हिन्द-प्रशांत इलाके से भारत का 95 फीसदी व्यापार होता है

क्या है हिंद-प्रशांत समुद्री इलाका, भारत की सुरक्षा और व्यापार के लिए कितना अहम?

हिंद-प्रशांत एक बड़ा समुद्री इलाका है, जो भारत के पश्चिम से लेकर ऑस्ट्रेलिया और जापान तक फैला है. इस इलाके से भारत का 95 फीसदी व्यापार होता है.

हिंद-प्रशांत एक ऐसा क्षेत्र है जो हिंद महासागर और प्रशांत महासागर को जोड़ता है. यह दुनिया के लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि यहाँ से व्यापार, ऊर्जा और सुरक्षा का खेल चलता है. भारत इस क्षेत्र में अपनी जगह बनाना चाहता है, लेकिन यह आसान नहीं है. इस विश्लेषण के जरिए हम आपको बताएंगे कि हिंद-प्रशांत भारत के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है, क्या दिक्कतें हैं और भारत क्या कर सकता है. 

हिंद-प्रशांत क्या है और भारत के लिए क्यों जरूरी है?
हिंद-प्रशांत एक बड़ा समुद्री इलाका है, जो भारत के पश्चिम से लेकर ऑस्ट्रेलिया और जापान तक फैला है. यहां से जहाज़ गुजरते हैं, जो भारत का सामान, तेल और गैस लाते-ले जाते हैं. मिसाल के तौर पर, भारत का 95% से ज्यादा व्यापार समुद्र से होता है. अगर ये रास्ते बंद हो जाएं, तो भारत का कामकाज ठप हो जाएगा. इसलिए भारत को इस क्षेत्र को सुरक्षित रखता है. 

एक बड़ा उदाहरण है: “भारत की समुद्री सुरक्षा हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर निर्भर करती है, जहां महत्त्वपूर्ण समुद्री संचार लाइनें हैं, जिनके माध्यम से भारत का अधिकांश व्यापार और ऊर्जा प्रवाहित होती है. यानी भारत की सुरक्षा और पैसा इस क्षेत्र से जुड़ा है.

यहां चीन भी अपनी ताकत दिखा रहा है. वह दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर में जहाज़ भेज रहा है. भारत को लगता है कि अगर चीन बहुत ताकतवर हो गया, तो खतरा बढ़ेगा. इसलिए भारत अपनी नौसेना को मजबूत कर रहा है. भारत का SAGAR प्लान यही कहता है – इस क्षेत्र में सबकी सुरक्षा और विकास हो.

साथ ही, यह क्षेत्र भारत को पैसे कमाने का मौका देता है. यहां ऑस्ट्रेलिया, जापान जैसे देशों के साथ व्यापार बढ़ सकता है. भारत ने 2022 में IPEF नाम का एक ग्रुप जॉइन किया, ताकि सामान की सप्लाई आसान हो. आर्थिक साझेदारी और एकीकृत आपूर्ति शृंखलाओं के माध्यम से भारत के विकास के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र केंद्रीय है. मतलब, यहां से भारत की फैक्ट्रियां चलेंगी और नौकरियां बढ़ेंगी.

इसके अलावा, हिंद-प्रशांत में जलवायु परिवर्तन की बड़ी समस्या है. समुद्र का पानी बढ़ रहा है, तूफान आ रहे हैं. भारत यहां ब्लू इकॉनमी (समुद्र से पैसा कमाने का तरीका) में आगे रहना चाहता है. भारत IORA, आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन, तथा ब्लू इकॉनमी के क्षेत्र में नेतृत्व के माध्यम से जलवायु अनुकूलन प्रयासों का नेतृत्व कर रहा है. इससे भारत की साख भी बढ़ेगी.

भारत के सामने क्या-क्या दिक्कतें हैं?
हिंद-प्रशांत में भारत की राह में कई रुकावटें हैं. चलिए इन्हें एक-एक करके समझते हैं:

1. पैसा और ताकत कम है: भारत की नौसेना में जहाज़ और हथियार कम हैं. चीन और अमेरिका के पास बहुत बड़ी नौसेना है. “भारत की हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति प्रक्षेपण की क्षमता सीमित नौसैनिक संसाधनों, बजटीय बाधाओं और सैन्य सीमाओं के कारण बाधित है.” 2023-24 में भारत का डिफेंस बजट कम पड़ गया, जबकि चीन ने 2025 में अपना बजट बढ़ाया.

2. साफ प्लान नहीं है: भारत के पास हिंद-प्रशांत के लिए एक बड़ा प्लान नहीं है. “भारत के पास अपने रणनीतिक विकल्पों और गठबंधनों का मार्गदर्शन करने के लिये एकल, संस्थागत हिंद-प्रशांत नीति कार्यढांचे का अभाव है. कुछ छोटे-छोटे प्लान जैसे SAGAR और एक्ट ईस्ट हैं, लेकिन ये साथ में नहीं चलते. इससे बाकी देशों को समझ नहीं आता कि भारत क्या चाहता है.

3. दोस्ती और आज़ादी का खेल: भारत अपनी आज़ादी बनाए रखना चाहता है. “रणनीतिक स्वायत्तता के लिये भारत की खोज़, चीन की मुखरता के विरुद्ध समान विचारधारा वाले गठबंधनों के साथ पूरी तरह से जुड़ने की इसकी क्षमता को सीमित करती है.” वह क्वाड (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया के साथ) में है, लेकिन चीन के साथ SCO और BRICS में भी है. रूस से हथियार लेना भी इसे मुश्किल बनाता है.

4. व्यापार में डर: भारत बड़े व्यापार समझौतों से डरता है. उसने 2019 में RCEP छोड़ दिया. “भारत की सतर्क व्यापार स्थिति ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में इसके आर्थिक एकीकरण को कमज़ोर कर दिया है.” भारत के पास कम FTA हैं, जबकि चीन और ASEAN का व्यापार बहुत बढ़ गया.

5. कमजोर संगठन: भारत IORA और BIMSTEC जैसे ग्रुप में कमज़ोर है. IORA, BIMSTEC और IPOI जैसी हिंद-प्रशांत संस्थाओं में भारत का प्रभाव अकुशल सचिवालय, समर्पित वित्त पोषण की कमी एवं प्रशासन की सुस्ती के कारण कमज़ोर हो गया है. इनके पास पैसा और लोग कम हैं.

6. घरेलू परेशानियां: भारत का ध्यान अक्सर घर की समस्याओं में उलझ जाता है. “भारत का इंडो-पैसिफिक फोकस प्रायः घरेलू मुद्दों और क्षेत्रीय अस्थिरता के कारण बाधित होता है.” मिसाल के लिए, गाजा संकट और मालदीव से तनाव ने भारत को परेशान किया.

7. समुद्री ढांचा कमज़ोर: भारत के बंदरगाह और जहाज़ बनाने की ताकत कम है.  भारत का बंदरगाह अवसंरचना, तटीय रसद और जहाज़ निर्माण क्षमता अपने हिंद-प्रशांत समकक्षों की तुलना में अविकसित है. सागरमाला और चाबहार जैसे प्रोजेक्ट धीमे चल रहे हैं.

भारत क्या कर सकता है?
इन दिक्कतों से निपटने के लिए भारत को कुछ बड़े कदम उठाने होंगे. चलिए आसान भाषा में समझते हैं:

1. एक बड़ा प्लान : भारत को SAGAR, एक्ट ईस्ट और IPOI को एक साथ जोड़कर एक साफ प्लान बनाना चाहिए. इससे सबको पता चलेगा कि भारत क्या चाहता है.

2. नौसेना को ताकत: भारत को ज्यादा जहाज़, गहरे बंदरगाह और रडार चाहिए. इससे वह समुद्र पर नज़र रख सकेगा और सुरक्षा दे सकेगा.

3. ग्रुपों बने अगुवा: क्वाड, IORA और BIMSTEC जैसे ग्रुप में भारत को लीड करना चाहिए. इनसे सुरक्षा और तकनीक में मदद मिलेगी.

4. बड़े प्रोजेक्ट तेज करें: चाबहार, कलादान और IMEC जैसे प्रोजेक्ट जल्दी पूरे हों. ये भारत को दुनिया से जोड़ेंगे.

5. समुद्र और जलवायु पर ध्यान: भारत को मछली पालन, समुद्री ऊर्जा और जलवायु की रक्षा करनी चाहिए. IORA और IPOI से यह काम आसान होगा.

6. व्यापार: भारत को ASEAN, ऑस्ट्रेलिया और UAE के साथ व्यापार समझौते बढ़ाने चाहिए. IPEF में भी सक्रिय रहना चाहिए.

7. IPOI को मजबूती: IPOI को एक साफ प्लान और पैसा देना चाहिए. ‘

8. संस्कृति का इस्तेमाल: भारत को स्कूल, शोध और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से दोस्ती बढ़ानी चाहिए. डायस्पोरा भी मदद कर सकता है.

आखिरी बात
हिंद-प्रशांत भारत के लिए एक बड़ा मौका है. यहां वह सुरक्षा, पैसा और साख बना सकता है. लेकिन इसके लिए उसे अपनी कमज़ोरिया ठीक करनी होंगी. 2025-27 में IORA की अध्यक्षता भारत के पास होगी. यह मौका उसे सही से इस्तेमाल करना चाहिए. अगर भारत सही कदम उठाए, तो वह हिंद-प्रशांत का बड़ा खिलाड़ी बन सकता है. यह आसान नहीं है, लेकिन नामुमकिन भी नहीं. बस थोड़ी मेहनत और साफ सोच चाहिए.

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