Farmers Protest: किसान नेता राकेश टिकैत का दावा- आंदोलन में कोई मतभेद नहीं, सरकार फूट डालने की कोशिश कर रही है

राकेश टिकैत ने कहा- किसान इन मुकदमों को गले में डालकर नहीं जाएंगे. सबसे ज्यादा हरियाणा के लोगों पर मुकदमे हैं, इनके समाधान तक बॉर्डर ही हमारा घर है. सरकार अफवाह फैलाकर पब्लिक को भिड़ाने की कोशिश कर रही है, अगर कोई घटना होती है तो जिम्मेदार सरकार की होगी.

किसान आंदोलन (Farmers Protest) का संचालन कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) में आंदोलन को समाप्त करने को लेकर मतभेद की ख़बरों के बीच राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने TV9 भारतवर्ष से बातचीत में स्पष्टीकरण दिया है. टिकैत ने आंदोलन में मतभेद की ख़बरों को गलत बताया है और कहा कि ऐसी ख़बरें गलत हैं. टिकैत ने कहा ये आंदोलन सिर्फ पंजाब नहीं पूरे देश का है. आंदोलन में फूट का भ्रम सरकार फैला रही है. उन्होंने आगे कहा कि आंदोलन स्थल पर कोई भी अप्रिय घटना सामने आती है तो इसके लिए पूरी तरह सरकार ही जिम्मेदार होगी. किसान इन पुलिस मुकदमों के साथ घर वापस नहीं जाने वाले.

सूत्रों के मुताबिक पंजाब के कुछ किसान संगठन जोकि बड़ी तादाद में हैं वो कृषि कानूनों की वापसी के बाद अब आंदोलन खत्म कर अपने घरों की ओर लौटना चाहते हैं. किसानों का दूसरा समूह जिसमें विशेषकर राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) के नेतृत्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसान MSP खरीद गारंटी पर क़ानून बनाने के लिए केंद्र सरकार से बिना ठोस आश्वासन के आंदोलन खत्म करने के पक्ष में नहीं है. केंद्र सरकार के कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान के बाद सोमवार को संसद के शीत कालीन सत्र के पहले दिन आंदोलन खत्म करने के पक्षधर पंजाब की तकरीबन 32 जत्थेबंदियों ने आपातकालीन बैठक बुलाई और आंदोलन ख़त्म करने पर रायशुमारी की. सोमवार को ही प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसका एलान किया जा सकता था लेकिन संयुक्त मोर्चा इसके लिए राजी नहीं हुआ और किसान संगठनों के बीच फूट ना दिखे इसके लिए फैसले को 1 दिसंबर तक के लिए टाल दिया गया, अब कल इस पर फैसला हो सकता है.

राकेश टिकैत से विशेष बातचीत:

पंजाब की जत्थेबंदियों में से कुछ कृषि कानूनों की वापसी के बाद जाना चाहती है ?

-कोई नहीं जा रहा है, ये आपस में तोड़फोड़ करने की कोशिश की जा रही है, सरकार का एजेंडा है ये. 4/5 दिसंबर तक इसका रिजल्ट भी आ जाएगा.

4 दिसंबर को बैठक होनी थी, उससे पहले ही उन किसान जत्थेबंदियों ने आपातकाल बैठक क्यों बुलानी पड़ी?

-कल भी बैठक थी आज भी बैठक है कल भी रहेगी, ये तो तो चलती रहती है. नेता यहीं हैं तो आपसे में बात करते रहते हैं और टेंट में रहकर क्या करेंगे.

बाकी किसान संगठनों को कैसे समझाएंगे?

-समझाने की कोई जरूरत नहीं है वो कहीं नहीं जा रहे हैं, जब जाएंगे तो बता देंगे, फिलहाल कोई नहीं जा रहा है.

आप कल सिंघु बार्डर ग‌ए क्या बातचीत हुई?

-बातचीत यही हुई कि आंदोलन आगे कैसे चलाना है? जनता के दिमाग में यही जाएगा कि ये तीन काले कानून ही हमारी मांग थी. आज़ादी का जश्न मना लें, ऐसा नहीं है. गांव के आम लोगों को जानकारी नहीं होती इन बातों की, उनको हमने बताया कि 50 हजार से ज्यादा मुकदमे भी हैं.

संसद से कानून वापसी के बाद कुछ लोग तो जाना चाहते हैं ना?

– मुकदमे वापस कौन लेगा? कोई वापस नहीं जा रहा, जब तक भारत सरकार से बात नहीं होगी सभी यहीं रहेंगे, मुकदमे वापसी तक ये मोर्चे नहीं हटेंगे.

किसान संयुक्त मोर्चा ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर 6 मांगे रखी थी, 30 नवंबर तक का समय दिया था कोई जवाब आया?

-अभी जवाब नहीं आया सरकार जवाब देने में समय लेगी, हमने सरकार को पिछले 10 महीने से ग्रेस पिरियड दे रखा है. 10 तारीख के बाद सरकार की समझ में आएगा, फिर सरकार लाइन पर आएगी.

पंजाब और हरियाणा के किसान को तो MSP मिलता है, उसकी ये मुख्य मांग नहीं थी?

-पंजाब और हरियाणा के किसान को भी MSP नहीं मिलता, व्यापारियों का माल तुलता है. ये सिर्फ पंजाब का आंदोलन नहीं है पूरे देश का आंदोलन है, सब यहीं रहेंगे.

आंदोलन को कब तक आगे लेकर जाएंगे?

-जब तक भारत सरकार बात नहीं करेगी तब आंदोलन जारी रहेगा, बातचीत हो, मुकदमे वापस हों. पहले भी मुकदमे खत्म होते थे, किसान इन मुकदमों को गले में डालकर नहीं जाएंगे. सबसे ज्यादा हरियाणा के लोगों पर मुकदमे हैं, मुकदमे के तक समाधान तक बॉर्डर ही हमारा घर है. सरकार अफवाह फैलाकर पब्लिक को भिड़ाने की कोशिश कर रही है, अगर कोई घटना होती है तो जिम्मेदार सरकार होगी. ट्रैफिक खोलकर लोगों को बीच में घुसाया था रहा है, किसी का कोई भी नुकसान होगा तो जिम्मेदारी भारत सरकार की होगी हमारी नहीं.

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