स्कूल फीस पर पेरेंट्स नाराज …… MP सरकार के दोनों आदेशों पर कहा- स्कूलों के पास फुल पावर, हमारे हाथ बांध दिए, कोर्ट जाएंगे

मध्यप्रदेश में स्कूल खोलने और फीस को लेकर स्कूल शिक्षा विभाग ने सोमवार को दो आदेश जारी किए। इसमें स्कूलों को पूरी फीस वसूलने और क्लास का तरीका तय करने का भी अधिकार दे दिया गया। बच्चों को स्कूल आने के लिए पेरेंट्स की अनुमति जरूरी है, लेकिन यह साफ नहीं कि अगर पेरेंट्स नहीं भेजना चाहते हैं तो क्या करेंगे। यदि स्कूल ऑनलाइन पढ़ाई बंद कर देगा तो क्या होगा। अब इन्हीं 3 वजहों से विवाद में आए इन निर्णय को लेकर जागृत पालक संघ मध्यप्रदेश भी कोर्ट जाने की तैयारी में है। शासन के अस्पष्ट निर्देशों को लेकर संघ एक याचिका दायर करने जा रहा है।

जानिए पालक संघ के अध्यक्ष और एडवोकेट चंचल गुप्ता की नजर से इन दोनों आदेशों के मायने…

क्या अब पेरेंट्स को पूरी फीस देना होगा?
सरकार ने ट्यूशन फीस लिए जाने के अपने पुराने आदेश वापस ले लिए हैं। स्कूल संचालक अब पूरी फीस ले सकते हैं। हालांकि, यह साफ नहीं है कि फीस किस तरह से वसूली की जाएगी। सरकार के पास इसे कंट्रोल करने की व्यवस्था नहीं है।

क्या अब सत्र के शुरुआत यानी जुलाई से फीस देनी होगी?
शासन ने नए आदेश जारी होने की तारीख से फीस लिए जाने के आदेश जारी किए हैं। इसमें यह साफ नहीं है कि फीस का निर्धारण कैसे होगा।

अगर शुरुआत से फीस भरने की डिमांड की जाती है तो क्या करेंगे?
शासन ने दो महीने पहले दिए आदेश में एक समिति बनाई थी। इसे कलेक्टर की निगरानी में बनाया गया। पेरेंट्स वहां शिकायत कर सकते हैं। चार सप्ताह में समिति को उस पर निर्णय देना अनिवार्य है।

क्या बच्चे को स्कूल भेजना जरूरी है?
शासन ने इसके लिए पेरेंट्स की अनुमति लिए जाने की शर्त को कायम रखा है। इसके साथ ही आदेश में पूरी क्षमता के साथ स्कूल खोलने की अनुमति दे दी है। ऐसे में स्कूलों पर निर्भर है कि वे किस तरह क्लास लगाते हैं।

स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों के पास क्या विकल्प है?
शासन ने नए आदेश में इसको लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं की है। यह स्कूल पर छोड़ा है कि वे किस तरह क्लास संचालित करते हैं। कुछ स्कूल ने सप्ताह में तीन-तीन दिन का टाइम टेबल बनाया है। इसमें तीन दिन ऑफलाइन और 3 दिन ऑनलाइन क्लास चलेंगी। इसमें यह भी शर्त है कि ऑनलाइन में जो पढ़ाया जाएगा, वह ऑफलाइन में नहीं पढ़ाया जाएगा। जो ऑफलाइन में पढ़ाया जाएगा वह ऑनलाइन में नहीं पढ़ाया जाएगा। ऐसे में बच्चे के लिए दोनों क्लास में उपस्थित होना अनिवार्य हो जाता है।

ट्रांसपोर्टिंग की व्यवस्था और किराया क्या होगा?
इस पर भी सरकार ने किसी तरह के निर्देश नहीं दिए हैं। यानी यह स्कूल और ट्रैवल्स कंपनी पर छोड़ दिया है। ऐसे में किराया क्या होगा और वह किस तरह लिया जाएगा, यह निर्णय उन्हें ही करना है। 3 दिन ही बच्चा स्कूल जाएगा तो पूरा शुल्क लिया जाएगा या आधा, यह भी स्पष्ट नहीं है।

क्या स्कूलों को अब भी ऑनलाइन क्लास जारी रखना अनिवार्य है?
नहीं ऐसा नहीं है। सरकार ने ऑनलाइन क्लास लगाने के लिए जरूर कहा है, लेकिन वह किस स्वरूप में या कितनी होगी उसका निर्णय स्कूलों को करना है।

कोरोना गाइडलाइन का क्या?
सरकार ने लॉकडाउन के सभी गाइडलाइन को रद्द कर दिया है। स्कूल शिक्षा विभाग ने संचालकों काे कोरोना गाइडलाइन का पूरी तरह पालन करने के निर्देश दिए हैं।

पूरी क्षमता से स्कूल खुलने पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कैसे होगा?
सरकार ने स्कूलों को खोलने के लिए आदेश देते हुए कोरोना गाइडलाइन का पूरी तरह पालन करने के निर्देश दिए हैं। ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग समेत अन्य तरह के नियमों का पालन कराना स्कूल प्रबंधन की ही जिम्मेदारी है।

बच्चों की जिम्मेदारी कौन लेगा?
शासन ने इस संबंध में भी कोई स्पष्ट निर्देश नहीं दिए है। निर्देश में बस इतना कहा गया है कि अगर किसी बच्चे को कोरोना होता है, तो स्वास्थ्य विभाग के निर्देशों का पालन किया जाए। ऐसे में इसकी पूरी जिम्मेदारी आखिर में पेरेंट्स पर ही होगी।

तो फिर पेरेंट्स की अनुमति वाली शर्त का क्या मतलब?
सरकार के अनुसार पेरेंट्स की अनुमति से ही बच्चों को क्लास और हॉस्टल में आने दिया जाएगा। ऐसे में अगर किसी बच्चे को कुछ होता है तो सरकार जिम्मेदारी से बच जाएगी।

फीस पर पेरेंट्स की राय?
दैनिक भास्कर ने सरकार के निर्णय को लेकर पेरेंट्स की राय ऑनलाइन सर्वे के जरिए जानी। इसमें से 45% ने माना कि सरकार ने प्राइवेट स्कूलों के दबाव में यह निर्णय किया है। इतने ही लोगों ने कहा कि फीस नहीं ली जानी चाहिए। कोरोना ने पेरेंट्स की कमर तोड़ दी है। सिर्फ 10% लोगों ने ही विभाग के निर्णय से सहमति जताई।

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