मोहम्मद शहाबुद्दीन: 19 साल की उम्र में अपराध की दुनिया, फिर 24 साल में विधानसभा से लेकर देश की संसद तक का सफर
बिहार के बाहुबली और RJD के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन शनिवार को कोरोना से मौत हो गई. हत्या के मामले में वह तिहाड़ जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे थे.
बिहार के बाहुबली और RJD के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन शनिवार को कोरोना से मौत हो गई है (Mohammad Shahabuddin Death) की. हत्या के मामले में वह तिहाड़ जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे थे. बाहुबली नेता कहे जान वाला शहाबुद्दीन अपराध की दुनिया का बड़ा नाम रहा है. शहाबुद्दीन 1986 से मात्र 19 साल की उम्र में ही अपराध की दुनिया में शामिल हो चुका था. जिसके बाद वो 24-25 साल की उम्र में सक्रिय राजानीति का भी एक बड़ा नाम बना.
शुरूआत तब होती है जब जीरादेई (Ziradei) विधानसभा में आने वाले प्रतापपुर के रहने वाले शहाबुद्दीन को एक मामले में तब के विधायक डॉ. कैप्टन त्रिभुवन नारायण सिंह से एक मामले में पैरवी करवानी थी. त्रिभुवन नारायण 1985 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत कर विधायक बने थे. त्रिभुवन नारायण सिंह ने कहा था कि मैं बदमाशों और अपराधियों की पैरवी नहीं करूंगा. इस वाक्या के बाद शहाबुद्दीन को एक आपराधिक मामले में जेल जाना पड़ा था. इसके बाद 1990 में होने वाले विधानसभा चुनाव में शहाबुद्दीन ने निर्दलीय उतरने का फैसला किया और कैप्टन त्रिभुवन नारायण सिंह हो हरा दिया. कहा जाता है कि इस चुनाव में जीत के लिए शहाबुद्दीन ने सब हथकंडे अपनाए थे.
लालू प्रसाद यादव का मिला खूब साथ
5 साल विधायक रहने के बाद मो. शहाबुद्दीन को लालू प्रसाद यादव का साथ मिला. लालू प्रसाद यादव के साथ मिलकर शहाबुद्दीन ने मुस्लिम-यादव वोटरों पर पकड़ बनाई जिसकी बदौलत 1991 के लोकसभा चुनावों में जनता दल को बड़ी जीत हासिल हुई. 1995 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद की पार्टी जनता दल के टिकट पर जीरादेई से शहाबुद्दीन दूसरी बार मैदान में उतरे. जिसके चलते 1995 वो लगातार दूसरी बार विधायक बने. एक साल बाद ही 1996 में लोकसभा का चुनाव हुआ. राजद ने शहाबुद्दीन को सीवान (Siwan) से टिकट दे दिया और वो जीत दर्ज कर लोकसभा पहुंच गए.
2007 में सुनाई गई उम्रकैद की सजा
शहाबुद्दीन ने अपने इलाके में वाम पार्टियों के प्रभुत्व को तोड़ने के लिए खौफ का इस्तेमाल किया. छोटे शुक्ला महत्वपूर्ण वामपंथी नेता थे. शहाबुद्दीन ने फरवरी 1999 में शुक्ला को निशाना बनाया और उनका अपहरण कर हत्या करवा दी. शहाबुद्दीन ने 2004 का फिर आरजेडी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा और वो दूसरी बार सांसद बने. वहीं शुक्ला मर्डर केस में शहाबुद्दीन को दोषी पाया गया और 2007 में उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई. इसके बाद शहाबुद्दीन को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया गया.
पत्नी को उतारा चुनावी मैदान में
इसके बाद भी राजनीति में अपनी दमक बनाए रखने के लिए शहाबुद्दीन ने अपनी बीवी हीना शहाब को भी दो बार (2009 और 2014) में चुनाव में उतारा लेकिन वो दोनों बार हारी. शहाबुद्दीन हत्या के मामले में वह तिहाड़ जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा था. जिसके बाद शनिवार को दिल्ली के अस्पताल में उसकी कोरोना से मौत हो गई है.