महिला की पहचान मां, बेटी या पत्नी से कहीं ज्यादा है !

हिला की पहचान मां, बेटी या पत्नी से कहीं ज्यादा है

समय आगे बढ़ा है, लेकिन महिलाओं के मामले में हम पीछे ही लौटे हैं। पिछले दिनों जब एआर रहमान के तलाक की खबरें आईं, तो लोगों ने कानाफूसी शुरू कर दी, क्योंकि उसी समय उनकी साथी कलाकार (बेस गिटारिस्ट) मोहिनी डे ने भी अपने तलाक की घोषणा की थी।

मोहिनी, जिन्होंने पुरुषों के प्रभुत्व वाली संगीत की दुनिया में अपना नाम स्थापित किया, अचानक वह लोगों की गॉसिप का मसाला बन गईं। जबकि रहमान को तुलनात्मक रूप से कम टीका-टिप्पणी का सामना करना पड़ा। उन दोनों को जिस तरह से लिया गया, इसमें फर्क समाज में गहराई से अंतर्निहित पूर्वग्रह बताता है।

जाहिर है कि इसमें नया कुछ नहीं है। जब सामंथा रूथ प्रभु, कुशा कपिला और करिश्मा कपूर ने अपने तलाक की घोषणा की, तब उन्हें भी इसी तरह की प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ा था। यह लगभग वैसा ही है जैसे कि अगर किसी महिला की पहचान उसके पिता, भाई, पति या बेटे के साथ नहीं जुड़ी है, तो उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाना चाहिए।

यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे भारत में एक अकेली महिला समाज के लिए और परिवार के ताने-बाने के लिए बहुत बड़ा खतरा है। समाज को किसने अधिकार दिया कि एक महिला की निजी जिंदगी को हथियार बनाकर उसे उसकी पेशेवर सफलताओं के खिलाफ इस्तेमाल किया जाए?

लोगों में इतना दुस्साहस कैसे पैदा हो जाता है कि अगर एक महिला अपनी खुशी को सबसे ऊपर रख रही है, तो उसे दया, बदनामी या उपहास की वस्तुओं के रूप में देखा जाए। एक उन्मुक्त आजाद महिला को हर चीज के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। हम किसी जेंडर को महज इसलिए शर्मिंदा क्यों करें, क्योंकि वो सिंगल हैं? फिर चाहे अपनी मर्जी से हों, तलाक लेकर या परिस्थितवश।

हमें दो चीजें याद रखनी चाहिए। तलाक किसी के लिए सबसे दुखद घटनाओं में एक हैं। ऐसा कदम उठाने का साहस करने वालों के प्रति हमें उदार रहना चाहिए ना कि उन्हें जज करना या उनका तिरस्कार करना चाहिए।

दूसरा, हमें इसे सहजता से लेना चाहिए कि व्यक्तिगत जीवन सार्वजनिक ड्रामा या शर्मिंदगी के बिना सुलझ सकता है। लोगों को जीने दीजिए! उन्हें इस त्रासदी से बाहर आने के लिए समय और अनुकूल माहौल दें, बजाय इसके कि उन्हें बिन मांगी राय से और ठेस पहुंचाएं।

यह भी न भूलें कि एक महिला मां, बेटी, बहन या पत्नी से कहीं ज्यादा हैं। उनके करियर, महत्वाकांक्षा और उनकी अपनी पहचान का जश्न मनाना सीखें, जैसे हम पुरुषों के साथ करते हैं। एक महिला की अहमियत सिर्फ उसके शादीशुदा होने से नहीं है बल्कि समाज में उसके योगदान, उसकी पर्सनल ग्रोथ, उसके निर्णय और चुनाव से है।

मोहिनी डे की पहचान सिर्फ एक नामी संगीतज्ञ के साथ जुड़ी कलाकार के रूप में नहीं है, वह अपनी क्षेत्र की महारती हैं, ऐसी महिला हैं जो प्रशंसा और सम्मान की हकदार हैं। उनका निजी जीवन उनका निजी है। सिंगल वुमन न तो खतरा हैं और न ही अधूरी हैं।

वे स्वार्थी या व्यभिचारी भी नहीं हैं। सिंगल वुमन भी ताकतवर, आजाद, मुक्त होती हैं। क्या आप जानते हैं कि विवाहित महिलाओं की तुलना में सिंगल महिलाएं अधिक समय तक जीवित रहती हैं! ऐसा नहीं है कि उन्हें आपकी मान्यता की जरूरत है, लेकिन उन्हें विवाहित महिलाओं के बराबर ही सम्मान मिलना चाहिए, उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए कि वे कौन हैं और न कि समाज उनसे क्या उम्मीद करता है।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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