सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से मांगा जवाब : आनंद मोहन की बढ़ेंगी मुश्किलें?

आनंद मोहन की बढ़ेंगी मुश्किलें? रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से मांगा जवाब
आनंद मोहन की रिहाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से रिकॉर्ड पेश करने को कहा है.

उमा कृष्णैया ने अपनी याचिका में बिहार सरकार का आदेश रद्द करने की मांग की है. उन्होंने कहा है कि मौत की सज़ा को जब उम्र कैद में बदला जाता है, तब दोषी को आजीवन जेल में रखा जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट भी ऐसे फैसला दे चुका है. लेकिन इस मामले में दोषी को रिहा कर दिया गया.

याचिका में क्या है दावा?

याचिका में यह भी कहा गया है कि 10 अप्रैल को सिर्फ राजनीतिक कारणों से बिहार सरकार ने जेल नियमावली के नियम 481(1)(a) को बदल दिया. याचिका में बताया गया है कि 2012 में बिहार सरकार की तरफ से बनाई गई जेल नियमावली में सरकारी कर्मचारी की हत्या को जघन्य अपराध कहा गया था. इस अपराध में उम्र कैद पाने वालों को 20 साल से पहले किसी तरह की छूट न देने का प्रावधान था. लेकिन पिछले महीने राज्य सरकार ने जेल नियमावली में बदलाव कर सरकारी कर्मचारी की हत्या को सामान्य हत्या की श्रेणी में रख दिया गया. इससे आनंद मोहन के जेल से बाहर आने का रास्ता साफ हो गया.

आनंद मोहन को हुई थी फांसी की सजा

गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की 1994 में मुजफ्फरपुर के खोबरा में हत्या हो गई थी. 2007 में निचली अदालत ने इस मामले में आनंद मोहन को फांसी की सजा सुनाई थी. बाद में पटना हाई कोर्ट ने इसे आजीवन कारावास में बदल दिया था. लेकिन 27 अप्रैल को उन्हें 14 साल जेल में बिताने के आधार पर रिहा कर दिया गया है.

उमा कृष्णैया के लिए पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा की दलीलें थोड़ी देर सुनने के बाद जस्टिस सूर्य कांत और जे के माहेश्वरी की बेंच ने नोटिस जारी कर दिया. इस दौरान कोर्ट में मौजूद पूर्व आईएएस और केंद्रीय मंत्री के.जे. अल्फोंस ने भी मामले में अपनी तरफ से एक आवेदन दाखिल करने की जानकारी जजों को दी. उन्होंने जेल नियमावली में बदलाव का विरोध करते हुए कोर्ट की सहायता करने की अनुमति मांगी. जजों ने कहा कि अगली तारीख पर वह उनकी बात भी सुनेंगे.

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