नर्सिंग की दुकान:कहीं शादी हॉल में चल रहा नर्सिंग कॉलेज तो कहीं एक ही बिल्डिंग में बीएड, डीएड, नर्सिंग, फार्मेसी और 100 बेड का अस्पताल
ये संस्थान दुकान जैसा काम कर रहे हैं। यदि कोई अप्रशिक्षित, अपात्र व्यक्ति पैरामेडिकल स्टाफ या नर्सिंग स्टाफ बन जाए और अस्पताल में पदस्थ हो गया तो क्या होगा। हर दिन किसी ने किसी अस्पताल में ऐसी घटनाएं होती हैं, जिसमें कहीं कैंची छूट जाती है तो कहीं कुछ सामान छूट जाता है। यदि स्टाफ प्रशिक्षित नहीं होगा तो ऐसा ही होगा। ये गड़बड़ बंद होनी चाहिए। चाहे वह मेडिकल के मामले में हो या पैरामेडिकल के, नहीं तो एक समय यह आएगा कि ये व्यापमं से बड़ा घोटाला हो जाएगा।
मप्र में गली-गली नर्सिंग कॉलेज खुल रहे हैं। इन कॉलजों में स्टूडेंट को डिग्री की गारंटी तो है, लेकिन पढ़ाई की नहीं। हाल ये है कि कई कॉलेज एक-एक रूम में चल रहे हैं। भोपाल में एक कॉलेज शादी हॉल में चल रहा है तो दूसरे कॉलेज की बिल्डिंग में बीएड, डीएड, नर्सिंग, फार्मेसी और 100 बेड का अस्पताल भी है।
इसी महीने 3 अप्रैल को मप्र हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच में जस्टिस रोहित आर्या और जस्टिस सुनीता यादव ने मप्र मेडिकल यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार से कहा था- प्रदेश में नर्सिंग कॉलेजों में जो गड़बड़ियां चल रही हैं, वो बंद होनी चाहिए, वरना ये व्यापमं से भी बड़ा घोटाला होगा।
दैनिक भास्कर ने नर्सिंग कॉलेजों के गड़बड़झाले की पड़ताल की तो कई चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं। पता चला है कि पूरे प्रदेश में मप्र नर्सेस रजिस्ट्रेशन काउंसिल के अफसरों की मिलीभगत से फर्जीवाड़ा पनप रहा है। कोरोनाकाल से पहले यानी 2019-20 में प्रदेश में 448 नर्सिंग कॉलेज थे, जो 2020-21 में बढ़कर 667 हो गए। वो भी तब, जब कोरोना के चलते ज्यादातर वक्त लॉकडाउन में बीता। भोपाल में ऐसे कॉलेज 57 से बढ़कर 81 हो गए। ऐसे सबसे ज्यादा 46 कॉलेज ग्वालियर में खुले।
ढूढ़ते रहे जाओंगे- शादी हॉल की दूसरी मंजिल पर 1200 वर्गफीट का नर्सिंग कॉलेज
ये तस्वीर भोपाल के करोंद इलाके में बने बंधन शादी हॉल की है, जहां दूसरे फ्लोर पर वीनस नर्सिंग कॉलेज चल रहा है। बाहर से देखेंगे तो कहीं भी कॉलेज नहीं दिखेगा। बगल की गली से जाएंगे तो कॉलेज का रास्ता मिल जाएगा। यहां 3 कमरे और एक हॉल है, जो हजार या 1200 वर्ग फीट में बना है। मप्र नर्सेस रजिस्ट्रेशन काउंसिल ने इस छोटे से कैंपस में नर्सिंग की 50, जीएनएम की 50, एक अन्य नर्सिंग कोर्स की 20 सीटों की अनुमति दे दी।
सालाना 600 करोड़ रुपए का कारोबार- कुल छात्रों में 50% सिर्फ राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़ और बिहार के, वजह- मप्र में सीटें 26% ज्यादा
मप्र में अन्य राज्यों की तुलना में 26% सीटें ज्यादा हैं। इसलिए यहां के कुल स्टूडेंट्स में 50% सिर्फ चार राज्य राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़ और बिहार के हैं। ये छात्र सिर्फ पेपर देने आते हैं। इन चार राज्यों में नर्सिंग की 46212 सीटें हैं, जबकि अकेले मप्र में 60607 सीटें हैं। फीस भी कम है। एक छात्र से औसतन 50 से 60 हजार रु. फीस ली जाती है, जबकि बाकी राज्यों में 80 हजार से 1 लाख तक है।
प्रदेश में कुल 670 नर्सिंग कॉलेज है, इसमें 81 भोपाल में है। इन कॉलेजों में करीब एक लाख स्टूडेंट्स हैं। इनकी सालाना कमीई करीब 600 करोड़ रु. है। 2020-21 की सीटों के हिसाब से जीएनएम की कुल 24885 सीटें हैं। इनमें प्रति छात्र के हिसाब से 136 करोड़ रुपए सालाना फीस आती है। बीएससी की कुल 18719 सीटें हैं, जिनसे 112 करोड़ रुपए मिलता है।
नर्सिंग कॉलेज खोलने के लिए ये नियम बने हैं
- 22 से 25 हजार वर्गफीट अकादमिक भवन हो।
- 8 से 10 हजार वर्गफीट का हॉस्टल हो।
- पांच प्रयोग शालाएं एवं एक लायब्रेरी हो।
- संस्था का स्वयं का 100 बिस्तर का अस्पताल।
- एक नर्सिंग कोर्स के लिए 100 बेड हों।
- 15 बच्चों पर एक फीमेल और एक मेल टॉयलेट हो।
(नर्सिंग शिक्षण संस्था मान्यता नियम 2018 के अनुसार)