समय मूल्यवान है किंतु स्त्री उससे अधिक मूल्यवान है

समय मूल्यवान है किंतु स्त्री उससे अधिक मूल्यवान है
मनुष्य के प्राकृतिक अधिकारों जैसे स्वतंत्रता समानता आदि को प्राप्त करने का एक माध्यम है क्योंकि वही व्यक्ति अपने हित में स्वतंत्र रूप से विवेकशील निर्णय ले सकता है जिसे वास्तविकता का पूर्ण व सही ज्ञान हो तभी वह व्यक्ति वास्तव में स्वतंत्र माना जाएगा तभी कोई भी व्यक्ति समाज में अपना उचित स्थान बनाए रख सकता है चाहे एक स्त्री हो या पुरुष। आप अगर देखो दुनिया में मूल्यवान कोई भी चीज़ होता है या तो दुर्लभ होता है या जिसका कुछ महत्त्व होता है , और उसका मूल्य और अधिक तब होता है जिसका ना तो उत्पादन किया जा सकता है और ना ही उसे नियंत्रित किया जा सकता है जैसे की ‘समय’ उनमें से सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है दुनिया में आने वाले प्रत्येक मनुष्य के पास एक निश्चित मात्रा में समय होता है जो उसके जन्म के लेने के समय से ही निरंतर एक नियमित गति से घटता जाता है और जो क्षण व्यक्ति एक बार जी लेता है वह दोबारा उस जीवन में लौटकर नहीं आता अतः समय अत्यंत ही मूल्यवान होता है। लेकिन क्या स्त्री उससे भी अधिक मूल्यवान होती है इसको जानने के लिए सबसे पहले यह जानना होगा कि वास्तव में स्त्री को समय से क्यों तुलना कर रहे हैं। यह तय है कि जब-जब समाजसुधारक एवं चिंतक परंपरागत दबावों से मुक्त होकर समाज-व्यवस्था के जीर्णोद्धार की कोशिश में जुटते हैं, तब-तब उनकी वैचारिक चेतना सवाल बन कर हाशिए की अस्मिताओं को अपने प्रति आत्मसम्मान के भाव से आलोकित करती हैं। हमारे समाज में पुरुष व महिलाओं के बीच भारी असमानता है। महिलाओं को भेदभाव का सामना करना पड़ता है। घर से लेकर बाहर कार्यस्थल तक उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। महिलाओं ने यह साबित कर दिया है कि उसे यदि उचित अवसर व सुविधाएं मुहैया कराये जाएं तो वह पुरुषों से कम नहीं हैं। लेकिन, स्वतंत्रता के दशकों बाद भी महिलाओं को जो सामाजिक सम्मान मिलना चाहिए, वह प्राप्त नहीं हो सका है।

आज समय निकलता जा रहा है वापस नहीं आ सकता, ठीक उसी घडी के जैसी ही स्त्री भी होती है जो समय के साथ साथ बढ़ते हुए खुद को उस समय के समान समझ होते जा रही है जो निकलता जा रहा है वो वापस नहीं आता स्त्री को अगर हम साधन के रूप में लेते हैं तो यह मनुष्य के प्राकृतिक अधिकारों जैसे स्वतंत्रता समानता आदि को प्राप्त करने का एक माध्यम है, साम्यवादी विचारधारा के अनुसार पृथ्वी पर जन्म लेने वाले प्रत्येक मनुष्य का पृथ्वी के प्रत्येक संसाधन पर बराबर का अधिकार होता है लेकिन आज समाज में हमें अत्यधिक असमानता देखने को मिलती है की तुम एक स्त्री हो। अतः स्त्री अपनी इस असमानता को जानकर अपनी प्राकृतिक अधिकारों को प्राप्त नहीं कर पाती है और इस तरह की असमानता का जीवन जीती आ रही है। अतः समय और स्त्री दोनों अत्यधिक मूल्यवान होते हैं एक बार समय से तो समझौता किया जा सकता है, लेकिन स्त्री से समझौता नहीं किया जा सकता क्योंकि समय व्यक्ति को मिला एक ऐसा कोश है जिसका समाप्त होना तो निश्चित है लेकिन यदि स्त्री के सही मूल्य को समझकर उसे इज़्ज़त और सम्मान न दिया जाए तो आपके जीवन में मिला यह थोड़ा सा ही समय उस पूरे युग को व्यर्थ बना देता है। जबकि स्त्री ऐसा मूल्य है जो पूरी मानव जाति को वास्तविक मानवतावादी बनाती है और सर उठाकर जीना सिखाती है। आशा है आप सब इसी समय के साथ स्त्री को उनकी मानवता और सामाजिक दृष्टिकोण में अपना एक स्थान देंगे !!

अराधना कुमारी
( प्रवक्ता & समाज सेविका )

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *