मायावती के आत्मघाती कदम के पीछे की कहानी …

आधे चुनाव में तो हाउस अरेस्ट जैसी स्थिति में रहीं मायावती, CBI- इनकम टैक्स जांच से बैकफुट पर….

यूपी की चार बार की सीएम मायावती 3 दशकों से दलितों की सबसे बड़ी लीडर हैं। यूपी में 22% SC कोर वोटर के साथ चुनाव मैदान में विरोधियों के दांत खट्टे करने वाली मायावती ने विधानसभा चुनाव 2022 में जैसे हथियार ही डाल दिए। चुनाव नतीजे आए तो 1 सीट पर वह पार्टी सिमट चुकी थी, जिसने 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। ऐसा नहीं है कि बसपा को वोट नहीं मिले, लेकिन वो सीटों पर काबिज होने से चूक गई। बता दें कि सिर्फ 11.12% वोट शेयरिंग के साथ बसपा ने 1993 में 67 सीटें जीत ली थी। फिर ऐसा क्या हुआ कि इस चुनाव में मायावती का जनाधार ही सरक गया। हमने इसकी वजह तलाशने का प्रयास किया।

पेश है मायावती की सरकती सत्ता पर रिपोर्ट…

वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं कि इसकी वजह खुद मायावती हैं। पहले 2002 में बनी सरकार, फिर 2007 में सत्ता में दोबारा आने के बाद मायावती सरकार NRHM घोटाला, लखनऊ-नोएडा स्मारक घोटाला और ताज कॉरिडोर घोटाले में घिर चुकी थी। आय से अधिक संपत्ति में CBI और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की जांच के आदेश होने के बाद मायावती और बसपा का पॉलिटिकल ग्राफ लगातार गिरता गया।

2007 में 403 विधानसभा सीटों में 206 विधायक जीते थे। 30.43% वोट शेयरिंग के साथ बसपा ने सरकार बनाई थी। इसके बाद यूपी सरकार को हिला देने वाले घोटालों ने बसपा की चूलें हिला दी। 2012 विधानसभा चुनाव में मायावती पूरी तरह से सक्रिय रही। वो लड़ी और 80 प्रत्याशियों को 25.95% वोट शेयरिंग के साथ जीत मिली थी। वैसे, ये CBI और ED की जांच का ही असर था कि 2017 के विधानसभा चुनाव तक मायावती ने जनसभाओं में भागीदारी कम कर दी। नतीजा वोट शेयरिंग सिर्फ 22.24% रह गई। 403 सीटों पर लड़ रही बसपा के सिर्फ 19 सिपहसालार जीते थे। 2022 के विधानसभा चुनाव में मायावती ने सिर्फ 12 जनसभाएं की। जमीन से ज्यादा वो ट्विटर पर सक्रिय नजर आईं।

  

मायाराज के बड़े घोटालों को भी पढ़िए….

3 सीएमओ की हत्या वाले 5 हजार करोड़ के घोटाले की आंच

  • अप्रैल 2005 से 2011 तक यूपी को NRHM में 8657 करोड़ रुपए मिले थे।
  • आरोप है कि 5000 करोड़ नियम विरुद्ध खर्च किए गए।
  • 1100 करोड़ ठेकेदारों को बिना एग्रीमेंट भुगतान हुए थे।
  • 27 अक्टूबर 2010 को CMO विनोद आर्य की हत्या की गई।
  • इससे पहले 2 अप्रैल लखनऊ CMO डॉ. बीपी सिंह की हत्या की गई।
  • इस केस से जुड़े CMO डॉ. सचान का जेल में शव मिला।
  • एक अन्य आरोपी का भी शव डासना जेल में मिला था।
  • UPPCL के प्रोजेक्ट मैनेजर सुनील वर्मा, डिप्टी CMO शैलेश यादव और बाबू महेंद्र शर्मा की भी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई।
  • इन मामलों में तत्कालीन मंत्री अनंत कुमार मिश्र और परिवार कल्याण मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को कुर्सी से हाथ धोना पड़ा।
  • नवंबर 2011 में हाईकोर्ट ने NRHM घोटाले की जांच CBI से कराने के लिए कहा।
  • CBI ने 200 से ज्यादा छापेमारी की थी। इस घोटाले में 74 FIR दर्ज हुई। करीब 50 आरोपपत्र दाखिल किए गए।

175 करोड़ के ताज कॉरिडोर घोटाले में मायावती घिरीं

2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार आने के बाद 175 करोड़ का प्रोजेक्ट स्वीकृत हुआ।
2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार आने के बाद 175 करोड़ का प्रोजेक्ट स्वीकृत हुआ।
  • 2002 में सीएम रहते हुए मायावती ने ताज कॉरिडोर विकसित करने की प्लानिंग की।
  • 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार आने के बाद 175 करोड़ का प्रोजेक्ट स्वीकृत हुआ।
  • बिना पर्यावरण विभाग की अनुमति लिए ठेकेदारों को 17 करोड़ जारी भी हो गए।
  • 2003 में SC ने CBI जांच के आदेश दिए।
  • 2007 में CBI ने मायावती, नसीमुद्दीन सिद्दीकी को घोटाले का आरोपी पाया।
  • सुप्रीम कोर्ट ने केस चलाने के आदेश दिए। हालांकि, राज्यपाल टीवी राजेश्वर ने अनुमति नहीं दी।
  • विशेष CBI अदालत ने आदेश दिया कि मायावती और नसीमुद्दीन के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।
  • विशेष CBI अदालत के इस फैसले के खिलाफ अलग-अलग 6 याचिकाएं इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में दायर की गईं।
  • 18 सितंबर 2009 को लखनऊ बेंच ने सभी याचिकाओं को क्लब करके मायावती और नसीमुद्दीन को नोटिस जारी कर दिया था।
  • जनहित याचिकाओं को मंजूरी दे दी थी। इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी गवर्नर के आदेश को सही ठहराया था।
  • इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई।
  • इस पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से जवाब मांगा है। ये मामला अभी भी विचाराधीन हैं।

14.10 अरब के घोटाले में मायावती के करीबी नसीमुद्दीन, बाबू सिंह कुशवाहा पर FIR

इन स्मारकों पर सरकारी खजाने से 41.48 अरब रुपए खर्च किए गए थे।
इन स्मारकों पर सरकारी खजाने से 41.48 अरब रुपए खर्च किए गए थे।
  • ये घोटाला मायावती के साल 2007 से 2012 तक के कार्यकाल में हुआ।
  • लखनऊ-नोएडा में अम्बेडकर स्मारक परिवर्तन स्थल, मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल, गौतमबुद्ध उपवन, ईको पार्क, नोएडा का अम्बेडकर पार्क, रमाबाई अम्बेडकर मैदान और स्मृति उपवन समेत पत्थरों के कई स्मारक तैयार कराए थे।
  • इन स्मारकों पर सरकारी खजाने से 41.48 अरब रुपए खर्च किए गए थे।
  • आरोप लगा था कि इन स्मारकों के निर्माण में बड़े पैमाने पर घोटाला कर सरकारी रकम का दुरूपयोग किया गया है।
  • सत्ता परिवर्तन के बाद इस मामले की जांच यूपी के तत्कालीन उपायुक्त एनके मेहरोत्रा को सौंपी गई थी।
  • लोकायुक्त ने 20 मई 2013 को सौंपी गई, अपनी रिपोर्ट में 14.10 अरब का घोटाला होने की बात कही थी।
  • लोकायुक्त ने सीबीआई से जांच कराए जाने की सिफारिश की थी।
  • लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट में कुल 199 लोगों को आरोपी माना गया था।
  • कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा के साथ कई विधायक शामिल थे।
  • 2012 में अखिलेश सरकार ने लोकायुक्त की सीबीआई या SIT जांच कराए जाने की सिफारिश को नजरअंदाज किया।
  • जांच सूबे के विजिलेंस डिपार्टमेंट को सौंप दी थी। विजिलेंस ने एक जनवरी साल 2014 को एफआईआर करवाई।
  • गोमती नगर थाने में मायावती के करीबी नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत उन्नीस लोग के खिलाफ लिखापढ़ी हुई। जांच जारी है।

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