अमेरिका में चीन- रूस की नो इंट्री …… डेमोक्रेसी पर बाइडेन की समिट, भारत सहित 110 देश शामिल
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने डेमोक्रेसी पर वर्चुअल समिट बुलाई है। 9-10 दिसंबर तक चलने वाले में समिट में करीब 110 देशों शामिल होंगे। इसमें चीन को आमंत्रित नहीं किया गया है, जबकि ताइवान को बुलाए जाने की खबर है। मीटिंग मे ताइवान के शामिल होने की वजह से अमेरिका और चीन के बीच टेंशन बढ़ना तय है।
अगस्त में इस समिट की घोषणा के दौरान व्हाइट हाउस ने बताया था कि, बैठक में तानाशाही से बचाव, भ्रष्टाचार से लड़ने, और मानवाधिकारों को बढ़ावा देने जैसे 3 मुद्दों पर बातचीत होगी।
बाइडेन प्रशासन पर सवाल
इस समिट को लेकर बाइडेन प्रशासन की आलोचना भी हो रही है। प्रशासन पर देशों के बुलाए जाने को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। लिस्ट में में ब्राजील, फिलीपींस और पोलैंड जैसे देश भी शामिल है, जहां डेमोक्रेसी मे गिरावट देखी गई है। ब्राजील के राष्ट्रपति बोल्सोनारो की सत्तावादी झुकाव के कारण आलोचना जाती है। पाकिस्तान को भी मीटिंग मे शामिल किया गया है।
नाटो के सदस्य देश तुर्की का नाम भी इस लिस्ट से गायब है। अमेरिकी विदेश विभाग की वेबसाइट पर पोस्ट की गई लिस्ट के मुताबिक, फाइनल लिस्ट में रूस को छोड़ दिया गया है, जबकि दक्षिण एशिया क्षेत्र में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका को बाहर कर दिया गया है। मिडिल इस्ट के देशों से केवल इजरायल और इराक को शामिल किया गया है। अमेरिका के पारंपरिक अरब सहयोगी देश इजिप्ट, सउदी अरब, जार्डन, कतर और UAE को भी न्यौता नहीं दिया गया है।
जिनपिंग- बाइडेन के बीच हुई थी मीटिंग
कई मुद्दों पर जारी तनाव के बीच जो बाइडेन ने शी जिनपिंग से वर्चुअल मीटिंग की थी। बाइडेन ने जिनपिंग से कहा- दोनों देशों के बीच कॉम्पटीशन है, लेकिन हमें टकराव से बचने के लिए गार्डरेल जैसा सिक्योरिटी सिस्टम बनाना होगा।
जिनपिंग ने बाइडेन को अपना पुराना दोस्त बताया। कहा- हम दोनों को मिलकर काम करने की जरूरत है। किसी तनाव या टकराव से बचने के लिए जरूरत है कि कम्युनिकेशन और कोऑपरेशन बना रहे।
निरंकुशता के खिलाफ लड़ाई में लोकतंत्र जरुरी
बिडेन ने कई मौकों पर लोकतंत्र को निरंकुशता के खिलाफ लड़ाई में 21वीं सदी का जियोपॉलिटिकल चैलेंज बताया है। अप्रैल में संसद में दिए एक भाषण में उन्होंने कहा था कि, अमेरिका को जिनपिंग और दूसरे नेताओं को पीछे ढकेलना होगा, जो यह साबित करना चाहते हैं कि उनके सरकार की कार्यप्रणाली देश के लोगों के लिए बेहतर है। उन्होंने कहा था कि, जिनपिंग जैसे राष्ट्राध्यक्ष मानते हैं कि लोकतंत्र, 21वीं सदी में निरंकुशता के खिलाफ लड़ नहीं कर सकता।