वीटो छीनकर रूस को कैसे सुरक्षा परिषद से किया जाएगा बाहर; जानिए गड़बड़ करके कैसे झपटी थी USSR की कुर्सी
यूक्रेन पर हमले के बाद पश्चिमी देश लगातार रूस पर दबाव बनाने के लिए सख्त प्रतिबंध लगा रहे हैं। ब्रिटेन का कहना है कि रूस से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थायी सदस्यता छीन ली जानी चाहिए। सीधे तौर पर देखा जाए तो ब्रिटेन की मंशा रूस से वीटो पावर छीनने की है।
आइए जानते हैं कि रूस से वीटो छीन कर सुरक्षा परिषद से कैसे बाहर किया जा सकता है? कैसे रूस ने बिना किसी प्रस्ताव के सुरक्षा परिषद में सोवियत संघ यानी USSR की जगह ले ली थी? और सुरक्षा परिषद बनाई क्यों गई थी?
लेकिन ये सब जानने से पहले आइए इससे जुड़े एक पोल में हिस्सा ले लेते हैं…
- यूक्रेन पर रूस के हमले के खिलाफ सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान यूक्रेनी राजदूत सर्गेई क्रिस्लिट्स्या ने रूस को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने पर ही सवाल उठाया।
- क्रिस्लिट्स्या ने UN सेक्रेटरी एंतोनियो गुतारेस से एक दस्तावेज सभी सदस्य देशों को बांटने को कहा। दरअसल, यह दस्तावेज वह कानूनी ज्ञापन है जो 19 दिसंबर 1991 को संयुक्त राष्ट्र यानी UN के लीगल काउंसल यानी वकील ने लिखा था। इसमें रूस को सोवियत संघ के उत्तराधिकारी के रूप में सुरक्षा परिषद में शामिल करने की अनुमति मांगी थी।
- यूक्रेन का कहना है कि सोवियत संघ से अलग हुए देशों ने 1991 में घोषित किया था कि सोवियत संघ का अस्तित्व नहीं रहा। ऐसे में रूस को सोवियत संघ की जगह सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य कैसे बना दिया गया? जबकि सोवियत संघ से अलग हुए बाकी देशों का भी स्थायी सदस्य के रूप में शामिल करने का कानूनी दावा बनता था।
- वहीं, रूस को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने के लिए UN महासभा ने कभी कोई फैसला नहीं लिया।
- सोवियत संघ के टूटने के बाद भी UN चार्टर में बदलाव नहीं किया गया। चार्टर में आज सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के रूप में सोवियत संघ का नाम है, रूस का नहीं।
- इससे उलट संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में शुरू से शामिल रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी 1949 की कम्युनिस्ट क्रांति से पहले के चीन की जगह कम्युनिस्ट चीन यानी पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी मौजूदा चीन को 1971 में मिल सकी।
- मौजूद कम्युनिस्ट चीन ने इसके लिए 21 बार वोटिंग की अपील की थी। आखिरकार चीन को 76 के मुकाबले 35 देशों के समर्थन से UN में रिपब्लिक ऑफ चाइना की जगह मिली। वोटिंग में 17 देशों ने हिस्सा नहीं लिया था।

स्थायी सदस्य को UNSC से बाहर करने की कोई सीधी प्रक्रिया ही नहीं है
- सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों को हटाने के लिए कोई सीधा मैकेनिज्म ही नहीं है। UN चार्टर में भी इसका कोई जिक्र नहीं है।
- जबकि UN से किसी देश को निकालने के लिए एक प्रक्रिया है। इसके लिए सुरक्षा परिषद की सिफारिश के आधार पर UN महासभा में वोटिंग होती है। हालांकि, अभी तक ऐसा कभी हुआ नहीं है।
- वहीं रूस सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है। इसलिए उसके पास वीटो पावर भी है। रूस को निकालने के लिए पहले सुरक्षा परिषद से सिफारिश होनी चाहिए, जबकि रूस खुद ऐसी सिफारिश होने नहीं देगा। ऐसे में इस प्रक्रिया के जरिए रूस को बाहर नहीं किया जा सकता।
अब तक UNSC के स्थायी सदस्य देशों में दो बार बदलाव हुआ है
- अभी तक सुरक्षा परिषद में शामिल 5 स्थायी सदस्यों में से किसी को कभी बाहर नहीं किया गया है।
- हालांकि, इनमें शामिल दो देशों को बदला गया है। पहला बदलाव 1971 में हुआ जब ताइवान वाले रिपब्लिक ऑफ चीन को हटाकर बीजिंग स्थित पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन को शामिल किया गया।
- दूसरा बदलाव 1991 में सोवियत संघ के बिखरने के बाद हुआ। 1991 में अल्मा-अता प्रोटोकॉल पर सोवियत संघ के अंत की घोषणा की गई थी। इस घोषणा पर अधिकांश देशों ने साइन कर सहमति व्यक्त की थी कि रूस को सोवियत संघ की जगह स्थायी सदस्य बनाया जाए।

तो रूस को ऐसे UN सुरक्षा परिषद से बाहर किया जा सकता है…
- संयुक्त राष्ट्र महासभा रूस को UN या UNSC से निकालने का प्रस्ताव पारित करे तो निश्चित ही स्थायी सदस्य होने के नाते रूस वीटो करके इस प्रस्ताव को रोक देगा। ऐसे में महासभा इसी प्रस्ताव को दोबारा लाए और प्रस्ताव को दो तिहाई सदस्यों का समर्थन मिले तो रूस को सुरक्षा परिषद से बाहर किया जा सकता है।
- मामले को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में भी ले जाया जा सकता है। अगर इंटरनेशनल कोर्ट फैसला सुनाता है कि सुरक्षा परिषद का कोई सदस्य UN चार्टर के खिलाफ जाकर युद्ध छेड़ता है तो UN में उसकी सदस्यता अवैध है, तब भी रूस की सदस्यता अवैध घोषित हो सकती है।
- यूक्रेन के तर्क के आधार पर रूस की सदस्यता के खिलाफ कार्यवाही शुरू हो सकती है। यूक्रेन का कहना है कि रूस को कभी भी सोवियत संघ का उत्तराधिकारी नहीं बनाया गया था।
यूक्रेन ने रूस को बाहर करने के लिए ये कारण भी गिनाया
- यूक्रेनी राजदूत किस्लिट्स्या का दावा है कि UN चार्टर के आर्टिकल 4 में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र केवल शांतिप्रिय देशों के लिए है जो चार्टर की शर्तों को स्वीकार करते हैं। जबकि रूस के हमला करने से यह पता चलता है कि वह इन शर्तों का पालन नहीं करता है। इस स्थिति में UNSC की सिफारिश पर महासभा की ओर से रूस को UN से बाहर किया जा सकता है।
- वहीं रूस का दावा है कि यूक्रेन पर उसकी कार्रवाई सेल्फ डिफेंस के लिए की गई है जो कि चार्टर के क्लॉज 51 के मुताबिक है।

देखिए रूस कैसे दुनिया में शांति की बजाय अपने हित साधने में वीटो का इस्तेमाल कर रहा

दुनिया में शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र की नींव रखी गई थी
- साल 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद दुनिया शांति चाहती थी। इसके बाद 50 देशों के प्रतिनिधियों ने मिलकर एक चार्टर पर हस्ताक्षर कर नई अंतरराष्ट्रीय संस्था की नींव रखी थी। इसे ही आज UN कहते हैं।
- UN के छह अंग हैं। इनमें से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यानी UNSC की जिम्मेदारी दुनिया में शांति और सुरक्षा बनाए रखने की है। इसके लिए वो प्रभावित देशों में पीस कीपिंग फोर्स भेजते हैं।
- उम्मीद की गई थी कि यह संस्था पहले और दूसरे वर्ल्ड वॉर जैसा कोई तीसरा वॉर नहीं होने देगी, लेकिन आज कई एक्सपर्ट आगाह करते हुए कह रहे हैं कि यूक्रेन पर रूस का हमला तीसरे वर्ल्ड वॉर की शक्ल ले सकता है।
- ऐसे में यह विडंबना ही है कि जब यूक्रेन पर रूस हमला कर रहा था तो उस समय वह UNSC की अध्यक्षता भी कर रहा था, जबकि रूस को इस समय शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा माना जा रहा है।
- पिछले हफ्ते 2 फरवरी को यूक्रेन पर रूस ने जब हमला किया तो उस समय रूसी इन्वॉय वैसीली नेबेंजियास UNSC की आपात बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे।
- नेबेंजियास ने इस दौरान यूक्रेन पर हमले को सही ठहराने के लिए क्रेमलिन से आए मैसेज को मोबाइल से ही सीधे ही पढ़ना शुरू कर दिया। उन्होंने इस दौरान हमले की बात नहीं की, बल्कि कहा कि डोनबास में एक स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन शुरू किया गया है।
- इस दौरान अधिकांश सदस्यों ने रूस की निंदा की। साथ ही UN सेक्रेटरी एंतोनियो गुतारेस ने रूस पर UN चार्टर के उल्लंघन का आरोप लगाने का दुर्लभ कदम उठाया।