शिवराज के टास्क से कैबिनेट हैरान-परेशान!

मंत्रियों से प्राकृतिक खेती ही क्यों कराना चाहते हैं मुख्यमंत्री; जैविक से कितनी अलग है… जानिए सबकुछ….

इन दिनों प्राकृतिक खेती सुर्खियों में है, क्योंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्रियों से कह दिया कि आप सब प्राकृतिक खेती का मॉडल खड़ा करके बताओ। शिवराज की कैबिनेट में 30 में 25 मंत्री खेती-किसानी से जुड़े हैं। अब इनके सामने चुनौती है कि प्राकृतिक खेती करें कैसे? न एक्सपर्ट इसे ठीक से बता पा रहे हैं, न कोई डिटेल रिसर्च इस पर हुई है। मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी JNKV जबलपुर के एग्रोनॉमी डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ. प्रताप भानू शर्मा भी कह रहे हैं कि यह अभी बेहद प्रारंभिक स्टेज पर है। चलिए, पहले बताते हैं कि यह खेती होती क्या है…

जैविक खेती से अलग है प्राकृतिक खेती

जैविक खेती और प्राकृतिक खेती दो अलग-अलग पद्धति हैं। जैविक खेती में जैविक संसाधन (गोबर की खाद, केंचुआ, जैव उर्वरक आदि) का उपयोग किया जाता है। साथ ही, ध्यान रखा जाता है कि अन्य दूसरे खेत का रसायन पानी के साथ, हवा के साथ, जानवरों के साथ या अन्य किसी भी प्रकार से ना आए। वैज्ञानिक रूप से फसल उत्पादन के साथ-साथ खेत के आसपास का वातावरण, मिट्‌टी के स्वास्थ्य, पानी की शुद्धता जैसी चीजों काे ध्यान में रखकर होने वाला उत्पादन जैविक श्रेणी में आता है। जैविक खेती पर कई अनुसंधान हो चुके हैं।

प्राकृतिक खेती ऐसे की जाती है

प्राकृतिक खेती कृषि की पुरातन पद्धति है। यह कई तरीकों से की जाती रही है। कई साल पहले ‘होमा खेती’ का प्रचलन था। इसमें एक निश्चित समय में खेत में हवन, मंत्रोच्चार से पवित्र कर खेती की जाती है। इसके अलावा, ब्रह्मांडीय शक्तियों सूर्य, चांद आदि की ऊर्जा का ध्यान रखा जाता है। प्राकृतिक खेती को इस तरह से देखा जाता है कि खेत में फसल की बुवाई करो और काटो। न उर्वरक का उपयोग करें, न ही रसायन का उपयोग करें। फसल की शुद्धता और मिट्‌टी के स्वास्थ्य की दृष्टि से इसे बढ़ावा दिया जा रहा है।

क्या है जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग?

वर्तमान में महाराष्ट्र के कृषि विशेषज्ञ पद्मश्री सुभाष पालेकर की थ्योरी पर आधारित प्राकृतिक खेती की बात हो रही है। पालेकर की पद्धति को पहले जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग कहा गया। अब इसे लो इनपुट नेचुरल फार्मिंग नाम से भी जाना जा रहा है। फसल के अच्छे उत्पादन और मिट्‌टी के स्वास्थ्य को बरकरार रखने के लिए पालेकर ने चार सिद्धांत बताए। इस आधार पर कहा गया कि फसल का उत्पादन चार-पांच साल में लगभग रासायनिक खेती के बराबर मिल सकता है। साथ ही, मिट्टी की उर्वरा शक्ति के साथ उसके स्वास्थ्य भी अच्छा रखा सकता है, लेकिन इस पर अनुसंधान नहीं हुए हैं।

मप्र में कहां हो रही है प्राकृतिक खेती?

प्राकृतिक खेती मध्यप्रदेश में प्रारंभिक अवस्था में है। सिर्फ वही प्रोग्रेसिव किसान कर रहे होंगे, जो पालेकर के सीधे में संपर्क में हैं। वह अभी चिन्हित नहीं हो सके हैं। इसके अलावा दूरस्थ क्षेत्र के ऐसे आदिवासी किसान जो अभी तक रासायनिक खेती से परिचित नहीं है, वही प्राकृतिक खेती करते हैं। यह मप्र के अलावा अन्य राज्यों में भी मिल सकते हैं।

पालेकर की थ्योरी के चार सिद्धांत, जानिए

1. अंतरवर्तीय फसल

किसी भी एक फसल के साथ दूसरी फसल को भी उगाया जाता है। अंतरवर्तीय यानी एक फसल, दूसरी फसल को कम से कम प्रभावित करे। जैसे- अरहर में सोयाबीन, गेहूं के साथ सरसों की फसल लगाई जाती है।

2. बायोडायनैमिक प्रोडक्ट

पौध-पोषण के हिसाब से घनजीवामृत, जीवामृत, बीज उपचार के लिए बीजामृत, कीट नियंत्रण के लिए ब्रह्मास्त्र, अग्नेयस्त्र व दसपर्णी अर्क जैसी चीजें उपयोग में लाई जाती हैं। यह सभी पेड़-पौधों के प्रोडक्ट हैं। इनका काढ़ा बनाकर या अलग-अलग विधि से तैयार करके उपयोग कर सकते हैं।

3. मल्चिंग

खरपतवार की रोकथाम के लिए मल्चिंग (आच्छादन) करने की व्यवस्था दी। इसमें फसलों का बचा हुआ भूसा आदि को अगली फसल के लिए खेत में कतारों के बीच में बिछाया जाए। जिससे खरपतवार का अंकुरण कम से कम से हो पाता है। वहीं जो मल्चिंग की है, वह आगे सड़कर जमीन में खाद का काम करती है।

4. सिंचाई व्यवस्था

यदि फसल कतारों में है, तो एक कतार छोड़कर पानी दिया जाए। बड़े पौधे हैं या वृक्ष हैं तो उनमें पौधे या वृक्ष की छाया का जितना घेरा बनता है, उस जगह को छोड़कर दूर से पानी दिया जाए। जिससे अंदर ही अंदर पौधे का पानी मिल जाएगा साथ उसकी वृद्धि भी अच्छी होगी।

अब मंत्रियों की मुसीबत क्या है

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंत्रियों नेचुरल फार्मिंग (प्राकृतिक खेती) करने का टास्क दिया है। वे इससे बच इसलिए नहीं पा रहे हैं कि क्योंकि सभी ने अपना व्यवसाय और बैकग्राउंड खेती किसानी दर्शा रखा है। अब इन्हें न सिर्फ नेचुरल फार्मिंग करनी होगी, बल्कि उसे एक मॉडल के रूप में डेवलप भी करना होगा। मोदी सरकार ने आम बजट में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की बात कही गई थी।

CM शिवराज का भी व्यवसाय कृषि ही

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का भी व्यवसाय कृषि हैं। इनके पास 7.671 एकड़ और परिजनों के नाम पर 14 एकड़ कृषि भूमि है। मंत्रियों की एग्रीकल्चर लैंड की बात करें तो सबसे अधिक कृषि भूमि खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री बिसाहू लाल सिंह के पास है। इनके पास 58.897 एकड़ जमीन है। स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी के पास 36.48 एकड़ कृषि भूमि है। गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के पास 33.72 एकड़, कृषि मंत्री कमल पटेल के पास 33.13 एकड़, खनिज संसाधन मंत्री के पास 31.26 एकड़ और पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव के पास 29.25 एकड़ जमीन है।

सीएम को कैसे आया यह आइडिया?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्राकृतिक खेती को जनआंदोलन बनाने की बात कही है। भारत सरकार ने आम बजट में गंगा किनारे के गांवों में खेती के लिए कॉरिडोर बनाने की घोषणा। इसमें रसायन मुक्त प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। ऐसे में मप्र सरकार भी प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए आगे बढ़ रही है। यही कारण है कि खेती करने वाले मंत्रियों को इस दिशा में काम करने के लिए कहा गया है।

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