बाहुबलियों की कहानी- 4 …. पूर्वांचल का वो डॉन जिसके खौफ से सीबीआई ने भी वापस कर दिया था केस

बात जब भी पूर्वांचल की होती है आंखो के सामने बाहुबली, गैंगवार, माफियागीरी घूम जाती है। एक से बढ़कर एक तुर्रम खां। अपराध ऐसा कि सुनकर कलेजा कांप जाए। आतंक का वो चैप्टर अब बंद हो गया। बाहुबली जेल गए और उनके बच्चे चुनाव में आ गए। इन्हीं में से एक नाम है पूर्वांचल के सबसे बड़े डॉन मुख्तार अंसारी का। बेटा अब्बास अंसारी मऊ की सदर सीट से प्रत्याशी हैं। बात अब्बास की नहीं बल्कि आज बात करेंगे मुख्तार अंसारी की। उसके अपराध की।

एक प्रतिष्ठित परिवार का लड़का आखिर कैसे बन गया पूर्वांचल का सबसे बड़ा डॉन। इसे जानने से पहले मुख्तार के परिवार को जानना जरूरी है।

खून के छींटो से दूर मुख्तार का परिवार
महात्मा गांधी जिस वक्त देश की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे उस वक्त के मुख्तार अंसारी के दादा कांग्रेस नेता मुख्तार अहमद अंसारी उनके साथ थे। मुख्तार के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान आजादी के महासंग्राम में लड़ाई लड़ रहे थे। आजादी के बाद पाकिस्तान जाने का प्रस्ताव आया तो कह दिया, “लड़ा है इस देश के लिए मरेंगे भी इस देश के लिए।” मुख्तार अंसारी के पिता इतने सादगी पसंद और सम्मानित व्यक्ति थे कि नगर पालिका के चुनाव में उतरे तो बाकी लोगों ने पर्चा वापस ले लिया। मुख्तार के चाचा हामिद अंसारी दो बार देश के उपराष्ट्रपति रहे। इतने समृद्ध परिवार से होने के बावजूद मुख्तार ने परिवार के नक्शेकदम पर चलने के बजाय अपराध की दुनिया को चुना। ऐसा क्यों, आइए बताते हैं…

मुख्तार अंसारी के परिवार का कोई भी व्यक्ति पहले से अपराध की दुनिया में नहीं रहा था।
मुख्तार अंसारी के परिवार का कोई भी व्यक्ति पहले से अपराध की दुनिया में नहीं रहा था।

मकनु सिंह गैंग में एंट्री
1970 के बाद उस वक्त की प्रदेश सरकार एवं केंद्र की कांग्रेस सरकार ने पूर्वांचल के कल्याण की तमाम योजनाएं लांच की। योजनाएं आई तो ठेकेदार भी सामने आए। कहा जाता है कि जहां सरकारी ठेका होगा वहां दबंगई भी होगी। इन्हीं ठेको को हथियाने के लिए संघर्ष शुरू हुआ। उस वक्त पूर्वांचल में दो गैंग थी। पहली मकनु सिंह की दूसरी साहिब सिंह की गैंग। मुख्तार अपने कॉलेज दोस्त साधु सिंह के साथ मकनु सिंह गैंग में थे।

मऊ जिले के सैदपुर में दोनों गैंग के बीच ठेके को लेकर विवाद हुआ तो राहें एकदम अलग हो गई। साहिब सिंह गैंग के सबसे खतरनाक खिलाड़ी का नाम था ब्रजेश सिंह। ध्यान रहे ब्रजेश और मुख्तार में उस वक्त किसी तरह का कोई विवाद नहीं था। लेकिन साल 1990 आते-आते ये दोनो एक दूसरे के खून के प्यास हो गए। जो आज भी बरकरार है। ब्रजेश की कहानी को हम एक स्पेशल स्टोरी के जरिए बताएंगे।

ब्रजेश बनाम मुख्तार
मुख्तार और ब्रजेश अपने गैंग को बढ़ाते हुए आगे बढ़ रहे थे। तभी त्रिभुवन सिंह ब्रजेश सिंह के गैंग में शामिल हो गया। त्रिभुवन उस वक्त मुख्तार का दुश्मन हुआ करता था। मुख्तार का दुश्मन ब्रजेश का दोस्त बन गया। इस तरह त्रिभुवन के साथ ब्रजेश भी मुख्तार अंसारी का दुश्मन बन गया। यहीं से शुरू होती है वर्चस्व की जंग। ठेका रेलवे का हो या शराब का। किडनैपिंग का मामला हो या हत्याओं का, दोनो ही गैंग एक-दूसरे को पछाड़ने में लग गई।

ब्रजेश की गैंग में त्रिभुवन सिंह शामिल हुआ और इसके बाद मुख्तार औऱ ब्रजेश घोषित दुश्मन बन गए।
ब्रजेश की गैंग में त्रिभुवन सिंह शामिल हुआ और इसके बाद मुख्तार औऱ ब्रजेश घोषित दुश्मन बन गए।

1988 में मंडी परिषद के ठेकेदार सच्चिदानंद की हत्या कर दी गई। नाम आया मुख्तार और साधु सिंह का। पुलिस केस लिखकर खोजती रही पर पकड़ नहीं पाई। इसी दौरान बनारस पुलिस लाइन में कॉस्टेबल पद पर तैनात राजेंद्र सिंह की हत्या कर दी गई। नाम फिर से मुख्तार और साधु का आया। इस हत्या के बाद ब्रजेश का खून खौल उठा।

राजेंद्र हत्याकांड में साधु सिंह गिरफ्तार हुआ। जेल में था तो पत्नी को बच्चा हुआ। साधु पुलिस कस्टडी में अपने बच्चे और पत्नी को देखने के लिए अस्पताल पहुंचा। पुलिस की वर्दी पहने एक व्यक्ति ने साधु की अस्पताल के अंदर ही गोली मारकर हत्या कर दी। उसी दिन शाम को एक और दर्दनाक खबर सामने आई थी। साधु सिंह के गांव में उसकी मां, भाई समेत परिवार के 8 लोगों की हत्या कर दी गई। लोग बताते हैं कि अस्पताल में पुलिस की वर्दी में आया व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि ब्रजेश सिंह ही था।

राजनीति में मुख्तार की एंट्री
साधु की मौत के बाद मुख्तार कमजोर हुआ। बाहुबल को बढ़ाने के लिए उसने चुनाव लड़ने का फैसला किया। राजनीतिक रसूख इतना था ही कि कोई पार्टी टिकट देने से मना नहीं कर सकती। मुख्तार ने मायावती पर भरोसा जताया और बसपा के टिकट पर मऊ सीट से चुनाव में उतर गए। मुख्तार ने बीजेपी के विजय प्रताप सिंह को 26 हजार वोट से हरा दिया। इस जीत के बाद मुख्तार की शक्ति और संपत्ति में जबरदस्त इजाफा हो गया।

डॉन से रॉबिनहुड की छवि
मुख्तार विधायक बने तो ठेका लेने और दिलवाने में किसी तरह की मशक्कत नहीं करनी पड़ती। मुख्तार ने यहां से अपनी छवि को रॉबिनहुड में बदलना शुरू किया। किसी की बेटी की शादी हो, किसी की तेरहवीं हो, मुख्तार के पास जाओ और पैसा ले लो। कचहरी का कोई काम रुका तो मुख्तार के एक फोन से हो जाता। कोई दूल्हा दहेज के कारण शादी तोड़ने की बात करता तो उसे उठवा लिया जाता और शादी करवा दी जाती।

चुनौती बनकर सामने आए कृष्णानंद
गाजीपुर की एक सीट है मोहम्मदाबाद। इस सीट पर 1985 से अंसारी परिवार का ही कब्जा था। 2002 में अंसारी परिवार के अजेय रथ को रोकते हुए भाजपा नेता कृष्णानंद राय विधायक बन गए। कृष्णा ने मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी को 7,772 वोटों से हरा दिया। मुख्तार अंसारी इससे तिलमिला गया। इस तिलमिलाहट के दो कारण हैं। पहला चुनाव हारने की दूसरा हमला की। 2001 में मुख्तार के काफिले पर हमला हुआ। मुख्तार को अंदेशा हो गया था कि हमला हो सकता है इसलिए वह आगे वाली गाड़ी के बजाय पीछे वाली पर बैठ गए। आगे की गाड़ी में बैठे 3 लोग मारे गए। इस हमले को कृष्णानंद राय से जोड़कर देखा जाता है।

सरेआम गोलियों से भून दिया
25 नवंबर 2005, विधायक कृष्णानंद बुलेट प्रूफ गाड़ी के बजाय नार्मल गाड़ी से पड़ोसी गांव में क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्धाटन करने गए थे। कार्यक्रम से निकले ही थे कि भांवरकोल की बसनिया पुलिया के पास सामने से आई एक सिल्वर ग्रे कलर की एसयूपी सामने खड़ी हो गई। 8 लोग एसयूपी से उतरे और विधायक कृष्णानंद राय की गाड़ी पर AK-47 से फायर कर दिया। शरीर के साथ पूरी गाड़ी छलनी हो गई। घटना स्थल पर कम से कम 500 राउंड गोलियां चली। सात लोग मारे गए। पोस्टमार्टम हुआ तो इन सातों शव से 67 गोलियां निकाली गई।

ये तस्वीर कृष्णानंद राय की है। 25 नवंबर 2005 को उन्हें दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया गया।
ये तस्वीर कृष्णानंद राय की है। 25 नवंबर 2005 को उन्हें दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया गया।

पीछे वाली गाड़ी पर विधायक कृष्णानंद के भाई रामनारायण राय बताते हैं कि मारने वाले कह रहे थे कि “मारो इनको, इन लोगों ने भाई को बहुत परेशान कर रखा है।” लोग बताते हैं कि ये भाई कोई और नहीं बल्कि मुख्तार अंसारी थे।

कृष्णानंद राय के साथ पूर्व ब्लॉक प्रमुख श्याम शंकर राय, रमेश राय, अखिलेश राय, मुन्ना यादव, शेषनाथ पटेल और निर्भय नारायण उपाध्याय की हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड के बाद जमकर तोड़फोड़ हुआ। विधायक की पत्नी अलका राय ने मुख्तार अंसारी, अफजाल अंसारी, माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी, अताहर रहमान उर्फ बाबू और संजीव महेश्वरी उर्फ जीवा के खिलाफ मामला दर्ज हुआ। मामला इतना हाई था कि पुलिस एसपी जांच करने से मना कर रहे थे।

सीबीआई ने जोड़ लिए थे हाथ
अलका सीबीआई जांच की मांग कर रही थी। सीबीआई ये केस लेना नहीं चाहती थी। दबाव बढ़ा तो केस ले लिया लेकिन एक साल बाद दबाव बढ़ा तो केस वापस कर लिया। अलका ने दोबारा एफआईआर करवाया तो जांच शुरू हुई। जांच के दौरान एक मात्र चश्मदीद गवाह शशिकांत राय की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई। लोग कहते हैं शशिकांत की मौत नेचुरल नहीं बल्कि उनकी हत्या की गई। इस तरह से न्याय की आखिरी उम्मीद भी खत्म हो गई। सबूतों के अभाव में मुख्तार समेत सभी इस मामले से बरी हो गए।

राजनीति में नाम स्थापित करने के बाद भी मुख्तार अंसारी की फितरत नहीं बदली। साल 2009 में ए कैटेगरी के बड़े ठेकेदार अजय प्रकाश सिंह उर्फ मन्ना की हत्या कर दी गई। बाइक से आए बदमाशों ने दिनदहाड़े एके-47 से भून दिया। इस हत्या के चश्मदीद गवाह मन्ना का मुनीम राम सिंह मौर्य थे। उनकी सुरक्षा में खतरा देखते हुए उन्हें एक गनर मिला था। 1 साल बाद 19 मार्च 2010 को गाजीपुर के आरटीओ ऑफिस के पास मुनीम राम सिंह मौर्य और गनर सतीश की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस मामले के मुख्य आरोपी मुख्तार अंसारी बनाए गए। पुलिस ने जांच पूरी कर ली है। कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल हो चुका है जल्द सजा का ऐलान होगा।

2021 में पंजाब की जेल से जब यूपी लाया जा रहा था तब मुख्तार अपने आप चलने के बजाय व्हील चेयर पर बैठकर आए थे।
2021 में पंजाब की जेल से जब यूपी लाया जा रहा था तब मुख्तार अपने आप चलने के बजाय व्हील चेयर पर बैठकर आए थे।

मुख्तार पिछले करीब 15 साल से देश की अलग-अलग जेलों में बंद हैं। मऊ, गाजीपुर, जौनपुर और बनारस में मुख्तार अंसारी एक बरगद के जैसे हैं। क्राइम की दुनिया में इतना ज्यादा फैल गए कि दूसरा कोई ऊपर उठ ही नहीं पाया। राजनीतिक पार्टियां जब भी पूर्वांचल में अपना ग्राफ बढ़ाने के लिए बढ़ी उन्होंने मुख्तार के ही कंधे को चुना। वो सपा हो या बसपा। फिलहाल मुख्तार का वक्त ढलान पर है। सियासत की बागडोर उनके बेटे अब्बास अंसारी के हाथ में आ गई है। वह कितने सफल होंगे यह भविष्य के गर्भ में छिपा है।

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