सृजन, साहस और शक्ति का पर्याय है महिला !

सृजन, साहस और शक्ति का पर्याय है महिला

8मार्च पर देश-दुनिया में महिला दिवस मनाया जाता है. छोटे-बड़े कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़ी महिलाओं की सिद्धियों को सम्मानित किया जाता है. पुष्पगुच्छ, पुरस्कार और न जाने क्या-क्या. पर क्या सिर्फ एक दिन महिलाओं का अस्तित्व मनाने के लिए काफी है?  

हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला निमित्त होती है पर हर सफल महिला के पीछे वह महिला स्वयं निमित्त होती है. जी हां, एक बार फिर से पढ़िये, आप कुछ गलत नहीं पढ़ रहे. आपने पढ़ा – हर सफल महिला के पीछे वह महिला स्वयं निमित्त होती है. महिला के पास सबसे बड़ी शक्ति उसका ‘सहज स्वीकार’ और ‘साहस’ है. आप जरा सोचिये, जिस घर में जन्म लिया है, बचपन बिताया है, माता-पिता, भाई-बहन का प्यार मिला है उस घर को लगभग चौबीस वर्ष की उम्र में छोड़कर अन्य घर में चले जाना और उस नये घर को अपना घर मानकर, जीवन उसी के इर्द-गिर्द बिताना सहज स्वीकार और साहस की बात नहीं है क्या!

पुरुष अपने कोई सगे-संबंधी के घर एक रात जाकर रहना सोचकर देखें. सहज स्वीकार तो दूर, इतना सोचने का साहस भी करना मुश्किल है. हां, पुरुष खुद का घर बनाने का साहस रखते है पर अन्य के घर में जाकर रहने का साहस? कितना समायोजन करना पड़ेगा, मानसिक और शारीरिक रूप से. जबकि महिला ‘कन्यादान’ विधि के साथ ही पलभर में वह सारे समायोजन कर लेती है, पहले अपने मानस से फिर रहन-सहन से. नये परिवेश में ढ़लना, अपना पुराना घर छोड़कर नये घर का स्वीकार करना, नये घर के रीति-रिवाज़ों को अपना लेना, उस घर के लोगों से आत्मियता बनाने जैसे परिवर्तन जितनी सहजता से एक महिला कर पाती है यह बिलकुल भी सामान्य बात नहीँ. और इस परिवर्तन के स्वीकार के कोई ट्युशन क्लास भी नहीं लगते कि वहां जाया जाये, सर्टिफिकेट मिल जाये और सीख लिये जाये.

स्थिति – परिस्थिति के सहज स्वीकार के लिए भी साहस चाहिए, और महिलाओं में यह भावना जन्म से ही जुड़ जाती है. यहां बात महिला और पुरुष की तुलना की नहीं है. अरे! दोनों के बीच तुलना हो भी नहीं सकती. दोनों अपनेआप में विशेष व भिन्न है. पर यहां बात महिलाओं के अस्तित्व व विकास की है. उनकी योग्यताओं की है. उनके स्व से सर्वस्व के निर्माण की है.   

चलिए जानते है कि एक महिला को जीवन में क्या चाहिए? स्वतंत्रता? सुरक्षा? सुख-सुविधा? समानता? सम्मान? स्वीकार? शांति? सही मानिये, तो यह सारा कुछ वह अपनेआप ही पाने में सक्षम है. उसे सिर्फ प्रेम चाहिए, समर्पणयुक्त प्रेम. जहां कहीं भी उसे ऐसी भावना अनुभूत होती है वे वहीं अपने अस्तित्व को पिघला देती है. और इसकी यही पिघलन एक सुंदर समाज का निर्माण करती है. महिला आंतरिक स्तर पर बहुत समृद्ध है. जरूरत है उसे स्वयं को एक ऊर्जा तत्व के रूप में देखने की. वह सिर्फ मानवीयता का ही अंश नहीं, समग्र अस्तित्व की संरचना का पूर्ण चक्र है. उसके भीतर सृजन भी है, पोषण भी है परिवर्तन का साहस व शक्ति भी है. एक नज़रिये से देखें तो महिला प्रकृति का अभिन्न अंग है. यह कहना बिलकुल भी अतिशयोक्ति मुक्त होगा कि पृथ्वी की सुंदरता भी महिलाओं के अस्तित्व के कारण है. 
हाल ही में सेतु प्रकाशन की पुस्तक ‘धरती का न्याय’ पढ़ने में आई.

‘स्त्री और प्रकृति’ प्रकरण में लेखक ने महिलाओं को प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षक के रूप में देखा है, और उन्हें सतत वृद्धि व विकास में मददगार माना है. वे लिखते है, “महिलाएँ किसी भा राष्ट्र की धुरी हैं. वे सजगतापूर्वक पूरी सृष्टि को संरक्षित रखने के साथ-साथ राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने का अभूतपूर्ण कार्य कर रही हैं. उनके प्रयासों से न केवल प्रकृति सन्तुलन की अव्यवस्था सुधर रही है, अपितु विकास की योजनाएँ भी दीर्घजीवी हो रही हैं.” लेखक ने महिलाओं को प्राकृतिक पर्यावरण की पुनर्वासकर्ता मानकर नये वातावरण के निर्माता के रूप में देखा है.

बिलकुल इसी तरह, हमें सदैव ध्यान में रखना चाहिए कि महिला जब अपनी गर्भ से बच्चे का सृजन करती है तो वह केवल परिवार को बढ़ाने या कुलदीपक पैदा करने के लिए नहीं करती, बल्कि प्रकृति के उद्देश्य को केन्द्र में रखकर मानव जाति की वृद्धि के लिए करती है. महिला द्वारा प्रकृति मनुष्य जाति को बरक़रार रख पाती है. वरन् महिलाओं का सम्मान संपूर्ण मानवसमाज की आधारशिला घढ़ता है. महिलाओं की अनिवार्यता केवल किसी घर, समाज या देश के लिए ही नहीं बल्कि पूरी सृष्टि के लिए अहम है. इसीलिए महिलाओं का सम्मान किसी एक दिन तक सिमीत न रहकर जीवनपर्यंत होना चाहिए.

वर्तमान समय भी महिलाओं को केवल आचार प्रधान न रहकर विचार प्रधान बनने की मांग करता है. विचारों की प्रधानता से अपनी योग्यताओं को बढ़ाते रहो. घर से बाहर निकलकर योग्यताओं के सहारे विकास हासिल करते रहो. जीवन काफी लंबा है. कब, कौन सी स्थिती-परिस्थिती से रूबरू होना पड़ेगा कोई नहीं जानता, इसलिए स्वयं को दूसरों पर आधारित न रखकर अपने अस्तित्व की जिम्मेदारी व आनंद खुद लेना सीखो. आपकी क्षमताओं से घर, समाज व देश के विकास में भागीदारी आपके अस्तित्व का विशेष सम्मान ही तो है. 

केवल एक दिन ‘विश्व महिला दिवस’ का ढींढोरा पीटकर क्या मिलेगा! आग हो तुम, अपनी क्षमताओं को पहचानो और अपनी योग्यताओं को बढ़ाओ क्योंकि तुम्हारी हर सफलताओं के पीछे तुम स्वंय निमित्त हो, हमेशा याद रखना. पृथ्वी को सुंदर बनानेवाली सारी महिलाओं को वंदन एवम् अभिनंदन .

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि …. न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.] 

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