एक से तीन महीने के बीच के थे. इस घटना के बाद प्रशासन ने माना कि उस अस्पताल में फायर सेफ़्टी उपकरण लगाने का प्रस्ताव पिछले एक साल से लंबित था. 

उस वक्त आग लगने का कारण शॉर्ट सर्किट बताया गया था. अस्पताल में आग की शुरुआत उस समय हुई जब एक नर्स ने वार्ड से धुआं निकलते देखा. इस घटना के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत कई नेताओं ने इस पर दुख जताई थी. महाराष्ट्र के तत्कालीन सीएम उद्धव ठाकरे ने भी इस हादसे की जांच के आदेश दिए थे. वहीं, विपक्ष के नेता देवेन्द्र फडणवीस अस्पताल पहुंचे और उन्होंने दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की थी. 

साल 2024 

इस साल मई के महीने में राजधानी दिल्ली के विवेक विहार स्थित एक अस्पताल में आग लगने से सात नवजात की मौत हो गई थी. पुलिस के अनुसार, जिस अस्पताल में ये घटना हुई थी वह बेबी केयर अवैध रूप से चल रहा था और इसमें केवल पांच बेड थे जबकि 12 बच्चों को भर्ती किया गया था. दिल्ली फायर सेवा के अधिकारियों ने घटना के बाद अपने बयान में बताया था कि आग लगने का कारण शॉर्ट सर्किट हो सकता है. हालांकि, घटना के बाद सबसे बड़ा सवाल इस अस्पताल के संचालन की मंज़ूरी पर खड़ा किया गया.

दरअसल यह अस्पताल एक रिहायशी इलाके के पास तंग जगह में एक कमर्शियल बिल्डिंग में स्थित थी. ठीक इसी बिल्डिंग के पास एक बैंक भी था. इतना ही नहीं अस्पताल का पिछला हिस्सा रिहायशी कॉलोनी से जुड़ा हुआ था. आग लगने की घटना के बाद जब जांच की गई तो पता चला कि अस्पताल में एमबीबीएस डॉक्टरों की जगह बीएएमएस (आयुर्वेदिक) डॉक्टर नियुक्त किए गए थे.

इतना ही नहीं इस अस्पताल का लाइसेंस भी 31 मार्च को खत्म हो चुका था. इसके अलावा जिस वक्त आग लगने की घटना हुई उस वक्त अस्पताल क्षमता से ज्यादा भरा हुआ था. दो मंजिला इस अस्पताल में कोई आपातकालीन दरवाजा भी नहीं था. अस्पताल को केवल 20 सिलेंडर रखने की अनुमति थी लेकिन अस्पताल में 32 सिलेंडर थे.

25 मई 2024

25 मई 2024 को ही गुजरात के राजकोट में एक गेम ज़ोन में भीषण आग लग गई थी इस आग के कारण 27 लोगों की मौत हुई थी, जिसमें 9 बच्चे भी थे. इस घटना में लोगों के शव इतनी बुरी तरह जल चुके थे कि उनकी पहचान डीएनए के जरिए कराई गई. दरअसल मई में गर्मी की छुट्टियां होने के कारण उस दिन बड़ी संख्या में बच्चे अपने परिवार के साथ गेम ज़ोन में पहुंचे थे.

इस आग लगने की घटना के बाद जकोट तालुका पुलिस ने गेम ज़ोन के प्रबंधकों समेत छह लोगों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 304, 308, 337, 338 और 114 के तहत मामला दर्ज किया गया था. शुरुआती जांच से पता चला फ़ायर सेफ्टी को लेकर लापरवाही बरतना गेम जोन में आग लगने का कारण बनी. इसके अलावा साल 2020 के अगस्त महीने में भी अहमदाबाद के नवरंगपुरा क्षेत्र में बने श्रेया अस्पताल के आईसीयू में भी आग लगी थी, जिसमें आठ कोरोना मरीज़ों की मौत हो गई थी.

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साल 2021

इसी साल नवंबर के महीने में भोपाल के कमला नेहरू अस्पताल के पीडियाट्रिक विभाग में आग लग गई थी जिससे चार बच्चों की मौत हो गई थी. यह घटना 8 नवंबर को रात करीब 8 बजे हुई. रात 12 बजे से पहले, 1 से 12 दिन के चार शिशुओं की सांस नहीं ले पाने के समस्या के कारण मौत हो गई, जबकि 36 घंटे के भीतर आठ और बच्चों ने दम तोड़ दिया था. अस्पताल के उस विभाग में ज्यादातर बच्चे कम वजन के थे और उन्हें सांस लेने में समस्या थी, जिसके कारण वे वेंटिलेटर पर थे. इस घटना के वक्त वार्ड में 40 बच्चे भर्ती थे.

क्या है नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट

नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (NICU), अस्पताल में वह विशेष विभाग होता है जहां गंभीर रूप से बीमार या असमय जन्मे बच्चों का इलाज किया जाता है. इस यूनिट में उच्चतम स्तर की देखभाल और निगरानी की जाती है ताकि इन बच्चों की जिंदगी बचाई जा सके.

NICU में विशेष चिकित्सा उपकरण होते हैं, जैसे कि:

  • इन्क्यूबेटर-  जो नवजात बच्चों को गर्मी और सुरक्षित माहौल प्रदान करता है.
  • वेंटिलेटर- जिससे बच्चों की सांस की तकलीफ को हल्का किया जा सकता है.
  • मॉनिटरिंग उपकरण- जो बच्चे के दिल की धड़कन, श्वास, रक्तचाप की निगरानी करते हैं.

यह यूनिट उन बच्चों के लिए बहुत जरूरी है जो प्री-टर्म (असमय जन्मे) होते हैं या जिन्हें गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं जैसे सांस की समस्या, इंफेक्शन या जन्म के समय की अन्य जटिलताएं होती हैं. नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट में बच्चों का इलाज विशेष रूप से प्रशिक्षित डॉक्टरों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा किया जाता है.

अस्पतालों में आग लगने के इतने मामले क्यों सामने आते हैं?

बीबीसी की एक रिपोर्ट में इसी सवाल के जवाब में दिल्ली फायर सर्विस के निदेशक कहते है कि दिल्ली में लगभग 99 फीसदी आग लगने का कारण शॉर्ट सर्किट, ओवरलोडिंग और मशीनों की ओवर हीटिंग होता है. उन्होंने आगे कहा कि सभी अस्पतालों को वक्त वक्त पर वायरिंग चेक करानी चाहिए और सबसे ज्यादा ख्याल परिसर में लगे इलेक्ट्रिक मीटर का रखना चाहिए. 

100 नवजातों में से 30 भारत के 

नेशनल नियोनेटोलॉजी फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में नवजात शिशुओं की 100 मौतों में से लगभग 30 केवल भारत में होती हैं. फोरम के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हर 1000 जन्मों में से 37 नवजातों की मौत जन्म के पहले कुछ दिनों में हो जाती है.

फोरम के महासचिव, सुरेंद्र सिंह बिष्ट के अनुसार भारत के दूरदराज इलाकों में नवजातों के लिए इंटेंसिव केयर की सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं, जिसके कारण जिला अस्पतालों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है. इस दबाव के कारण अस्पतालों में हादसों की संभावना बढ़ जाती है.

बीबीसी की एक रिपोर्ट में बिष्ट बताते हैं, “अस्पतालों में जहां व्यस्क मरीजों के लिए आईसीयू में 8 से 10 बेड होते हैं, वहीं बच्चों के लिए इंटेंसिव केयर यूनिट्स में 50 तक बेड लगा दिए जाते हैं क्योंकि ये अस्पताल रेफरल सेंटर होते हैं। ऐसे में डॉक्टर किसी को मना नहीं कर सकते और मजबूरी में अतिरिक्त बेड लगातार इलाज करने की कोशिश करते हैं.”

वहीं दिल्ली फायर सर्विस के निदेशक, अतुल गर्ग ने भी इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में इसी तरह की समस्या की ओर इशारा किया. उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान गुजरात और महाराष्ट्र के अस्पतालों से आग लगने की कई घटनाएं सामने आईं, क्योंकि मरीजों की संख्या इतनी बढ़ गई थी कि मशीनें अतिरिक्त लोड को सहन नहीं कर पाईं.

 

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