Afghanistan: इन पांच देशों की कठपुतली बना Taliban, जानिए इसके पीछे की बड़ी वजह

Taliban Dominance In Afghanistan: एक तरफ जहां पाकिस्तान तालिबान की मदद कश्मीर मसले पर लेना चाहता है तो वहीं चीन वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट को पूरा करना चाहता है.

काबुल: तालिबान (Taliban) के वर्चस्व के पीछे चीन (China) और पाकिस्तान (Pakistan) की भूमिका महत्वपूर्ण है. अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होना पाकिस्तान और चीन के लिए खुशी की बात क्यों है? आखिर क्यों पाकिस्तान और चीन तालिबान की तारीफ और तरफदारी कर रहे हैं. इस पूरी लड़ाई में पाकिस्तान का रोल अहम रहा है. ना सिर्फ वहां के आतंकी बल्कि सेना और सरकार भी तालिबान के साथ हर मोर्चे पर खड़ी रही है.

तालिबान की अगवानी कर रही इमरान सरकार

कुछ महीने पहले तक जिसे दुनिया आतंकवादी कहती थी इमरान खान (Imran Khan) की सरकार उसकी अगवानी कर रही है. काबुल पर तालिबान के कब्जे से तालिबानियों के बाद अगर सबसे ज्यादा खुश कोई है तो वो है पाकिस्तान और इसकी वजह ये है कि अब वो अफगानिस्तान को अपनी उंगली पर नचा सकता है. जो चाहे वो करवा सकता है. इसीलिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने काबुल (Kabul) पर तालिबान के कब्जे की तुलना गुलामी की जंजीरें तोड़ने से की थी.

इमरान खान ने कही ये बात

पीएम इमरान खान ने कहा था कि जब आप किसी का कल्चर ले लेते हैं तो क्या करते हैं? ये कह रहे हैं कि वह कल्चर हमारे से ऊपर है. आप एक कल्चर के गुलाम बन जाते हैं. जब आप जहनी गुलाम बनते हैं तो याद रखिए असल गुलामी से ज्यादा बुरी जहनी गुलामी है. जहनी गुलामी की जंजीरें तोड़ना ज्यादा मुश्किल होता है. उन्होंने अफगानिस्तान में गुलामी की जंजीरें तो तोड़ दीं लेकिन जो जहनी गुलामी की जंजीरें हैं वह नहीं टूटतीं.

क्या है पाकिस्तान का प्लान?

पाकिस्तान की कोशिश होगी कि वो तालिबान को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करे. अफगानिस्तान में हिंदुस्तान की विकास परियोजनाओं में बाधा खड़ी करे और कश्मीर के नाम पर पाकिस्तान की ओर से चलाए जा रहे प्रॉक्सी वॉर का हिस्सा बने. इमरान खान को लगता है कि तालिबान की मदद से आतंकवादी संगठन टीटीपी यानी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान पर काबू पाना संभव होगा इसलिए वो तालिबान का खुलकर साथ दे रहा है.

बता दें कि तालिबान के समर्थक देशों में एक नाम चीन का भी है. चीन और पाकिस्तान दोस्त हैं और दोनों भारत को अपना दुश्मन मानते हैं. चीन तालिबान के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ा चुका है और अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान अब चीन के लिए खुला मैदान है. जहां वो अपने कारोबारी हित को साधने की पूरी कोशिश करेगा.

चीन क्यों कर रहा तालिबान से दोस्ती?

चीन का वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट, मिडिल ईस्ट से लेकर यूरोप और अफ्रीका तक जाएगा. इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए उसे तालिबान की जरूरत भी पड़ेगी क्योंकि ये रास्ता अफगानिस्तान से होकर ही आगे बढ़ता है. इसके अलावा अफगानिस्तान में गोल्ड, सिल्वर, आयरन और कॉपर समेत कई तरह की खनिज संपदाओं का भंडार है और चीन की नजर वहीं टिकी है.

चीन की तरह रूस भी अफगानिस्तान में इन खनिज संपदाओं का लाभ उठाना चाहता है और अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता है. जहां तक कतर की बात है तो कतर पहला ऐसा देश है जिसने तालिबान को राजनीतिक तौर पर मान्यता दी थी. दोहा में तालिबान का दफ्तर हो या अमेरिका के साथ उसकी डील कतर की भूमिका निर्णायक रही है.

हालांकि भारत के लिए अफगानिस्तान बहुत महत्वपूर्ण है. तालिबान का अब तक का रुख भारत के खिलाफ नहीं दिख रहा. तालिबान जानता है कि अगर उसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता चाहिए तो बिना भारत के ये संभव नहीं है. तालिबान की सरकार का स्वरूप अभी सामने नहीं आया है. लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि तालिबान ऐसी कठपुतली है जिसके पांच धागे पांच उंगलियों में हैं और वो अभी नाच रहा है.

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