अब भारत लौटकर आ रही हैं पेशेवर प्रतिभाएं
भारत के आलोचक आरोप लगाते हैं कि हमारे पेशेवर विदेश जा रहे हैं, क्योंकि देश आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। उनका कहना है कि पश्चिम की ओर पलायन करने वाले प्रतिभावान लोगों में भारत के बेहतरीन सॉफ्टवेयर इंजीनियर, वैज्ञानिक, डॉक्टर और उद्यमी शामिल हैं। जबकि सच यह है कि प्रतिभा एक परिवर्तनशील वस्तु है।
यह दोनों ओर बहती है। कई भारतीय उद्यमी और पेशेवर- जो एक दशक पहले भारत छोड़ गए थे- वे आज भारत लौट भी रहे हैं। इसके खासे कारण हैं कि क्यों ऐतिहासिक ‘ब्रेन-ड्रेन’ (प्रतिभा-पलायन) भारत के लिए ‘ब्रेन-गेन’ (प्रतिभाओं की प्राप्ति) में परिवर्तित होने लगा है।
सिलिकॉन वैली के अग्रणी उद्यमी विवेक वाधवा का उदाहरण लीजिए। हाल ही में प्रकाशित एक लेख में वाधवा ने बताया कि क्यों प्रतिभाशाली भारतीय अमेरिका में सफल करियर बनाने के बाद भारत में अपने विश्वास और पैसों का निवेश कर रहे हैं।
वे लिखते हैं कि अमेरिका की इमिग्रेशन नीतियों से तंग आकर उच्च-कुशल भारतीय पेशेवर बड़ी संख्या में घर लौटकर आ रहे हैं और अपने साथ बेशकीमती विशेषज्ञता, बेहतरीन नेटवर्क और अच्छी-खासी धनराशि लेकर लौट रहे हैं। यह ‘रिवर्स ब्रेन-ड्रेन’ भारत की इनोवेशन-इकोनॉमी को पोषित कर रहा है।
वाधवा आगे बताते हैं कि वायोनिक्स बायोसाइंसेस के साथ उनका अनुभव इस बिंदु को और स्पष्ट करता है। उन्हें विदेश से प्रतिभाओं को नियुक्त करना पड़ता था और जटिल वीजा प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता था। इमिग्रेशन-विरोधी भावनाओं और नौकरशाही की लेटलतीफी के कारण समय पर अच्छी टीम बनाना लगभग बहुत कठिन हो जाता था।
इन चुनौतियों के चलते उन्होंने अपने रिसर्च एंड डेवलपमेंट (आरएंडडी) ऑपरेशंस को भारत में स्थानांतरित कर दिया, जहां उच्च-कुशल टैलेंट पूल तक आसान पहुंच थी, अनावश्यक लालफीताशाही नहीं थी और इनोवेशन को गति दी जा सकती थी।
अन्य उद्यमियों का कहना है बात केवल लागतों की ही नहीं। आज भारत का तकनीकी स्किलसेट भी विश्वस्तरीय हो गया है। यही कारण है कि 1,600 से अधिक बड़ी विदेशी कंपनियों ने भारत में वैश्विक क्षमता केंद्र (जीसीसी) स्थापित किए हैं।
ये केंद्र जटिल इंजीनियरिंग, आरएंडडी तथा अत्याधुनिक तकनीकी इनोवेशन करते हैं। उन्होंने सर्वोत्तम स्थानीय प्रतिभाओं की भर्ती के लिए टीसीएस और इंफोसिस जैसी भारतीय सूचना-प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा शुरू कर दी है।
हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2047 तक विकसित भारत के विजन को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता है। भारत विविधताओं से भरा देश है। उसका एक हिस्सा पहले से ही विकसित राष्ट्र है। दूसरा हिस्सा तेजी से विकसित हो रहा है।
तीसरे को विकसित होने में समय लगेगा। विकसित भारत का लक्ष्य रखते समय योजनाकारों को समझना होगा कि भारत अलग-अलग समय पर विकसित राष्ट्र का दर्जा प्राप्त करेगा, जिसे मोटे तौर पर प्रति व्यक्ति आय, मानव विकास सूचकांक और अन्य मापदंडों पर परिभाषित किया जाता है।
भारत में जर्मनी के पूर्व राजदूत वाल्टर जे. लिंडनर ने भी हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा कि भारत को विकासशील या विकसित के रूप में वर्गीकृत करना कठिन है। बेंगलुरू, पुणे और हैदराबाद जैसे शहर विकसित लगते हैं, जबकि भारत के गांव-देहात आज भी सदियों पीछे मालूम होते हैं।
यह द्वंद्व ही भारत को जटिल और आकर्षक बनाता है। वैसे भी अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण अब प्रायः उपयुक्त नहीं रह गए हैं। ‘विकसित’ का मतलब क्या है, यह कौन तय करता है? इनमें से कई परिभाषाएं पश्चिमी संस्थाओं से आती हैं।
विदेशों में रहकर काम करने वाले भारतीय इसे समझते हैं। जब देश की समाजवादी आर्थिक नीतियों ने यहां जीवन कठिन बना दिया था तो कई लोगों ने भारत छोड़ दिया। तब पश्चिम ने उनसे बेहतर भविष्य का वादा किया था। लेकिन आज वैसी बात नहीं है, क्योंकि अनेक पश्चिमी अर्थव्यवस्थाएं मंदी का सामना कर रही हैं।
ट्रम्प की इमिग्रेशन विरोधी नीतियों के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था में भूमिका चाहने वाले तकनीकी विशेषज्ञों और पेशेवरों के बीच ‘रिवर्स ब्रेन-ड्रेन’ में तेजी देखी जा सकती है। भारतीय प्रवासियों के प्रति अमेरिका की नस्लवादी घृणा कोई नई बात नहीं है। जैसा कि राजमोहन गांधी ने हाल ही में एक लेख में बताया कि अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने 1923 में एक निर्णय सुनाया था कि ‘भारतीय नागरिकता के लिए अयोग्य हैं!’
1960 के दशक के मध्य में जाकर भारतीयों को यूएस वर्क-वीजा दिया जाने लगा। इसके परिणामस्वरूप वहां जाने वाले भारतीय पेशेवरों की संख्या में वृद्धि हुई। इसने अगली आधी सदी तक भारत से ब्रेन-ड्रेन को परिभाषित किया। लेकिन अब यह प्रवाह उलट रहा है।
जैसा कि वाधवा बताते हैं, चीनी ग्रंथों के विशाल संग्रह पर प्रशिक्षित होने से डीपसीक ने चीन की समृद्ध सांस्कृतिक, दार्शनिक और साहित्यिक विरासत को आत्मसात कर लिया है। यह बताता है कि घरेलू डेटा पर एआई का विकास केवल भाषा के बारे में नहीं है- यह कृत्रिम मेधा की मूल प्रकृति को भी आकार देता है।
इन मायनों में तो भारत एआई के भविष्य को और अधिक पुनर्परिभाषित कर सकता है, क्योंकि हमारे यहां वेद, उपनिषद्, अर्थशास्त्र, संगम-साहित्य की महान परम्परा रही है। इस तरह के अवसर ही भारत को विकसित बनाएंगे, लेकिन यह एक साथ नहीं, बल्कि अंशों में होगा। प्रतिभाओं का भारत लौटकर आना इसी प्रक्रिया में है।
अपने देश में काम करने के बेहतर मौके मिल रहे हैं…
अमेरिका की इमिग्रेशन नीतियों से तंग आकर उच्च-कुशल भारतीय पेशेवर बड़ी संख्या में घर लौटकर आ रहे हैं और अपने साथ बेशकीमती विशेषज्ञता, बेहतरीन नेटवर्क और अच्छी-खासी धनराशि लेकर लौट रहे हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)