गुंडई के रास्ते नेतागीरी चमकाना …. चुनाव लड़ने पर लगे प्रतिबन्ध, तभी बचेगा लोकतंत्र ?

राजस्थान में सरकारी अधिकारी को थप्पड़ मारने वाले के चुनाव लड़ने पर लगे प्रतिबन्ध, तभी बचेगा लोकतंत्र

लोकशाही का मतलब समझना होगा

नेता जी गांववालों के साथ मिलकर मतदान का विरोध कर रहे थे.  एसडीएम ने उस मतदान केंद्र के तहत आने वाले सरकारी कर्मचारियों को प्रेरित किया कि वे मतदान करें.  उनमें से कुछ कर्मचारियों ने मतदान कर दिया.  नेताजी को इस बात पर गुस्सा आ गया.  घटना के वायरल वीडियो से साफ दिख रहा है कि नेताजी पहले से भरे हुए फ्रेम में आते हैं और सीधे एसडीएम को थप्पड़ रसीद कर देते हैं.  

नेता जी, खुद को कानून-वकील-जज सब समझते हैं तो धीरे-धीरे विवाद इतना बढ़ा कि पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा जिसके बाद नेता जी के समर्थकों द्वारा जमकर तोड़फोड़ और आगजनी की गयी.  नेता जी की आलोचना करने वालों को उनके समर्थक उन पुराने नेताओं की याद दिला रहे हैं, जो इन्हीं तरह के असामाजिक कृत्यों के रास्ते लोकप्रिय होकर विधानसभा और संसद पहुंच चुके हैं.  हो सकता है कि ये वाले भी कहीं पहुंच जाएँ मगर इससे यह सत्य नहीं बदल जाएगा कि विधानसभा और संसद में आपराधिक मामलों में आरोपियों की संख्या चुनाव दर चुनाव बढ़ती जा रही है. हमारे देश की सर्वोच्च पंचायत संसद इतनी दागदार है कि अच्छा खासा सर्फ-एक्सेल भी उसको नहीं साफ कर सकेगा. हरेक तीसरा माननीय हमारे यहां दागी है. जो बाकायदा अदालतों से चुनाव न लड़ने लायक घोषित किए जा चुके हैं, उनके भी पास अपनी पार्टी और जनसमूह है. यहां तक कि उनके समर्थक उनके लिए भारत-रत्न की भी मांग कर दे रहे हैं. 

गुंडई के रास्ते नेतागीरी चमकाना 
 
जिन नेताओं का करियर सरकारी अधिकारियों को पीटने से शुरू हुआ है, वह संसद या विधानसभा में पहुंचने पर भी अपना हुनर कभी न कभी दिखाएंगे. हमने उत्तर प्रदेश की विधानसभा में यह शर्मनाक नजारा देखा हुआ है, जब माइक और कुर्सियों से नेताओं ने मारपीट की थी, हम संसद में देखते ही हैं, जब बहस की जगह वेल में पहुंचकर माननीय हल्ला करते हैं, हमने यह भी देखा है कि किस तरह वरिष्ठों के इशारे पर कनिष्ठ नेता शोरशराबा करने लगते हैं और सदन की कार्यवाही बाधित होती है.  सदन के भीतर मारपीट के मामले देश के नगर निगम से लेकर विधानसभा तक में दिखते रहे हैं.  अब बस सदन में लाठी-गोली चलनी बाकी है.  अगर ऐसे नेता आते रहे तो वह दिन भी शायद दिख जाए जब नेता जी लोग गैंगस्टरों की तरह सदन में किसी विधेयक पर बन्दूक से फैसला करें.  अगर हम नहीं चाहते हैं कि ऐसा दिन आए तो हमें इस बीमारी के उपचार के लिए प्रयास शुरू करना होगा.  

जो नेता, अहिंसक तरीकों से विरोध प्रदर्शन नहीं कर सकते, जो नेता सार्वजनिक सम्पत्ति की आगजनी और लूटपाट को प्रोत्हासित करते हैं, जो नेता हिंसक घटनाओं में आरोपी रहे हैं, उन्हें चुनाव आयोग को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित करना चाहिए.  तोड़फोड़ में हुए नुकसान की भरपाई भी जिन नेता जी लोगों के नेतृत्व में धरना-प्रदर्शन आयोजित हो उनसे करनी चाहिए. यह बात हालांकि थोड़ी मुश्किल इसलिए है कि हमाम में सभी नंगे हैं और कोई भी राजनीतिक दल अगर शुचिता और पवित्रता की बात करता है, तो जनता अब उस पर हंस देती है, लेकिन अगर हम लोकतंत्र को वाकई बचाना चाहते हैं तो हमें उसकी जड़ों में खाद-पानी देना ही होगा, उसके लिए सूरज के प्रकाश की व्यवस्था करनी होगी. ये सारी चीजें तभी संभव हो पाएंगी, जब लोकतंत्र के ऊपर से हिंसा, मारपीट और नेताओं की अहमन्यता की छाया हट जाए. 

किसी को नहीं कानून हाथ में लेने का अधिकार 

सरकारी अधिकारी कोई ज्यादती करते हैं तो उसके खिलाफ पुलिस और कचहरी के रास्ते खुले हैं.  अगर सार्वजनिक विरोध करना भी हो तो महात्मा गांधी द्वार दिए दो राजनीतिक ब्रह्मास्त्र ‘नागरिक असहयोग’ और ‘सविनय अवज्ञा’ इस दुनिया को भारत की देन हैं.  इनका प्रयोग करके ही नेल्सन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका और मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने उत्तरी अमेरिका में पीड़ित समुदाय को उनके अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ी.  क्या कांग्रेस से बगावत करने वाले नेता महात्मा गांधी को चन्द रोज में ही भूल गये! 

नेता जी तो भले भूल गये हों, सरकार को याद रखना चाहिए कि सरकारी अधिकारी सरकार का प्रतिनिधि होता है.  उसे थप्पड़ मारना सरकार को थप्पड़ मारना है.  चूंकि लोकतंत्र में जनता ही सरकार चुनती है तो यह एक तरह से जनता के चुनाव को थप्पड़ मारना है.  दुखद ये है कि नेताजी ने ये कुकृत्य चुनाव के नाम पर ही किया है.  

मैं यह भी नहीं कह रहा हूँ कि गांववालों की मांग को खारिज कर दिया जाए.  उनकी मांग को उचित प्रक्रिया से सक्षम अधिकारियों तक पहुँचाया जाना चाहिए.  सरकार को जनता की समस्या से अवगत कराना चाहिए ताकि जनता के लिए वोट देना एक मुसीबत न बन जाए.  बिना सोचे-समझे किसी भी क्षेत्र को परिसीमन के नाम पर किसी सुदूर क्षेत्र में डाल देना अन्याय है और अलोकतांत्रिक है.  मगर ऐसी विसंगतियों का उपचार लोकतांत्रिक मार्ग से होना चाहिए.  थप्पड़बाजी से नहीं. लोकतंत्र का यह मॉडल हमारे देश ने चुना है, संविधान से चलनेवाला देश हम बने हैं, तो इसमें किसी हिंसा की कोई जगह नहीं है. हरेक काम के लिए जिम्मेदारी बांट दी गयी है, तो यह बात नेताजी लोगों को भी समझनी चाहिए और उलजलूल कामों से बचना चाहिए.  

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि …..न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.

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