शस्त्र लाइसेंस विशेषाधिकार है, न कि मूल अधिकार : हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आपराधिक केस में बरी होने मात्र से निलंबित या निरस्त शस्त्र लाइसेंस की बहाली नहीं की जा सकती। यह लोक शांति व सुरक्षा की स्थिति के अनुसार लाइसेंसिंग प्राधिकारी की संतुष्टि पर निर्भर करेगा। कोर्ट को इस मामले में दखल देने का अधिकार नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि शस्त्र लाइसेंस विशेषाधिकार है। नागरिक का मूल अधिकार नहीं है। यह परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने इंद्रजीत सिंह की याचिका पर दिया है।
कोर्ट ने कहा कि जानलेवा हमला करने का आरोपी बाइज्जत बरी हुआ है या संदेह का लाभ लेकर बरी हुआ है। इन तथ्यों पर विचार कर प्राधिकारी की संतुष्टि पर निर्भर करेगा कि लाइसेंस की बहाली हो या निरस्त रखा जाए।
कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि अपराध में शस्त्र का इस्तेमाल किया गया। इस कारण शस्त्र बहाल न करने का आदेश सही है।
उधर, याची का कहना था कि वह आपराधिक केस में बरी हो चुका है। इसलिए केस लंबित होने के कारण निरस्त शस्त्र लाइसेंस बहाल किया जाए।
कोर्ट ने कहा कि कानून में स्पष्ट नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में स्थित स्पष्ट की गई है। यह केस की परिस्थितियों व प्राधिकारी की संतुष्टि पर निर्भर करेगा।
# पश्चिमी यूपी में हाईकोर्ट की बेंच बनाने के केंद्रीय मंत्री के बयान के खिलाफ वकीलों का प्रदर्शन
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक अलग बेंच बनाने की केंद्रीय कानून राज्य मंत्री के बयान से हाईकोर्ट के वकीलों में गुस्सा है। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों का चुनाव एक दिसंबर को है। ऐसे में चुनाव लड़ने वाले वकीलों को मंत्री के पश्चिमी यूपी में हाईकोर्ट की बेंच बनाने के आश्वासन संबंधी बयान ने उन्हें एक मुद्दा दे दिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ताओं ने शुक्रवार को केंद्रीय कानून राज्यमंत्री एसपीएस बघेल के बयान के खिलाफ प्रदर्शन किया। वकीलों ने कहा कि उच्च न्यायालय के गौरवशाली इतिहास व अस्मिता से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
हाईकोर्ट के पास अंबेडकर चौराहे पर प्रदर्शन करने वालों में हाईकोर्ट के अधिवक्ता एसके मिश्र, अनुज मिश्र, ॠतेश श्रीवास्तव, सुभाष यादव, विवेक पाल, विश्वनाथ मिश्र, अमरेंद्र राय, अमरेंदु सिंह, हरिमोहन केसरवानी, केके यादव आदि अधिवक्ता शामिल थे।
# बिना सुनवाई के पारित श्रम अदालत का अवार्ड रद्द
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वरुण वेवरेजेज लिमिटेड कंपनी को आदेश दिया है कि वह श्रमिक को 50 हजार रुपए का 6 हफ्ते में भुगतान करें।
कोर्ट ने सुनवाई का मौका दिए बिना नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ आगरा के श्रम अदालत द्वारा 29 मई 2021 को जारी अवार्ड को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने साक्ष्य के साथ नए सिरे से केस दायर करने और श्रम अदालत को नियमानुसार निर्णय करने का निर्देश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने वरुण वेवरेजेज लिमिटेड कंपनी की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है।
याची का कहना था कि श्रम अदालत ने कंपनी का पक्ष सुने बिना श्रमिक को बकाया वेतन भुगतान के साथ बहाली करने का अवार्ड दिया है। जबकि श्रमिक के खिलाफ हत्या का केस दर्ज था। उसने इस तथ्य को छिपाकर नौकरी हासिल की। जब उसे आजीवन कारावास की सजा मिली, तो याची को पता चला। जिससे सेवायोजक का श्रमिक पर से विश्वास उठ गया है। इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया गया।
# पक्ष सुने बिना बर्खास्तगी अवैध
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बगैर बर्खास्तगी अवैध है।
कोर्ट ने कहा कि चार्जशीट का दो दिन में जवाब देने का अवसर देना और जांच रिपोर्ट पर सुनवाई का मौका न देना पर्याप्त नहीं है। बर्खास्त करने से पहले सुनवाई का मौका देना जरूरी है। यह आदेश न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ता शहाना परवीन की याचिका पर दिया है।
कोर्ट ने जिला कार्यक्रम अधिकारी बिजनौर के याची को बर्खास्त करने के आदेश को रद्द कर दिया है। साथ ही सभी परिलाभों सहित सेवा बहाली का निर्देश दिया है। कोर्ट ने सरकार को नियमानुसार नए सिरे से आदेश देने की छूट दी है।
कोर्ट ने कहा कि सरकार को याचिका का जवाब देने के लिए कई बार अवसर व अंतिम अवसर के बाद भी जवाब दाखिल नहीं किया गया। याचिका के कथनों को सही मानते हुए फैसला किया गया है।
याची अधिवक्ता का कहना था कि वह 1 जुलाई 1983 से संविदा पर लगातार कार्यरत है।
एक व्यक्ति को पुष्टाहार बेचने का आरोप लगाया गया। दो सदस्यीय समिति ने जांच की और आरोप सिद्ध करार देते हुए बर्खास्तगी की संस्तुति की। जांच रिपोर्ट पर याची का पक्ष सुने बगैर उसे बर्खास्त कर दिया गया। जिसे चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा बर्खास्त करने से पहले सुनवाई का मौका दिया जाना चाहिए था।