एनसीआरबी रिपोर्ट के अनुसार- महिलाओं से जुड़े अपराध में सिर्फ 24 फीसदी को सजा

दुष्कर्म जैसे जघन्य वारदात पर हर बार पूरे देश मे कोहराम मचता है। सरकार संवेदना  जाहिर करती है। संसद में शोर मचता है, लेकिन सुस्त जांच प्रक्रिया, लंबित मामलों और बेहद कम सजा की दर अपराधियों का हौसला बढ़ा रही है। एनसीआरबी की रिपोर्ट से इसका खुलासा हुआ।
एनसीआरबी रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2017 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए सजा की दर 24.5 फीसदी रही। दिल्ली में यह दर 35 फीसदी रही। जबकि गुजरात और पश्चिम बंगाल इस मामले में सबसे खराब रहे। यहां सजा की दर 3.1 और 3.2 प्रतिशत रही।

रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017 में बलात्कार के 32,599 मामले दर्ज किए गए, जिसमें बच्ची/बच्चे की संख्या 10,221 थी। हालांकि, यह 2013 की तुलना में काफी कम है। 2013 में 33,707 मामले दर्ज हुए थे।

जांच प्रक्रिया में तेजी की जरूरत: 

जानकारों का कहना है कि महिलाओं के विरुद्ध अपराध रोकने के लिए कठोर कानून ही पर्याप्त नही हैं। इन्हें अमल में लाने के लिए जांच प्रक्रिया में तेजी, सबूत इकट्ठा करने के लिए पर्याप्त आधारभूत संरचना और न्यायिक प्रक्रिया को मजबूत करने की भी जरूरत है। निर्भया मामले के बाद कानून तो कठोर हुआ, लेकिन ज्यादातर अपराध के मामलों की जांच सुस्त रही। इसकी वजह से सही समय में सजा नही दिलाई जा सकी।

फोरेंसिक लैब की कमी देरी की बड़ी वजह:

फोरेंसिक लैब की कमी जांच में देरी की एक बड़ी वजह है। वन स्टॉप सेंटर बनाए जा रहे हैं, वहां विशेषज्ञों की कमी है। सैकड़ों की संख्या में प्रस्ताव भी लंबित हैं। देश के सिर्फ तीन फोरेंसिक लैब में डीएनए सैंपल के जांच की सुविधा है। ये लैब चंडीगढ़, हैदराबाद और कोलकाता में मौजूद हैं। नए फोरेंसिक लैब बनाए जा रहे हैं लेकिन विशेषज्ञों की कमी महसूस की जा रही है। एक अधिकारी ने बताया कि एक साल में केवल 600 से 700 केस की ही जांच इन लैब में हो पाती है। वर्ष 2017 दिसंबर के डेटा के अनुसार, देश के सिर्फ उत्तरी क्षेत्र में 6,869 महिलाओं के खिलाफ यौन शोषण के मामले सामने आए हैं। वहीं लैब की कमी के कारण पश्चिमी क्षेत्र में 3,339 मामले लंबित हैं।
महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों में 2015 के मुकाबले 2016 में 2.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। हालिया रिपोर्ट के अनुसार पति या किसी रिश्तेदार द्वारा की गई क्रूरता की श्रेणी में 33.2 फीसदी मामले दर्ज किए गए। वहीं किसी महिला के शील को नुकसान पहुंचाने के इरादे से किया गया अत्याचार के मामले 27.3 प्रतिशत दर्ज किए गए।

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