जिस मालवा ने पंजाब को 18 में से 16 CM दिए, आत्महत्या करने वाले 97% किसान वहीं के; जानिए इसके बारे में सबकुछ
2022 विधानसभा के चुनाव में पंजाब में आम आदमी पार्टी को बंपर जीत मिली। ताज भगवंत मान के सिर सजा। बीते शनिवार को उन्होंने पंजाब के 18वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। खास बात यह है कि संगरूर के सतोज गांव में जन्मे और फिलहाल धुरी से विधायक भगवंत मान, पंजाब के उसी मालवा क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं, जहां से पूर्व CM चरणजीत सिंह चन्नी, कैप्टन अमरिंदर सिंह और प्रकाश सिंह बादल भी आते हैं।
दरअसल पंजाब को भौगोलिक दृष्टि से तीन भागों, मालवा, माझा और दोआबा में बांटा जाता है। 1966 से लेकर अब तक मालवा ने पंजाब को 18 में से 16 मुख्यमंत्री दिए हैं। मालवा की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि मान कैबिनेट के10 मंत्रियों में से 5 विधायक मालवा से आते हैं।
ऐसे में आइए जानते हैं कि पंजाब की राजनीति में मालवा क्षेत्र क्यों इतना खास है? वो कौन से मुद्दे हैं जो यहां की राजनीति पर असर डालते हैं, और आम आदमी पार्टी ने कैसे मालवा का किला जीतकर पंजाब में अपनी सरकार बना ली?
क्यों खास है मालवा?
मालवा अपने भौगोलिक आकार और जनसंख्या दोनों के हिसाब से पंजाब का सबसे बड़ा क्षेत्र है। ये इलाका सतलुज नदी से राजस्थान बॉर्डर तक फैला हुआ है। इसमें पंजाब के कुल 23 में से 11 जिले आते हैं। पंजाब विधानसभा की 117 में से 69 सीटें, यानी 58% सीटें इसी क्षेत्र में हैं। 2007 तक यहां 65 विधानसभा सीटें थीं। वहीं माझा में 25 और दोआबा में 23 सीटें हैं।
मालवा पंजाब की कॉटन बेल्ट भी है। इस क्षेत्र का एकमात्र औद्योगिक जिला लुधियाना, पंजाब का सबसे बड़ा और सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला जिला है। मालवा में बहुमत पाने वाली पार्टी ही ज्यादातर मौकों पर पंजाब की सिरमौर बनती आई है। सिर्फ 2007 में ही ऐसा हुआ था जब यहां की 65 में से 37 सीटें जीतने वाली कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल और BJP के गठबंधन से पिछड़कर सरकार नहीं बना पाई थी। उस समय सूबे के मुख्यमंत्री बनने वाले प्रकाश सिंह बादल भी मालवा से ही थे। मालवा ने 1966 से अब तक पंजाब को 83% मुख्यमंत्री दिए हैं।
इस बार आम आदमी पार्टी ने मालवा की 69 में से 66 सीटें जीतीं, जिसका नतीजा रहा कि पंजाब में आप की बहुमत वाली सरकार बनी।
मालवा में 27% किसानों के पास 10 एकड़ से ज्यादा जमीन
मालवा में सीटों की संख्या के अलावा यहां का आर्थिक समीकरण इसे पंजाब की राजनीति में खास बनाता है। यहां के ज्यादातर किसान खेतिहर हैं। करीब 27.5% किसानों के पास 10 एकड़ से ज्यादा जमीन है। मालवा की तुलना में दोआबा के 23% और माझा के सिर्फ 17% किसानों के पास ही 10 एकड़ से ज्यादा जमीन है।
इतना खास होने के बाद भी बाकी पंजाब से पिछड़ा होना है मालवा का मुद्दा
पंजाब की राजनीति में खास रोल होने के बाद भी मालवा काफी पिछड़ा हुआ इलाका है। पंजाब की तमाम सरकारी योजनाएं मालवा को ध्यान में रखकर ही बनाई जाती हैं, फिर क्यों माझा और दोआबा से पिछड़ा हुआ है मालवा?
- मालवा में अमीर जमींदारों के अलावा बड़ी संख्या में छोटे किसान भी हैं। कृषि प्रमुख क्षेत्र होने के बावजूद यहां पानी की कमी है। जो भी उपलब्ध पानी है, उसका एक बड़ा हिस्सा खेती के लिए उपयोगी नहीं है। मालवा कपास की खेती के लिए प्रसिद्ध है, पर यहां फसल में लाल कीट लगने की समस्या भी है। इन कारणों से खेती में उत्पादन कम है और आर्थिक प्रगति काफी धीमी है।
- शिक्षा की कमी भी मालवा के किसानों के लिए चुनौती है। दोआबा (81.48%) और माझा (75.9%) की तुलना में मालवा (72.9%) में साक्षरता दर कम है। ऐसे में शिक्षा न होने की वजह से किसानों के पास रोजगार के ज्यादा ऑप्शन नहीं है। लिंगानुपात के मामले में भी दोआबा और माझा दोनों मालवा से आगे हैं।
- पंजाब का इतना बड़ा भाग होने के बावजूद लुधियाना जिला ही मालवा का एकमात्र औद्योगिक केंद्र है। लुधियाना मालवा के अधिकतर जिलों से काफी दूर पड़ता है और रेल कनेक्टिविटी कोई खास अच्छी नहीं है। इस वजह से वहां जाकर रोजगार के प्रयास करना भी बड़ी चुनौती है।
किसानों की आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले यहीं से
मालवा के किसानों के पास जमीन का मालिकाना हक पंजाब के बाकी दो क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा है। किसान हित के मुद्दे यहां हमेशा से बड़े जोर-शोर से उठाए जाते रहे हैं। आजादी के बाद भूमिहीन किसानों को जमीन का मालिकाना हक देने के लिए चलाया गया “पेप्सू मुजारा आंदोलन” भी यहां दशकों तक चला था। मालवा में भारतीय किसान यूनियन की जमीन भी काफी मजबूत है।
मालवा में किसानों की आत्महत्या बड़ा और संवेदनशील मुद्दा रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक 1990 के बाद पंजाब में किसानों की आत्महत्या के 97% मामले अकेले मालवा क्षेत्र से आए हैं। इसका एक बड़ा कारण कर्ज और खेती में कम कमाई का होना है।
केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चले आंदोलन में मालवा के किसानों ने ही सबसे अधिक भागीदारी भी की। रिपोर्ट्स के मुताबिक इस आंदोलन के दौरान मारे गए 700 किसानों में से 80% किसान मालवा क्षेत्र से थे।
पंजाब का कैंसर बेल्ट है मालवा
- मालवा देश के कैंसर बेल्ट के रूप में बदनाम है, जिसकी वजह है पीने का पानी केमिकल युक्त होना। मालवा में कृषि के लिए भारी मात्रा में कीटनाशकों और रसायन युक्त खाद का इस्तेमाल किया जाता रहा है। इस इलाके के ग्राउंड वाटर में यूरेनियम और मर्करी जैसे खतरनाक केमिकल घुल चुके हैं। इस वजह से लोग कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का शिकार हो रहे हैं।
- सिर्फ 2021 में ही यहां के चट्ठेवाला गांव में 12-15 लोगों की कैंसर से मौत हो गई थी। पानी में केमिकल होने से यहां के गांवों में बड़ी संख्या में अंगहीन बच्चे पैदा होने के मामले भी सामने आते रहते हैं।
- कुछ सालों पहले तक मालवा के लोगों को कैंसर के इलाज के लिए बठिंडा से ट्रेन पकड़कर बीकानेर जाना पड़ता था। मरीजों की संख्या का आलम ये था कि उस ट्रेन को स्थानीय लोग कैंसर एक्सप्रेस के नाम से जानते थे। फिलहाल मालवा के संगरूर, फजिल्का, फरीदकोट और बठिंडा में कैंसर अस्पताल हैं जहां हजारों मरीज हैं।
और फिर मालवा को आम आदमी पार्टी में दिखाई दी बदलाव की उम्मीद
समस्याओं से जूझ रहे मालवा में आम आदमी पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में चार सीटें जीती थीं। पंजाब के विधानसभा चुनाव में पार्टी की एंट्री 2017 में हुई।
2017 में ही मालवा के लोगों में ये विचार बनना शुरू हो चुका था कि उन्होंने अकाली दल और कांग्रेस दोनों को देख लिया है। उन्हें ऐसी पार्टी चाहिए थी जो पंजाब का हुलिया बदल सके। हालांकि उस समय पंजाब में आम आदमी पार्टी का संगठन कमजोर था। अधिकतर ऐसे नेता थे जो दूसरी पार्टियों से आम आदमी पार्टी में गए थे। इसलिए उसे राज्य में सिर्फ 20, और उसमें से मालवा में 18 सीटें ही मिलीं।
2022 में आम आदमी पार्टी ने मालवा से संबंध रखने वाले भगवंत मान को अपना CM फेस बनाया। उनकी चुनौती मालवा के ही बाकी बड़े नेताओं से थी, पर आप को मुद्दों पर लड़ने का फायदा हुआ। मालवा में आम आदमी पार्टी कॉमेडियन से नेता बने भगवंत मान की लोकप्रियता भुनाने में भी कामयाब हुई।
आम आदमी पार्टी ने चुनाव में पढ़े -लिखे युवा कैंडीडेट उतारे। चुनाव प्रत्याशियों ने घर-घर जाकर लोगों से ग्राउन्ड कनेक्ट किया। केजरीवाल ने पूरा चुनाव दिल्ली मॉडल पर लड़ा। उन्होंने नशा मुक्त राज्य, सरकारी स्कूलों में बेहतर पढ़ाई, फ्री दवाओं और युवाओं को रोजगार के वादे किए, जिन पर जनता ने भरोसा दिखाया।
बदलाव के लिए वोट करती आई है मालवा की जनता
पंजाब की राजनीति को सीधा प्रभावित करने वाला मालवा क्षेत्र राज्य के लिए परिवर्तन की भूमि माना जाता है। एक तरफ जहां दोआबा में दलित राजनीति और माझा में पंथिक (धार्मिक) राजनीति सत्ता को प्रभावित करते हैं, वहीं मालवा की राजनीति में जमीनी मुद्दे छाए रहते हैं। इसलिए पंजाब की राजनीति में नए वादों के साथ आने वाली पार्टियों की एंट्री भी मालवा से ही होती है, जैसा कि आप के साथ हुआ।
मालवा में हमेशा सत्ताधारी पार्टी के विपक्ष में वोट करने का ट्रेंड देखा गया है। सिर्फ एक बार 2012 में सत्ताधारी अकाली दल की कांग्रेस की 32 सीटों के मुकाबले एक सीट ज्यादा, 33 सीटें आई थीं। पंजाब विवि में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रोंकी राम के अनुसार उस समय अकाली दल ने धार्मिक राजनीति को छोड़कर राज्य में कानून व्यवस्था सुधारने, सड़कें बनाने और आर्थिक विकास के लिए काम किया था। हालांकि, 2017 में एक बार फिर जब अकाली दल पंथिक राजनीति की तरफ झुका, तो मालवा की जनता ने उन्हें उखाड़ फेंका।
बदलाव की राह पर चलते हुए ही इस बार भी मालवा ने परिवर्तन के लिए वोट किया। आम आदमी पार्टी को मालवा में 66 और पूरे पंजाब में 92 सीटों का बम्पर बहुमत मिला। भगवंत मान मालवा से आने वाले पंजाब के 16वें CM बने और इस तरह मालवा ने एक बार फिर पूरे पंजाब की राजनीति पलटकर रख दी।