युद्ध की धधकती आग से उभरती हुई महाशक्ति
नया रूस: युद्ध की धधकती आग से उभरती हुई महाशक्ति, क्या ये दूसरा जन्म है
दुनिया के सबसे बड़े देश रूस में युद्ध की स्थिति में भी सैनिकों को गर्म खाना मुहैया कराया जाता है. रूस-यूक्रेन युद्ध के समय 2022 के बाद से 4 प्रांत इसमें शामिल किए गए. जानिए मनीष झा की पूरी ग्राउंड रिपोर्ट से क्या ये रूस का पुनर्जन्म है?
पिछले तीन सालों से मैं रूस-यूक्रेन युद्ध की रिपोर्टिंग कर रहा हूं. इस दौरान कई बार डोनबास, खेरसॉन और झेपोरेजिया के युद्धग्रस्त इलाकों में जाना हुआ. हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की रिपोर्टिंग के लिए अमेरिका गया था, फिर फरवरी को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात के दौरान मुझे व्हाइट हाउस में दोनों नेताओं से रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़े सवाल पूछने का अवसर मिला.
भारत लौटते ही ट्रम्प और यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के बीच व्हाइट हाउस में हुई जुबानी जंग देखने को मिली. अब तक रूस बनाम अमेरिका-नाटो के बीच चल रही यह लड़ाई एक त्रिकोणीय संघर्ष का रूप ले चुकी थी. ट्रम्प ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से वार्ता के लिए अपने विशेष दूत विटकॉफ़ को मॉस्को भेजा और मैंने भी नए समीकरणों को समझने के लिए उसी दिन मॉस्को और फिर युद्धक्षेत्र की ओर रवाना हो गया.
संयोग से, 18 मार्च को जब ट्रंप और पुतिन फोन पर बातचीत कर रहे थे, मैं झेपोरेजिया के प्रमुख शहर मेलीटोपोल में था. इसके कुछ ही दिनों बाद, जब ट्रम्प और ज़ेलेंस्की के बीच टेलीफोन पर संवाद हुआ, तब मैं झेपोरेजिया न्यूक्लियर प्लांट के अंदर मौजूद था, जहां प्लांट पर हुए ड्रोन और मिसाइल हमलों के कारण उत्पन्न सुरक्षा चिंताओं का आकलन कर रहा था. अज़ोव सागर के तट पर बैठकर मैंने खुद से यह सवाल किया क्या यह रूस का पुनर्जन्म है?
रूस: आकार में बढ़ता और आत्मविश्वास में मजबूत होता राष्ट्र
रूस दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जिसका क्षेत्रफल हाल के वर्षों में बढ़ा है. 2014 में क्रिमिया रूस का हिस्सा बना और 2022 के बाद यूक्रेन के चार प्रांत डोनेट्स्क, लुहंस्क, खेरसॉन और झेपोरेजिया को रूस में सम्मिलित हो गए. यदि तुलना करें, तो यह क्षेत्र भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के बराबर या यूरोप के कई छोटे देशों से भी बड़ा है.
इस पर बहस हो सकती है कि यह सही था या गलत, लेकिन यह निर्विवाद सत्य है कि अब किसी भी हालत में ये क्षेत्र रूस से अलग नहीं किए जा सकते. रूस पहले से ही विश्व का सबसे बड़ा देश था और इन नए क्षेत्रों के जुड़ने से इसका आकार और बढ़ गया.
हालांकि, इस पूरी प्रक्रिया को केवल एक भूमि अधिग्रहण कहकर नहीं देखा जा सकता. तीन सालों के घटनाक्रम पर नजर डालें तो यह रूस के आत्मबोध, उसकी शक्ति की पुनर्स्थापना और सोवियत संघ के विघटन के बाद खोए आत्मविश्वास को फिर से हासिल करने का एक प्रयास प्रतीत होता है. अमेरिका सहित 30 से ज्यादा देशों ने रूस पर अप्रत्याशित आर्थिक और सैन्य प्रतिबंध लगाए, लेकिन रूस ने हार नहीं मानी. दुनिया का कोई अन्य देश इस स्थिति में होता तो शायद अब तक घुटने टेक चुका होता, लेकिन रूस ने विपरीत परिस्थितियों से उबरकर खुद को और अधिक सशक्त बनाया.
अपने पैरों पर खड़ा होना सीखा रूस ने
फरवरी 2022 में जब पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण रूस में अचानक वीसा और मास्टरकार्ड ने काम करना बंद कर दिया था, तो आम नागरिकों को जबरदस्त कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. दैनिक जरूरतों से लेकर चिकित्सा सुविधाओं तक, हर चीज प्रभावित हुई. इसके अलावा, यूक्रेनी नागरिकों के खिलाफ युद्ध लड़ने का नैतिक संकट भी रूसी समाज में गहराई तक मौजूद था. यह स्थिति महाभारत के अर्जुन की दुविधा जैसी थी. जहां रूसी सेना अपने ही पूर्व सहयोगियों के विरुद्ध लड़ रही थी.
युद्ध के शुरुआती महीनों में रूसी सेना को कुछ क्षेत्रों से पीछे हटना पड़ा, जिससे लोगों में आशंका और असंतोष उत्पन्न हुआ. जब मैं डोनेट्स्क और मारियुपोल से रिपोर्टिंग कर मॉस्को या सेंट पीटर्सबर्ग लौटता था, तो लोग मुझसे युद्धक्षेत्र की वास्तविकता के बारे में पूछते थे. उन्हें लगता था कि क्रेमलिन उनसे कुछ छुपा रहा है.
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस स्थिति को भलीभांति समझा और लगातार जनता से संवाद बनाए रखा. धीरे-धीरे परिस्थितियां बदलीं लोगों का विश्वास बढ़ा, सैनिकों की भर्ती में पारदर्शिता आई और समय पर वेतन व अन्य सुविधाएं मिलने से सेना का मनोबल ऊंचा हुआ. 2023 की शुरुआत में जब मैं अवदीवका के युद्धक्षेत्र में रूसी सैनिकों से मिला तो उन्होंने मुझे गर्म खाना खिलाया. यह देखकर मुझे एहसास हुआ कि जो देश अपनी सेना को युद्ध के मैदान में ताजा भोजन भेज सकता है, उसे हराना आसान नहीं है.
समय के साथ जनता के विचार भी बदलने लगे. 2022 में, जब लोग राष्ट्रपति पुतिन और युद्ध के फैसले की आलोचना करते थे तो 2023 तक वे मानने लगे कि रूस के पास युद्ध के अलावा कोई विकल्प नहीं था. पश्चिमी हथियारों से लैस यूक्रेनी सेना शुरू में डटी रही, लेकिन जल्द ही उन्हें यह एहसास हो गया कि वे केवल पश्चिमी शक्तियों के हाथों की कठपुतली हैं. यही कारण है कि 2022 के अंत के बाद यूक्रेनी सेना को कोई महत्वपूर्ण सफलता नहीं मिली.
मारियुपोल : नवनिर्माण की मिसाल
मारियुपोल का उदाहरण इस बदलाव का सबसे स्पष्ट संकेत है. मई 2022 में जब मैंने अज़ोव स्टील प्लांट की निर्णायक लड़ाई और मारियुपोल शहर की तबाही की रिपोर्टिंग की थी, तब यह सवाल उठाया था कि क्या पुतिन इस शहर का पुनर्निर्माण उसी तरह करेंगे जैसे उन्होंने चेचन्या युद्ध के बाद ग्रोज़नी का किया था?
अब तीन साल बाद जब मैं मारियुपोल लौटा, तो शहर का दृश्य पूरी तरह बदल चुका था. कई इलाकों को देखकर यह विश्वास ही नहीं होता कि यहां कभी भीषण युद्ध हुआ था.
इस पुनर्निर्माण के पीछे क्रेमलिन की प्रभावी रणनीति और जनता के साथ निरंतर संवाद की महत्वपूर्ण भूमिका रही. राष्ट्रपति पुतिन के नेतृत्व में रूस ने पश्चिमी शक्तियों के खिलाफ एक मजबूत प्रतिरोध विकसित किया. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जो बाइडेन की यूक्रेन यात्रा रूसी जनता के लिए एक निर्णायक क्षण साबित हुई. इसने रूसियों को यह स्पष्ट कर दिया कि यह सिर्फ यूक्रेन की लड़ाई नहीं थी, बल्कि रूस बनाम पश्चिम की महायुद्ध था और इसमें हर नागरिक को अपनी भूमिका निभानी थी.
नया रूस : आत्मविश्वास से भरा महाशक्ति
रूस ने न केवल पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना किया, बल्कि उनकी काट भी निकाली. आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद उसकी अर्थव्यवस्था स्थिर बनी रही, सैन्य उत्पादन बढ़ा, और आंतरिक मोर्चे पर मजबूती आई.
अब, तीन सालों के बाद, यह स्पष्ट है कि रूस पहले की तुलना में अधिक आत्मनिर्भर, अधिक आत्मविश्वासी और अधिक शक्तिशाली हो चुका है.
क्या यह रूस का दूसरा जन्म है?
संभवतः हां यह नया रूस है जो संघर्षों से सीखकर और अधिक दृढ़ होकर उभरा है. पश्चिमी ताकतों के सभी प्रयासों के बावजूद, रूस न केवल टिका रहा, बल्कि उसने अपनी वैश्विक स्थिति को और अधिक मजबूत किया.
इतिहास गवाह है कि जब भी रूस पर दबाव बढ़ा है, उसने पहले से कहीं अधिक शक्ति के साथ वापसी की है और शायद, यही रूस की असली पहचान है.