शराब कारोबारी गोलीकांड के पीछे की कहानी:इंदौर में सिंडिकेट एक पार्टनर के पास 42% शेयर, वारदात से छोटे ठेकेदारों का व्यापार खत्म करने का था उद्देश्य
बड़े शराब माफिया छोटे ठेकेदारों को दबाकर व्यापार पर कब्जा करना चाहते थे। बताया जा रहा है कि शराब ठेकेदारों के सिंडिकेट के पीछे असली खिलाड़ी राजा रमेशचंद्र राय है। झांसी से इंदौर आकर सिंडिकेट का मुखिया बना। अकेला ही 42 % शेयर का पार्टनर बन गया। इसमें शहर के जितने भी प्रमुख ब्लैकर हैं, उनका इन्वेस्टमेंट है। अहाते के झगड़े को निपटाने को लेकर राय ने ही पिंटू भाटिया को मीटिंग करने को कहा था। अर्जुन ठाकुर के साथ हुए गोलीकांड के पीछे भी राय की भूमिका बताई जा रही है।
इंदौर में 5 दिन पहले 19 जुलाई को दिनदहाड़े विजय नगर की स्कीम-74 स्थित शराब ठेकेदारों के सिंडिकेट ऑफिस में गोलियां चलीं। इसकी गूंज भोपाल तक गई और गृहमंत्री के निर्देश पर इंदौर पुलिस सक्रिय हो गई। गोली कांड में चिंटू ठाकुर, सतीश भाऊ, गोविंद गहलोत, पप्पू और प्रमोद पकड़े जा चुके हैं। बाकी 8 फरार हैं। वहीं, तोड़फोड़ के मामले में पांच आरोपियों को नामजद केस दर्ज हुआ था। दोनों मामलों में अब भी कई लोग फरार हैं।
शराब ठेके से जुड़े सूत्रों की मानें तो सिंडिकेट में जो 42 % का पार्टनर रमेश राय है। वर्तमान में सिंडिकेट का कामकाज पिंटू भाटिया के हाथों में आने से राय का पावर कम होने लगा था। देवास-धार से आ रही अवैध शराब जो ब्लैकर बेचते हैं। उसे बेचने में परेशानी हो रही थी। बाणगंगा में पकड़ाई छह लाख की अवैध शराब भी इसी से जुड़ी है। ब्लैकर चाह रहे हैं, पिंटू भाटिया और एके सिंह उलझते जाएं। सिंडिकेट से जुड़ने के कारण उनकी अवैध शराब आसानी से बेची जा सके, इसलिए राय का सिंडिकेट का मुखिया बनना जरूरी है।
यह है शराब का पूरा खेल
पिछले साल शराब ठेकेदारों को करोड़ों का नुकसान हुआ था। इंदौर के बड़े शराब माफिया पिंटू भाटिया ने इस घाटे को रिकवर करने के लिए रमेशचंद्र राय और मनोज नामदेव को सिंडिकेट में शामिल किया। इस सिंडिकेट में 32 अलग-अलग पार्टनर हैं। जिन्होंने 980 करोड़ रुपए में इंदौर जिले का ठेका लिया है। इनमें पिंटू भाटिया 25%, रमेश चंद्र राय 25%, मनोज नामदेव 11% और अर्जुन ठाकुर 7% का पार्टनर है। बाकी अन्य छोटे शराब ठेकेदार हैं। जो दो से तीन प्रतिशत की पार्टनरशिप में इस सिंडिकेट से जुड़े हुए हैं।
छोटे ठेकेदारों को क्यों हटाना चाहते हैं
सूत्र बताते हैं, पिछले साल शराब दुकानों में घाटा होने के बाद 6% और 7% के हिस्सेदार रिंकू भाटिया और मोनू भाटिया ने अपना शेयर हटा लिया था। इसके बाद इंदौर की व्यवस्था गड़बड़ा गई थी। इंदौर में व्यवसाय ठप होने लगा था। जिसके बाद पिंटू भाटिया ने शराब के सप्लायर एके सिंह, झाबुआ के अल्पेश और धार के नन्हे सिंह को इस शराब सिंडिकेट से जोड़ा था। वर्तमान सिंडिकेट में बड़े नामों का हिस्सा लगभग 70% है। वहीं छोटे ठेकेदारों का 30% है। छोटे ठेकेदारों को मुनाफा ना देना पड़े। इस कारण से एक बार डराकर सभी बड़े पार्टनर इस पूरे सिंडिकेट पर कब्जा करना चाहते थे।
कैसे हुई प्लानिंग
लगातार पूरे खेल पर नजर रखे हैं। शराब ठेकों से जुड़े सूत्रों का कहना है कि रमेश राय 42 (सबसे ज्यादा) शेयर के साथ सिंडिकेट का सर्वेसर्वा है। पिछले हफ्ते सिंडिकेट ने इस साल के 910 करोड़ रुपए के ठेके की 40 करोड़ की बैंक गारंटी शासन को दी है। जो छोटे ठेकेदार पैसे नहीं दे पा रहे थे। उन्हें बाहर का रास्ता दिखाकर बैंक गारंटी के पैसे जमा करने के लिए रमेश राय ने नए लोगों को जोड़ा। इसी के चलते रमेश चंद्र राय के जरिए हेमू और चिंटू ठाकुर की सिंडिकेट में एंट्री हुई।
गांधी नगर नावदापंथ की दुकान को शराब ठेकेदार अर्जुन ठाकुर और मोहन ठाकुर चला रहा है। वह आसानी से नहीं मानेगा। बावजूद इसके दुकान चिंटू-हेमू को दे दी गई। इन दोनों ने वादे के अनुसार इस दुकान का अहाता चलाने के लिए सतीश भाऊ की एंट्री कराई। बस यहीं से 19 जुलाई को विवाद बढ़ता चला गया। पूरे खेल में पर्दे के पीछे खड़ा रमेश राय ऐसा होगा, पहले से जानता था। रमेशचंद्र राय के कहने पर ही पिंटू भाटिया ने अर्जुन ठाकुर को सिंडिकेट ऑफिस बुलवाया, जहां विवाद में गोलियां चल गईं।