9 तस्वीरों में यूपी के बदलते चुनाव प्रचार के तरीके … आज जो प्रचार Zoom पर होता है, 1952 में वही सड़क पर झांकियां लगाकर और ठेले पर होता था

तारीखः 15 फरवरी 2022, समयः सुबह 9 बजे, जगहः लखनऊ के पॉलिटेक्निक चौराहे पर मुकेश गुप्ता की चाय की दुकान, भीड़ लगी हुई है। चुनावी बातें तैर रही हैं। तभी मुकेश के फोन की रिंगटोन बजी, ”जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे।” फोन रिसीव करते हुए मुकेश हैलो नहीं…जय श्री राम बोलते हैं। भीड़ में से कोई कहता है, “तुमहूं भाजपाइए हो।”

ये न्यू एज चुनाव प्रचार है। इसमें फोन है, एक चुनावी जिंगल है और एक पॉलिटिकल डायलॉग। अब बात 1952 के चुनाव प्रचार की। तब सड़क पर झांकियां लगतीं थीं। तब भी सिर्फ किसी एक इलाके के लोग ही जान पाते थे। असल में हम इस स्टोरी में चुनाव प्रचार के बदलते तरीकों को ही तस्वीर के साथ लेकर आए हैं। आइए पहले चुनाव से शुरू करते हैं…

1. सड़क पर झांकी लगाकर मांगे गए वोट

ये फोटो मेरठ की है। तब 1952 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सड़कों पर झांकियां लगवाई थीं। इनमें तब के कांग्रेस के चुनावी मुद्दे देखिए… जेल में बंद महात्मा गांधी, चौरी-चौरा कांड, बिजली के तार और बैलों की जोड़ी। मतलब समझे? गांधी और चौरी-चौरा से सहानुभूति और बिजली तार विकास के लिए था। बाकी चुनाव चिन्ह।
ये फोटो मेरठ की है। तब 1952 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सड़कों पर झांकियां लगवाई थीं। इनमें तब के कांग्रेस के चुनावी मुद्दे देखिए… जेल में बंद महात्मा गांधी, चौरी-चौरा कांड, बिजली के तार और बैलों की जोड़ी। मतलब समझे? गांधी और चौरी-चौरा से सहानुभूति और बिजली तार विकास के लिए था। बाकी चुनाव चिन्ह।

2. ठेले के सामने बिना माइक दिए जाते थे भाषण

इस तस्वीर में जनसंघ के नेता चुनावी भाषण दे रहे हैं। हालत देख रहे हैं आप? ठेले पर पोस्टर चिपकाकर चुनावी गाड़ी बनाते थे। माइक-भोंपा तब नहीं थे। इसलिए जहां भीड़ दिखती वहीं खड़े होकर ऊंची आवाज में बोलना शुरू कर देते। ये कहानी 1962 में हुए लोकसभा चुनाव की है। जब जनसंघ पार्टी ने यूपी में प्रचार किया था। तस्वीर किस स्थान की है, इसकी जानकारी नहीं मिल पाई है।
इस तस्वीर में जनसंघ के नेता चुनावी भाषण दे रहे हैं। हालत देख रहे हैं आप? ठेले पर पोस्टर चिपकाकर चुनावी गाड़ी बनाते थे। माइक-भोंपा तब नहीं थे। इसलिए जहां भीड़ दिखती वहीं खड़े होकर ऊंची आवाज में बोलना शुरू कर देते। ये कहानी 1962 में हुए लोकसभा चुनाव की है। जब जनसंघ पार्टी ने यूपी में प्रचार किया था। तस्वीर किस स्थान की है, इसकी जानकारी नहीं मिल पाई है।

3. 1969 में विधानसभा चुनाव प्रचार में माइक की एंट्री

ये बागपत जिले के छपरौली की तस्वीर है। साल था, 1969 और यूपी में मिड टर्म विधानसभा चुनाव होने थे। चौधरी चरण सिंह ने किसानों के लिए कांग्रेस छोड़ दी थी। गेहूं के एमएसपी पर उनकी कांग्रेस से खटपट हुई। तब उन्होंने चौधरी कुम्भाराम के साथ मिलकर भारतीय क्रांति दल यानी बीकेडी बनाया। जब चुनावी भाषण के लिए वह छपरौली पहुंचे तो हजारों किसान आ गए। वहां बिना माइक के बोलना कठिन था। इ‌सलिए पहली बार चुनाव में माइक लगाना पड़ा।
ये बागपत जिले के छपरौली की तस्वीर है। साल था, 1969 और यूपी में मिड टर्म विधानसभा चुनाव होने थे। चौधरी चरण सिंह ने किसानों के लिए कांग्रेस छोड़ दी थी। गेहूं के एमएसपी पर उनकी कांग्रेस से खटपट हुई। तब उन्होंने चौधरी कुम्भाराम के साथ मिलकर भारतीय क्रांति दल यानी बीकेडी बनाया। जब चुनावी भाषण के लिए वह छपरौली पहुंचे तो हजारों किसान आ गए। वहां बिना माइक के बोलना कठिन था। इ‌सलिए पहली बार चुनाव में माइक लगाना पड़ा।

4. 1980 में पार्टियों के पर्चे बंटे, लोगों के हाथों में दिखीं तख्तियां

ये तस्वीर कानपुर की है। 5 जून 1975 से 21 मार्च 1977, 21 महीनों तक भारत में इमरजेंसी लगी थी। आपातकाल के बाद अपनी खोई जमीन को वापस पाने के लिए 1978 में इंदिरा गांधी कानपुर में जनता के बीच थीं। फूलबाग मैदान में हजारों लोग पहुंचे। इंदिरा गांधी की इस रैली में एक नई बात हुई। पहली बार लोगों के हाथों में कांग्रेस पार्टी की तख्तियां थीं। पर्चे भी बांटे गए। ऐसा जोरदार माहौल बना कि 1980 में कांग्रेस दोबारा सत्ता में लौटी थी।
ये तस्वीर कानपुर की है। 5 जून 1975 से 21 मार्च 1977, 21 महीनों तक भारत में इमरजेंसी लगी थी। आपातकाल के बाद अपनी खोई जमीन को वापस पाने के लिए 1978 में इंदिरा गांधी कानपुर में जनता के बीच थीं। फूलबाग मैदान में हजारों लोग पहुंचे। इंदिरा गांधी की इस रैली में एक नई बात हुई। पहली बार लोगों के हाथों में कांग्रेस पार्टी की तख्तियां थीं। पर्चे भी बांटे गए। ऐसा जोरदार माहौल बना कि 1980 में कांग्रेस दोबारा सत्ता में लौटी थी।

5. मुलायम नहीं कांशीराम ने शुरू किया साइकिल पर चुनाव प्रचार

इटावा जिले की ये तस्वीर है। 14 अप्रैल 1984 में कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी बनाई। इस समय देश में कास्ट पॉलिटिक्स अपने चरम पर थी। इस देखते हुए कांशीराम ने दलितों और अल्पसंख्यकों के मुद्दे उठाकर बीएसपी के लिए बड़ा वोट बैंक तैयार किया। कांशीराम अपनी साइकिल से ही पूरे उत्तर प्रदेश में प्रचार करते थे। 1985 से 1988 तक प्रदेश में कांग्रेस सरकार रही, लेकिन इसी समय दलितों को इकट्‌ठा करने के लिए कांशीराम ने इटावा से लेकर लखनऊ तक कई साइकिल रैलियां निकाली थीं। इस दौर में चुनाव प्रचार में साइकिल की एंट्री हुई थी। *फोटो सोर्स - बसपा
इटावा जिले की ये तस्वीर है। 14 अप्रैल 1984 में कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी बनाई। इस समय देश में कास्ट पॉलिटिक्स अपने चरम पर थी। इस देखते हुए कांशीराम ने दलितों और अल्पसंख्यकों के मुद्दे उठाकर बीएसपी के लिए बड़ा वोट बैंक तैयार किया। कांशीराम अपनी साइकिल से ही पूरे उत्तर प्रदेश में प्रचार करते थे। 1985 से 1988 तक प्रदेश में कांग्रेस सरकार रही, लेकिन इसी समय दलितों को इकट्‌ठा करने के लिए कांशीराम ने इटावा से लेकर लखनऊ तक कई साइकिल रैलियां निकाली थीं। इस दौर में चुनाव प्रचार में साइकिल की एंट्री हुई थी। *फोटो सोर्स – बसपा

6. अमिताभ के प्रचार से रोड शो आया चर्चा में

1984 के आम चुनाव में इलाहाबाद सीट से दो दिग्गज मैदान में थे। कांग्रेस प्रत्याशी अमिताभ बच्चन का सीधा मुकाबला लोकदल के नेता हेमवती नंदन बहुगुणा से था। अमिताभ मुंबई से इलाहाबाद आए और अपना नामांकन दाखिल किया। नामांकन के अगले ही दिन इलाहाबाद में कांग्रेस का बड़ा रोड शो हुआ। सड़क पर हजारों फैंस थे और अखबारों में महानायक के रोड शो के गुणगान। यूपी ने पहली बार इतनी भीड़ वाला रोड शो देखा था।
1984 के आम चुनाव में इलाहाबाद सीट से दो दिग्गज मैदान में थे। कांग्रेस प्रत्याशी अमिताभ बच्चन का सीधा मुकाबला लोकदल के नेता हेमवती नंदन बहुगुणा से था। अमिताभ मुंबई से इलाहाबाद आए और अपना नामांकन दाखिल किया। नामांकन के अगले ही दिन इलाहाबाद में कांग्रेस का बड़ा रोड शो हुआ। सड़क पर हजारों फैंस थे और अखबारों में महानायक के रोड शो के गुणगान। यूपी ने पहली बार इतनी भीड़ वाला रोड शो देखा था।

7. कांशीराम का साइकिल वाला फॉर्मूला मुलायम को सीएम बना गया

तस्वीर लखनऊ की है। 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई। उन्होंने 1993 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांशीराम की पार्टी बसपा से गठबंधन किया। गठबंधन सरकार को यूपी की सत्ता दिलवाने के लिए मुलायम ने अमीनाबाद से लेकर विधानसभा तक साइकिल रैली निकाली। मुलायम का ये अंदाज लोगों को पसंद आया और यूपी में गठबंधन सरकार बनी। *फोटो सोर्स - rediff
तस्वीर लखनऊ की है। 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई। उन्होंने 1993 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांशीराम की पार्टी बसपा से गठबंधन किया। गठबंधन सरकार को यूपी की सत्ता दिलवाने के लिए मुलायम ने अमीनाबाद से लेकर विधानसभा तक साइकिल रैली निकाली। मुलायम का ये अंदाज लोगों को पसंद आया और यूपी में गठबंधन सरकार बनी। *फोटो सोर्स – rediff

8. 2017 विधानसभा चुनाव में मॉर्डन बसों से हुआ चुनाव प्रचार

ये तस्वीर लखनऊ की है। 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने चुनाव प्रचार का नया तरीका खोज निकाला। लाल रंग की लंबी बस जिस पर मुलायम सिंह यादव, डॉ. राम मनोहर लोहिया और जनेश्वर मिश्र की फोटो लगी थी। नाम था समाजवादी विकास रथ। अखिलेश इसी बस पर बैठकर पूरे यूपी में चुनाव प्रचार करते रहे, लेकिन उनका ये आइडिया तब सफल नहीं हो पाया।
ये तस्वीर लखनऊ की है। 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने चुनाव प्रचार का नया तरीका खोज निकाला। लाल रंग की लंबी बस जिस पर मुलायम सिंह यादव, डॉ. राम मनोहर लोहिया और जनेश्वर मिश्र की फोटो लगी थी। नाम था समाजवादी विकास रथ। अखिलेश इसी बस पर बैठकर पूरे यूपी में चुनाव प्रचार करते रहे, लेकिन उनका ये आइडिया तब सफल नहीं हो पाया।

9. 2022 विधानसभा में Zoom मीटिंग से मांगे जा रहे वोट

तस्वीरें दिल्ली भाजपा कार्यालय और यूपी के बूथ कार्यकर्ताओं की हैं। कोरोना महामारी के बाद पार्टियों ने चुनाव प्रचार के लिए एकदम नया तरीका अपनाया। इसमें न तो शोर-शराबा था और न ही भीड़भाड़। इस बार नेता जूम मीटिंग के जरिए एक कमरे में बैठकर हजारों लोगों से बात कर रहे हैं। भाजपा ने सितंबर 2021 में ही बूथ विजय अभियान शुरू कर दिया था। इसमें भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दिल्ली कार्यालय से वीडियो कॉन्फ्रेंसिग के जरिए उत्तर प्रदेश के बूथ लेवल कार्यकर्ताओं से यूपी चुनाव प्रचार पर बात की थी।
तस्वीरें दिल्ली भाजपा कार्यालय और यूपी के बूथ कार्यकर्ताओं की हैं। कोरोना महामारी के बाद पार्टियों ने चुनाव प्रचार के लिए एकदम नया तरीका अपनाया। इसमें न तो शोर-शराबा था और न ही भीड़भाड़। इस बार नेता जूम मीटिंग के जरिए एक कमरे में बैठकर हजारों लोगों से बात कर रहे हैं। भाजपा ने सितंबर 2021 में ही बूथ विजय अभियान शुरू कर दिया था। इसमें भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दिल्ली कार्यालय से वीडियो कॉन्फ्रेंसिग के जरिए उत्तर प्रदेश के बूथ लेवल कार्यकर्ताओं से यूपी चुनाव प्रचार पर बात की थी।

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