क्या है AMRCD और कितना कारगर?
सरकारी कंपनियों के झगड़े निपटाने का नया तरीका: क्या है AMRCD और कितना कारगर?
सरकार के अधीन काम करने वाली कंपनियों को सेंट्रल पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेज यानी CPSE कहते हैं. इनके बीच अक्सर पैसों और व्यापार से जुड़े झगड़े होते रहते हैं.
भारत सरकार ने सरकारी कंपनियों (CPSEs) के आपसी व्यापारिक मतभेदों को सुलझाने के लिए एक खास सिस्टम बनाया है, जिसे ‘एडमिनिस्ट्रेटिव मैकेनिज्म फॉर रेजोल्यूशन ऑफ सीपीएसई डिस्प्यूट्स’ (AMRCD) कहते हैं. ये तरीका सिर्फ सरकारी कंपनियों के बीच के झगड़े ही नहीं, बल्कि सरकारी कंपनियों और सरकारी विभागों के बीच के झगड़े भी देखता है. लेकिन इसमें रेलवे, इनकम टैक्स, कस्टम और एक्साइज विभागों से जुड़े झगड़े शामिल नहीं हैं.
पहले सरकारी कंपनियों के आपसी विवाद लंबे समय तक कोर्ट में अटके रहते थे. इससे सरकारी पैसा और समय दोनों की बर्बादी होती थी. कई मामले सालों तक अदालतों में चलते रहते थे. इससे सरकारी विकास योजनाओं और निवेश परियोजनाओं में देरी होती थी. इस समस्या को हल करने के लिए केंद्र सरकार ने AMRCD लागू किया.
सरकारी कंपनियों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए ये सिस्टम डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक एंटरप्राइजेज (डीपीई) ने बनाया है और इसे 22 मई 2018 को जारी किया गया था. AMRCD का उद्देश्य है कि सरकारी विभागों और कंपनियों के बीच कानूनी लड़ाइयों को कम किया जाए और उन्हें बिना कोर्ट जाए ही आपसी सहमति से हल किया जाए. लेकिन बड़ा सवाल यह है क्या यह सिस्टम वास्तव में कारगर साबित हुआ है? कितने विवाद अब तक सुलझे और कितने अब भी अटके हैं?
ये सिस्टम काम कैसे करता है?
सरकारी कंपनियों के बीच व्यापारिक झगड़े सुलझाने के लिए दो लेवल बनाए गए हैं. पहले लेवल पर जब दो सीपीएसई कंपनियों या सरकारी विभागों के बीच झगड़ा होता है, तो उसे सुलझाने के लिए एक कमेटी बनाई जाती है. इस कमेटी में उन मंत्रालयों/विभागों के सचिव (सेक्रेटरी) होते हैं, जिनके अधीन झगड़ा करने वाली कंपनियां या विभाग आते हैं. साथ ही कानूनी मामलों के सचिव (सेक्रेटरी, डिपार्टमेंट ऑफ लीगल अफेयर्स) भी होते हैं.
दोनों मंत्रालयों/विभागों के फाइनेंशियल एडवाइजर (एफए) इस कमेटी के सामने झगड़े से जुड़े मुद्दे रखते हैं. अगर दोनों झगड़ा करने वाली कंपनियां एक ही मंत्रालय/विभाग के अधीन आती हैं, तो कमेटी में उस मंत्रालय/विभाग के सचिव, कानूनी मामलों के सचिव और डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक एंटरप्राइजेज के सचिव होते हैं.
ऐसे मामले में फाइनेंशियल एडवाइजर और उस मंत्रालय/विभाग के एक जॉइंट सेक्रेटरी कमेटी के सामने बात रखते हैं. अगर झगड़ा किसी सीपीएसई और राज्य सरकार के किसी विभाग के बीच है तो केंद्र सरकार के उस मंत्रालय के सचिव जिसमें सीपीएसई आती है, कानूनी विभाग के सचिव और राज्य सरकार के मुख्य सचिव द्वारा नामित एक वरिष्ठ अधिकारी कमेटी में शामिल होंगे.
पहले लेवल के फैसले से नाखुश हो तो क्या करें?
अगर कोई सरकारी कंपनी या सरकारी विभाग पहले लेवल (टियर) की कमेटी के फैसले से खुश नहीं है, तो वो दूसरे लेवल पर कैबिनेट सचिव (कैबिनेट सेक्रेटरी) के सामने अपील कर सकता है.
लेकिन, अपील पहले लेवल के फैसले की कॉपी मिलने के 15 दिनों के अंदर करनी होती है. अपील अपने मंत्रालय/विभाग के जरिए कैबिनेट सचिव के पास भेजनी होती है. कैबिनेट सचिव का फैसला अंतिम होगा और सभी पक्षों को उसे मानना पड़ेगा.
AMRCD का नियम क्या कहता है?
एएमआरसीडी नियम के हिसाब से जब भी कोई सीपीएसई कंपनी किसी दूसरी सरकारी संस्था के साथ व्यापार का समझौता करती है, तो उस समझौते में एक खास बात लिखी होनी चाहिए. इसे ‘आर्बिट्रेशन क्लॉज’ कहते हैं.
इस क्लॉज का मतलब है कि अगर भविष्य में समझौते को लेकर कोई झगड़ा होता है, तो उसे सिर्फ एएमआरसीडी तरीके से ही सुलझाया जाएगा, कोर्ट-कचहरी में नहीं. एएमआरसीडी सिस्टम से जो भी फैसला होगा, उसे दोनों पक्षों को मानना पड़ता है. इससे फायदा ये होता है कि सरकारी कंपनियों को कोर्ट-कचहरी के चक्करों से बचाया जाता है. झगड़े जल्दी और आसानी से सुलझ जाते हैं.
अभी तक कितने झगड़े आए और उनका क्या हुआ?
संसद में सरकार ने बताया, अभी तक अलग-अलग सीपीएसई कंपनियों ने कुल 195 झगड़े उठाए हैं. इनमें से 50 झगड़ों को तो शुरुआती जांच में ही खारिज कर दिया गया है. ये जांच उस सीपीएसई कंपनी के प्रशासनिक मंत्रालय के फाइनेंशियल एडवाइजर करते हैं, जिसने झगड़ा उठाया है. 50 और झगड़ों को ‘कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज’ (सीओएस) ने सुलझा दिया है. बाकी बचे हुए झगड़ों को अभी मौजूदा नियमों के हिसाब से सुलझाया जा रहा है.
AMRCD कितना कारगर साबित हुआ?
एएमआरसीजी के जरिए छोटे-मोटे विवाद जल्दी सुलझ जाते हैं, जिससे सरकारी कंपनियों का समय और पैसा बचता है. कोर्ट में जाने की जरूरत नहीं पड़ती, जिससे कानूनी खर्च कम होता है. कई कंपनियों को लंबी कानूनी प्रक्रिया से राहत मिली है.
सरकार ने पहले सरकारी कंपनियों (सीपीएसई) के बीच और सीपीएसई कंपनियों और सरकारी विभागों के बीच व्यापारिक झगड़े सुलझाने के लिए एक पुराना तरीका बनाया था, जिसे ‘परमानेंट मशीनरी ऑफ आर्बिट्रेशन’ (पीएमए) कहते थे. डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक एंटरप्राइजेज (डीपीई) ने इस तरीके के बारे में कुछ नियम बनाए थे, जो अलग-अलग तारीखों (12 जून 2013, 24 मार्च 2014, 26 मार्च 2014 और 11 अप्रैल 2017) को जारी किए गए थे. ये नियम बताते थे कि कैसे सीपीएसई कंपनियों के बीच के झगड़े और सीपीएसई कंपनियों और सरकारी विभागों के बीच के झगड़े सुलझाए जाएंगे.
सरकार ने देखा कि पहले वाला तरीका (पीएमए) उतना असरदार नहीं था और झगड़ा करने वाली कंपनियां उसे मानने में आनाकानी करती थीं. इसलिए, सरकार ने एक नया और ज्यादा ताकतवर सिस्टम AMRCD बनाया.