क्या है सिंधु जल संधि?

क्या है सिंधु जल संधि?

जिस पर भारत को विश्व बैंक के तटस्थ विशेषज्ञ का साथ, जानें पाकिस्तान को कितना बड़ा झटका

ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर सिंधु जल संधि है क्या? इसे लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद क्या है? भारत इन विवादों को कैसे सुलझाना चाहता है? साथ ही पाकिस्तान किस तरह इस मुद्दे पर लगातार पलटी मारता रहा है? 
आइये जानते हैं…
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सिंधु जल संधि …
भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद के केंद्र में रही सिंधु नदी जल संधि में बदलाव के प्रयासों में जुटे भारत को इसके एक पहलू पर बड़ी जीत मिली है। दरअसल, विश्व बैंक की तरफ से नियुक्त विशेषज्ञ समिति ने इस संधि को लेकर एक ढाचांगत विवाद को सुलझाने के लिए भारत के रुख का समर्थन किया है। माना जा रहा है कि तटस्थ विशेषज्ञों की इस राय के बाद सिंधु नदी और इसकी सहायक नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर नए सिरे से समझौते की रूपरेखा तय होने का रास्ता साफ हो गया है। हालांकि, इसकी राह अभी इतनी भी आसान नहीं है। 

ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर सिंधु जल संधि है क्या? इसे लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद क्या है? भारत इन विवादों को कैसे सुलझाना चाहता है? साथ ही पाकिस्तान किस तरह इस मुद्दे पर लगातार पलटी मारता रहा है?\
कब और किसके बीच हुई थी संधि

  • भारत और पाकिस्तान के बीच में सिंधु जल संधि पर 19 सितंबर 1960 को कराची में हस्ताक्षर हुए थे। समझौता सिंधु नदी और इसकी सहायक नदियों के पानी के इस्तेमाल को लेकर हुआ था। 
  • विश्व बैंक की तरफ से पहल के बाद समझौते करने के लिए भारत-पाकिस्तान के बीच अलग-अलग स्तर पर 9 साल तक बात चली थी। भारत की तरफ से प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान की तरफ से राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान ने संधि पर हस्ताक्षर किए थे।
सिंधु जल संधि पर फिर समझौता क्यों चाहता है भारत?
भारत ने जनवरी 2023 में पाकिस्तान को सिंधु जल संधि में बदलाव की मांग से जुड़ा एक नोटिस भेजा। इसमें भारत ने संधि में सुधार की मांग की। इसके करीब डेढ़ साल बाद सितंबर 2024 में भारत ने एक बार फिर नोटिस भेजकर यही मांग दोहराई। इस बार भारत ने संधि की समीक्षा की मांग भी रख दी। 

बताया जाता है कि भारत ने यह मांग रखकर साफ कर दिया कि वह 64 साल पुरानी संधि को रद्द कर, नए सिरे से सिंधु जल के इस्तेमाल पर समझौता करना चाहता है। दरअसल, भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि का एक अनुच्छेद XII (3) कहता है कि दोनों सरकारों के बीच आपसी सहमति से समझौते को समय-समय पर बदला या सुधारा जा सकता है।

भारत ने इसी अनुच्छेद XII (3) का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तान को संधि में बदलाव पर बातचीत के लिए नोटिस भेजा। इस योजना की समीक्षा की मांग के पीछे रुख साफ करते हुए विदेश मंत्रालय से जुड़े सूत्रों ने कुछ रिपोर्ट्स में बताया था कि भारत ने सिंधु जल संधि में बदलाव की मांग क्यों की- 
 

जल-विद्युत परियोजनाओं पर विवाद को भी सुलझाना चाहता है भारत
इतना ही नहीं भारत ने हालिया समय में जम्मू-कश्मीर में दो जल-विद्युत परियोजनाओं के लिए निर्माण में तेजी लाने का फैसला किया है। इनमें से एक प्रोजेक्ट बांदीपोरा जिले में झेलम की सहायक किशनगंगा नदी पर है। वहीं दूसरा रातले हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट, किश्तवाड़ जिले में चेनाब नदी पर है। दोनों ही परियोजनाएं नदी के प्राकृतिक बहाव के जरिए बिजली पैदा करने की तकनीक पर आधारित हैं। इससे नदी की धारा या इसके मार्ग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। भारत ने इन प्रोजेक्ट्स से क्रमशः 330 मेगावॉट और 850 मेगावॉट स्वच्छ ऊर्जा पैदा करने का लक्ष्य रखा है। 
पाकिस्तान लगातार कर रहा है विरोध
लेकिन पाकिस्तान की तरफ से इन परियोजनाओं का विरोध किया गया है। पाकिस्तान का कहना है कि उसके अधिकार वाली दो नदियों पर भारत के यह प्रोजेक्ट्स सिंधु जल संधि का उल्लंघन हैं। भारत ने मुख्यतः इन दो जल-विद्युत परियोजनाओ पर विवाद को सुलझाने के लिए सिंधु जल संधि पर बातचीत की मांग रख दी। इसी के चलते पहले जनवरी 2023 और फिर सितंबर 2024 में भारत ने पाकिस्तान को दो नोटिस भेजे हैं। 
पाकिस्तान ने दिया तटस्थ विशेषज्ञों से जांच कराने का प्रस्ताव
पाकिस्तान की तरफ से भारत की दो परियोजनाओं पर सवाल उठाए जाने के मामले में भारत की तरफ से 2023 के बाद से भेजे गए नोटिस कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले औपचारिक बातचीत में भी भारत ने सिंधु जल समझौते में बदलाव की मांग रखी है। खुद पाकिस्तान ने 2015 में भारत के प्रोजेक्ट्स इनके सिंधु जल संधि पर पड़ने वाले असर की समीक्षा के लिए ‘तटस्थ विशेषज्ञ’ की नियुक्ति की मांग की थी। यह विशेषज्ञ पाकिस्तान की तरफ से दायर तकनीकी आपत्तियों की भी समीक्षा करने वाले थे। भारत की तरफ से पाकिस्तान के इस कदम को लेकर हामी भरने की बातें सामने आई थीं।

भारत तैयार, पर पाकिस्तान खुद पलटा 
हालांकि, पाकिस्तान ने एक साल बाद ही एकतरफा तरीके से प्रोजेक्ट्स की समीक्षा के लिए ‘तटस्थ विशेषज्ञों’ की नियुक्ति का अनुरोध वापस ले लिया। पाकिस्तान ने कहा कि वह अपनी आपत्तियों को नीदरलैंड्स के हेग स्थित परमानेंट कोर्ट ऑफ आरबिट्रेशन (पीसीए) ले जाना चाहता है, जहां उसकी आपत्तियों को लेकर फैसला आना चाहिए। हालांकि, भारत ने पाकिस्तान के इस कदम का विरोध किया। 

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भारत ने खुद ही आगे बढ़ाया कदम
भारत ने पाकिस्तान की पिछली मांग के तहत ही तटस्थ विशेषज्ञों से पाकिस्तान की आपत्तियों की जांच का अनुरोध किया। तब पाकिस्तान की तरफ से इस मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ले जाने की वजह से विश्व बैंक ने एक समानांतर जांच प्रक्रिया शुरू करने से इनकार कर दिया था। विश्व बैंक ने दोनों देशों से इस मामले को सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझाने की मांग की। 

हालांकि, पाकिस्तान ने 2017 से 2022 के बीच स्थायी सिंधु आयोग की बैठकों में अपनी आपत्तियों को लेकर भारत से कोई चर्चा नहीं की। भारत ने इस ओर कई कोशिशें भी कीं। हालांकि, इसे बातचीत को लेकर पाकिस्तान का रुख नकारात्मक ही रहा।

पाकिस्तान के इस रवैये को देखते हुए बाद में विश्व बैंक ने अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के साथ ही तटस्थ विशेषज्ञों को भी भारत के प्रोजेक्ट्स की समीक्षा के लिए नियुक्त कर दिया। अब इस तटस्थ विशेषज्ञों की जांच समिति ने पाकिस्तान की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए भारत के पक्ष में फैसला दिया है। 
 

क्यों अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण नहीं जा सकता यह विवाद?
भारत का कहना है कि पाकिस्तान की तरफ से इस मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ले जाने का प्रस्ताव सिंधु जल संधि के अनुच्छेद IX के तहत विवाद निपटान तंत्र का उल्लंघन है। इस संधि के अंतर्गत अगर कोई विवाद उभरता है तो उसे सुलझाने के लिए तीन स्तरीय तंत्र पहले से स्थापित है। ऐसे विवादों को पहले दोनों देशों के बीच स्थापित सिंधु आयोग में परखा जाएगा। यहां हल न होने की स्थिति में विवाद को विश्व बैंक की तरफ से नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञों के पास भेजा जाएगा। अगर यहां भी कोई हल नहीं होता है, तब इस मामले को हेग स्थित न्यायाधिकरण ले जाया जा सकता है। 

तब भारत ने स्पष्ट किया था कि एक ही सवाल पर एक साथ दो समानांतर प्रक्रियाएं शुरू करना और अलग-अलग निर्णयों के जरिए विवाद के   निपटान की बात सिंधु जल संधि के किसी भी अनुच्छेद में नहीं कही गई है। 

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