आदिवासी अर्थ गणित ….. 9 जनजातीय जिलों की 1.23 करोड़ आबादी के पास 68 लाख बैंक खाते, इनमें 8 लाख में बैलेंस जीरो, जबकि इन्हें खोलने में खर्च हुए

प्रदेश की सियासत में इन दिनों आदिवासी सर्वाेपरि है। लेकिन, राज्य के 9 जनजातीय जिलों में आर्थिक असमानता भी व्यापक है। इसकी झलक आप इन जिलों के जन-धन बैंक खातों में देख सकते हैं। हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में एक बैठक हुई थी, जिसमें प्रदेश की आर्थिक प्रगति से जुड़ी एक रिपोर्ट रखी गई।

इसमें बताया गया कि 1.23 करोड़ आबादी वाले आर्थिक रूप से कमजोर 9 आदिवासी जिलों में बीते 10 साल में 68.3 लाख बैंक खाते खोले गए। इनमें से 8 लाख में आज भी एक रुपया जमा नहीं है। जबकि इन खातों को खोलने में तब करीब 8 करोड़ रु. खर्च आया था।

1329 बैंक शाखाओं में मौजूद शेष 60 लाख खातों में अभी 1400 करोड़ रु. से कम जमा हैं। जबकि अकेले भोपाल की 561 बैंक ब्रांचों में 105184 करोड़ रु. जमा हैं। बता दें कि बैंक खातों से होने वाले हरेक लेनदेन पर बैंक के 14 रु. खर्च होते हैं।

पैसा निकालने, जमा करने के लिए मीलों का सफर, इसलिए बैंकों से आदिवासियों की दूरी

8 लाख खातों में जीरो बैलेंस की बड़ी वजह यह है कि दूरदराज के आदिवासी क्षेत्रों में खाते तो खोले गए, लेकिन इन्हें पैसे जमा कराने और एटीएम से पैसा निकालने के लिए मीलों सफर तय करना पड़ता है। प्राइवेट हो या निजी बैंक सब मप्र के 4 बड़े शहरों में ही शाखाएं खोलने और एटीएम लगाने पर जोर दे रहे हैं।

अलीराजपुर जिले की आबादी 7.29 लाख है। यहां 4.29 लाख जन-धन खाते हैं, लेकिन पूरे जिले में 42 बैंक शाखाएं और 29 एटीएम हैं। यानी प्रति लाख आबादी पर महज 5 शाखाएं और 4 एटीएम। जबकि भोपाल में हर एक लाख की आबादी में 41 एटीएम और 22 बैंक शाखाएं हैं।

सभी क्षेत्रों में वित्तीय गतिविधियां बढ़ा रहे

हमारी कोशिश है कि जनजातीय समेत प्रदेश के सभी क्षेत्रों में वित्तीय गतिविधियां बढ़ें। इसलिए कर्ज देने जैसे कार्यक्रमों को प्राथमिकता दे रहे हैं। – एसडी माहुरकर, समन्वयक, एसएलबीसी, मप्र

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