बाजरा की फसल बर्बाद हो गई, गृहस्थी बह गई; बच्चों के लिए खाने और तन ढंकने के लिए कपड़े तक नहीं; दिव्यांग के सामने बड़ा संकट- अब परिवार कैसे पालें
मुरैना के बाढ़ ग्रस्त भानपुर से ग्राउंड रिपोर्ट
जिले के भानपुर गांव में बाढ़ का पानी जरूर उतर गया। ये अपने पीछे बर्बादी का मंजर छोड़ गया है। गांव में चारों तरफ सन्नाटा पसरा है। कुछ लोग अपने घरों की तरफ वापस आए हैं। देखा तो सिर्फ कीचड़ और मिट्टी ही बचे हैँ। फिलहाल ये मिट्टी बहुत गीली है। यहां घर मिट्टी के ढेर में तब्दील हो गए हैं। घरों के अंदर आज भी पानी भरा है। लोगों का गृहस्थी का सारा सामान बह गया। दैनिक भास्कर की टीम यहां रहने वाले बलराम गुर्जर के घर पहुंची।
बलराम गुर्जर का मकान-खेत सभी कुछ बाढ़ में डूब गया था। जमीन इतनी गीली व फिसलन भरी हो गई थी, उसमें चल पाना भी मुश्किल था। कुछ सामान बचा था, उसी से गुजारा चल रहा था। बलराम के 5 बच्चे हैं। 3 बेटी व 2 बेटे। हालत ये है कि बच्चों का तन ढंकने के लिए कपड़े तक निकालने का समय नहीं मिला था। बलराम पत्नी राजकुमारी बर्तन मांज रही थी। बलराम के पिता प्रेमसिंह व माता रामकली बेटे को तसल्ली देते हुए कह रहे थे, जिसने पेट दिया है, वह रोटी भी देगा।
प्रेमसिंह गुर्जर के 3 बेटे हैं। सबसे बड़े बलराम, दूसरे रामकिशन और तीसरे हरकिशन। बलराम ट्रक ड्राइवर थे। वर्ष 2017 में ट्रक का एक्सीडेंट हो गया, जिसमें दोनों पैर कट गए। दोनों पैर से दिव्यांग बलराम अब घर पर ही रहते हैं। गांव में प्रेमसिंह के पास 5 बीघा जमीन है, जो तीनों बेटों में बांट दी है। दो बीघा अपने पास गुजारे के लिए रख ली है। इस तरह बलराम के हिस्से में कुल एक बीघा खेती आई है। इस बार बाजरा की फसल उगाई थी, जो बाढ़ में पूरी तरह बर्बाद हो गई। अब परिवार के आगे भूखों मरने की नौबत आ गई है।
जिला प्रशासन से नहीं मिली मदद
बलराम गुर्जर ने बताया, अपाहिज होने से वह पहले ही बर्बाद था। रही-सही कसर बाढ़ ने पूरी कर दी। घर में खाने तक के लाले हैँ। खुद तो भूखे रहकर जैसे-तैसे गुजारा कर लेंगे, लेकिन बच्चों का क्या करें। बच्चों के तन पर कपड़ा नहीं है, पेट में रोटी नहीं है।
दैनिक भास्कर ने जब बलराम से पूछा, बाढ़ के बाद शासन ने सहायता नहीं की क्या? तो आंखों में आंसू भरते हुए कहा कि जब ईश्वर ही नहीं सहायता कर रहा, तो भला प्रशासन क्या करेगा। उसने बताया कि सरकार की तरफ से उसे कुछ भी सहायता प्राप्त नहीं हुई।
नहीं देखा जाती बेटे की हालत
प्रेम सिंह ने बताया, बेटे के परिवार की दुर्दशा देखते नहीं बनत। वे उसके घर का खर्च चलाने में मदद कर दिया करते हैं। प्रेम सिंह ने बताया, वे भी मजदूरी करके पेट पाल रहे हैं। वह और उनकी पत्नी अलग रहते हैं। बलराम ने बताया कि घर में छोटी टीबी, पंखा, गैस चूल्हा, पीने के पानी की मोटर, कूलर, अनाज आदि पूरा सामान बह गया। सोलर पैनल भी टूट गए। इस वजह से घर में अंधेरा है।
जानवरों को क्या खिलाएं
बलराम ने बताया, उसके पास एक भैंस व 3 गायें थीं। उनका भूसा भरा रखा था। बाढ़ में भूसा बह गया। अब समस्या है, खुद को खाने को नहीं है, जानवरों का क्या खिलाएं। खुद तो भूखे रह सकते हैं, लेकिन जानवर नहीं। गांव वालों से कुछ रुपए उधार ले लिए हैं, जिनसे भूसा खरीदकर जानवरों को खिला रहे हैं।
देखा नहीं जाता बच्चों का दुख
बलराम की मां रामकली ने बताया, बाढ़ में बच्चों के कपड़े, ओढ़ने-बिछाने के कपड़े व अन्य सामान बह गया। अब बच्चों को पहनाने के लिए कपड़े भी नहीं हैं। उन्होंने कहा, बच्चों का दुख देखा नहीं जा रहा। बेबस व मजबूर हो गए हैं।