डकैत की कहानी-14 … मां बोली- सुबह होने से पहले मेरा बदला ले, वरना शक्ल मत दिखाना, पान सिंह ने 4 हत्याएं कर दीं

1 जनवरी 1932 को मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के भिदौसा गांव में एक बच्चे का जन्म हुआ। उस बच्चे ने चलने सीखने वाली उम्र में दौड़ना शुरू कर दिया। गांव-घर के लोग 4 साल के बच्चे को फुल स्पीड में दौड़ते हुए देख अचंभित हुआ करते थे। बच्चा 17 साल का हुआ तो फौज की राजपूताना राइफल्स में उसका सिलेक्शन हो गया। साल 1949 से लेकर 1979 तक फौज में नौकरी की। फौज की नौकरी करते हुए 7 बार राष्ट्रीय बाधा दौड़ का चैंपियन बना। एशियन गेम्स टोक्यो, जापान में भारत को रिप्रेजेंट भी किया।

वह लड़का अपने करियर की ऊंचाई पर था। मिल्खा सिंह समेत देश के बड़े-बड़े लोग उसकी दौड़ की तारीफें किया करते थे, लेकिन तभी कुछ ऐसी घटना घटी कि उसे फौज की नौकरी छोड़ बीहड़ का रुख करना पड़ा। सरकार का दुश्मन बनना पड़ा।

आज कहानी उसी लड़के पान सिंह तोमर की जो मां के कसम देने पर बागी बना। उसने ऐसा क्या किया कि MP के मुख्यमंत्री ने दिवाली पर दिया जलाने से मना कर दिया? आइये जानते हैं…

साल 1975, तब पान सिंह आर्मी में हुआ करते थे।
साल 1975, तब पान सिंह आर्मी में हुआ करते थे।

पेट भरने के लिए सेना का स्पोर्ट्स कोटा जॉइन कर लिया
पान सिंह 6 फुट का हट्टा-कट्टा जवान था। सेना में जाने के बाद दिन-रात मेहनत करता था, इसलिए भूख भी बहुत लगती थी। सामान्य कोटा वाले फौजियों की खुराक निश्चित थी। खाने को गिनती की रोटियां मिलती थीं। उन रोटियों से पान सिंह का पेट नहीं भरता था, इसलिए उसने स्पोर्ट्स कोटा जॉइन कर लिया। दरअसल, फौज की कैंटीन के एक बावर्ची ने उसे बताया था कि स्पोर्ट्स वालों को खाना पेटभर मिलता है।

दौड़ने में तो बचपन से ही आगे था। स्पोर्ट्स कोटा जॉइन कर पान सिंह दौड़ने लगा और उसे पेट भर खाने को मिलने लगा। फिर उसकी पोस्टिंग रुड़की के बंगाल इंजीनियरिंग ग्रुप में हो गई। रुड़की में फौज की भीतरी दौड़ प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और जीतता गया। उसके ट्रेनर ने उसे बाधा दौड़, यानी स्टीपलचेज की ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी।

पान सिंह ने जम कर प्रैक्टिस की और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने लगा। साल 1950 से लेकर 1960 के बीच उसने 7 बार नेशनल स्टीपल चैम्पियनशिप जीती। इन जीतों के बाद आर्मी के तमाम बड़े अफसरों के साथ खुद मिल्खा सिंह भी पान सिंह की तारीफ करने लगे थे। अब पान सिंह आम सिपाही से सूबेदार बन चुके थे।

पान सिंह ने बाधा दौड़ में कई रिकॉर्ड बनाकर दुनिया भर में शोहरत हासिल की थी।
पान सिंह ने बाधा दौड़ में कई रिकॉर्ड बनाकर दुनिया भर में शोहरत हासिल की थी।

जापान में हुए एशियन गेम्स में जीतते-जीतते हार गया
साल 1952 में पान सिंह को टोक्यो, जापान में होने वाले एशियन गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा गया था। उन दिनों पान सिंह के लेवल का खिलाड़ी पूरी दुनिया में नहीं था। उसे ही जीत का सबसे बड़ा दावेदार माना जा रहा था, लेकिन वो हार गया।

दरअसल, पान सिंह को बिना जूतों के दौड़ने की आदत थी। प्रैक्टिस से लेकर अब तक हुई किसी भी प्रतियोगिता में उसने कभी जूते नहीं पहने थे। जूता पहनकर दौड़ने में वो कभी सहज नहीं रहा, लेकिन एशियन गेम्स के नियमों के अनुसार उसे मजबूरन वहां जूता पहन कर दौड़ना पड़ा। यही उसके हार ही सबसे बड़ी वजह रही।

अपने फौजी साथियों के साथ पान सिंह (लाल घेरे में)।
अपने फौजी साथियों के साथ पान सिंह (लाल घेरे में)।

समय से पहले नौकरी छोड़ दी, वजह थी- जमीनी विवाद
नौकरी करते हुए पान सिंह का जीवन सही बीत रहा था। घर में बीवी, 2 बच्चे और मां थी। इसी बीच गांव में उसकी जमीन को लेकर विवाद होना शुरू हो गया। उसने वक्त से पहले नौकरी छोड़ गांव में रहकर खेती करने का फैसला लिया।

दरअसल, पान सिंह और उसके चाचा की कुल मिलाकर ढाई बीघा जमीन थी। सवा बीघा पान सिंह की और सवा बीघा उसके चाचा की। चाचा को पैसों की जरूरत थी, इसलिए उसने पूरी ढाई बीघा जमीन गांव के दबंगों बाबू सिंह और जंडेल सिंह तोमर के पास गिरवी रख दी। कुछ दिनों बाद बाबू सिंह तोमर ने पूरी जमीन पर कब्जा कर चाचा को खेती करने से मना कर दिया। नौकरी छोड़ पान सिंह तोमर गांव पहुंचा तो उसने पंचायत बुलाई। पंचायत ने फैसला सुनाया कि पान सिंह और उसका चाचा बाबू सिंह को उसके पैसे चुकाएं और जमीन वापस ले लें। पान सिंह तैयार हो गया, लेकिन बाबू तोमर जमीन वापस करने के मूड में नहीं था।

अपनी बीवी इंद्रा, मां और बच्चों के साथ पान सिंह।
अपनी बीवी इंद्रा, मां और बच्चों के साथ पान सिंह।

पुलिस के पास गया, देश के लिए जीते गए मेडल दिखाए; किसी ने नहीं सुनी
पंचायत के फैसले के बाद भी बाबू तोमर जमीन वापस करने को तैयार नहीं था। पान सिंह के बेटे ने इसका विरोध किया तो उन्होंने बेटे की ही जमकर पिटाई कर दी। पान सिंह पुलिस के पास गया तो पुलिस ने उल्टा उसी का मजाक बनाया। पान सिंह ने दरोगा को अपने देश के लिए जीते हुए मेडल तक दिखाए, लेकिन उसने उसकी कोई कद्र नहीं की।

पान सिंह कलेक्टर के पास गया। कलेक्टर साहब गांव आए, उन्होंने वही फैसला किया जो पहले पंचायत कर चुकी थी। बाबू तोमर जमीन वापस करने के इरादे में नहीं था। उस जमीन पर चाचा ने जो खेती की थी बाबू ने सारी फसल में आग लगवा दी। पान सिंह ने हिम्मत नहीं हारी वो लगातार बड़े-बड़े अफसरों के पास जाता रहा। बाबू तोमर और उसके परिवार के लोगों को पान सिंह की ये बात पसंद नहीं आई।

पान सिंह की मां को बंदूक के बट से पीटा
पान सिंह का बड़े-बड़े अफसरों तक जाना बाबू तोमर और जंडेल तोमर को पसंद नहीं आया। एक दिन उन्होंने पान सिंह को घर जाकर मारने का प्लान बनाया। वो घर की तरफ बढ़े, घर पर बीवी, बच्चे और मां थी। मां ने उन लोगों को बंदूक के साथ गुस्से में घर की तरफ आते देखा तो बहु और पोतों को घर से भाग जाने के लिए कहा।

फौज से रिटायरमेंट लेने के बाद पान सिंह ऐसे दिखते थे।
फौज से रिटायरमेंट लेने के बाद पान सिंह ऐसे दिखते थे।

बाबू तोमर और उसके 8-10 साथी दरवाजा तोड़ते हुए घर के अंदर घुसे। वहां देखा तो केवल पान सिंह की बूढ़ी मां थी। वो इतने गुस्से में थे कि पान सिंह के ना मिलने पर उन्होंने बंदूक के बट से उसकी मां को ही पीट दिया। जब पान सिंह घर वापस आया और उसने अपनी मां की हालत देखी तो उसके सीने में आग लग गई। घायल मां ने पान सिंह से टूटे हुए लफ्जों से कहा, “तुझे पैदा होते ही मर जाना चाहिए था। अगर सुबह होने से पहले तूने अपनी मां का बदला नहीं लिया तो मुझे अपनी शक्ल मत दिखाना।”

पान सिंह ने सूरज निकलने से पहले बाबू तोमर को मार डाला
मां के कसम देते ही पान सिंह ने बंदूक उठाई और भाई-भतीजे के साथ निकल पड़ा। पान सिंह ने अगले दिन का सूरज निकलने से पहले, सुबह 4 बजे के करीब बाबू तोमर को उसके घर में घुस कर गोली मार दी। सुबह मां की मौत हो जाती है। इसके बाद पान सिंह बाबू के भाई जंडेल सिंह को मारता है। कुछ दी दिनों में बाबू तोमर के रिश्तेदार लायक सिंह और हवलदार सिंह को भी गोली मार देता है।

इन 4 हत्याओं के बाद पुलिस पान सिंह के पीछे पड़ जाती है। पुलिस के बचने के लिए पान सिंह अपने भाई, भतीजों और परिवार के कुछ लोगों के साथ चंबल के बीहड़ की तरफ भाग जाता है।

पान सिंह तोमर
पान सिंह तोमर

फूलन देवी और मलखान सिंह भी खौफ खाने लगे थे
बीहड़ पहुंचने के कुछ दिनों बाद पान सिंह ने गैंग बना ली। गैंग में आधे लोग परिवार के थे और आधे ऐसे थे जो पान सिंह को अपना रोल मॉडल मानने लगे थे। समाज और पुलिस के सताए हुए थे। साल भर में उसकी गैंग में 30 से ज्यादा लोग शामिल हो चुके थे। इसके बाद उसने अपनी गैंग को फौज वाली ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी। कुछ ही महीनों में उसकी गैंग इतनी ताकतवर हो गई थी कि पुलिस भी पान सिंह की गैंग का सामना करने से डरने लगी थी। उसकी गैंग के अन्य डाकू उसे सूबेदार चाचा कहकर बुलाते थे।

पान सिंह का एनकाउंटर करने वाले DSP एमपी सिंह ने एक मीडिया इंटरव्यू में बताया था, “फौजी बैकग्राउंड होने की वजह से पान सिंह पुलिस से सारे पैंतरे समझता था। उसकी लूट, अपहरण और हत्याओं की वारदातों की वजह से पूरी चंबल घाटी में उसका खौफ था। पुलिस वाले तो उसके नाम का खौफ खाते ही थे। 6 फुट के हट्टे-कट्टे पान सिंह से उस दौर के बड़े डाकू फूलन सिंह और मलखान सिंह भी खौफ खाते थे। लोग उसे घाटी का शेर कहकर बुलाने लगे थे।”

ताश खेलने के शौक़ीन पान सिंह का निशाना कभी नहीं चूकता था
पान सिंह की गैंग के सदस्य और उसके सगे भतीजे बलवंत सिंह ने एक टीवी इंटरव्यू में बताया था, “सूबेदार चाचा बेहद मजाकिया थे। पुलिस के साथ बड़ी से बड़ी मुठभेड़ करने के वक्त भी वो मजाकिया बातें कर दिया करते थे। यहां तक कि वो अपनी पकड़, यानी जिसका उन्होंने अपहरण किया है उसके साथ भी मजाक किया करते थे। मजाक के मामले में वो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक को नहीं छोड़ते थे।”

पान सिंह पर बनी फिल्म में अभिनेता इरफान खान ने मुख्य किरदार निभाया था।
पान सिंह पर बनी फिल्म में अभिनेता इरफान खान ने मुख्य किरदार निभाया था।

“कंधे पर बंदूक रखकर किसी पर निशाना तान देते थे तो उनका निशाना कभी नहीं चूकता था। चाचा ताश खेलने के बहुत शौकीन थे। बीहड़ में खाली वक्त काटने के लिए वो अपनी गैंग के लोगों को जबरदस्ती बिठा कर ताश खेला करते थे। ताश का दहला पकड़ खेल उनका फेवरेट था। दिमाग के इतने तेज थे कि MP में रहते हुए राजस्थान से अपहरण करा लिया करते थे।” साल 1981 तक पान सिंह ने 50 से ज्यादा अपहरण कर लिए थे।

भाई मारा गया तो 6 लोगों की लाशें बिछा दीं
बीहड़ में खाने-पीने का ठिकाना नहीं रहता था, इसलिए पान सिंह की गैंग बीहड़ के आस-पास के गांवों में डेरा डाला करती थी। उसकी गैंग गांव के किसी भी रसूखदार के घर पहुंचती और उन्हें खाना खिलाने को कहती। एक दिन पान सिंह अपनी गैंग के साथ भिंड के एक गांव में गुर्जर के घर पहुंचा उससे खाना बनाने के लिए कहा। घर के मुखिया ने इस बात की जानकारी पुलिस को दे दी। पुलिस बिना देरी किए पान सिंह की गैंग पर हमला बोल देती है। हमले में पान सिंह का भाई मातादीन मारा जाता है। पान सिंह और बाकी गैंग वहां से बच निकलती है।

कुछ दिनों बाद पान सिंह को पता लगता है कि गुर्जर ने उसकी मुखबिरी की थी। पान सिंह दोबारा उस गांव पहुंचता है और गुर्जर परिवार के 6 लोगों को एक साथ गोली मार देता है। मारने के बाद अपने लाउडस्पीकर से गांव में ऐलान करता है, “सरकार और पुलिस को बता देना पान सिंह को पकड़ पाना उनकी औकात से बाहर है।” इस हत्या की घटना से MP सरकार हिल जाती है।

पान सिंह की 88 वर्षीय पत्नी इंद्रा।
पान सिंह की 88 वर्षीय पत्नी इंद्रा।

MP के मुख्यमंत्री ने दिवाली के दिए नहीं जलाए, पान सिंह पर करोड़ों खर्च कर दिए
साल 1981, जब पान सिंह ने 6 लोगों को एक साथ मारा था तब MP के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह थे। इस घटना से अर्जुन सिंह को बहुत दुःख हुआ था। उस वक्त उन्होंने कहा था, “इस दिवाली, मैं दिए नहीं जलाऊंगा।”

अर्जुन सिंह पान सिंह को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का हुक्म देते हैं। पुलिस पर दबाव बनता है और फिर BSF की 10 टुकड़ियां और STF की 15 टुकड़ियां पान सिंह के पीछे लगा दी जाती हैं। उस वक्त पान सिंह को तलाशने के लिए अर्जुन सिंह सरकार ने 3 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च कर दिए थे। पुलिस को नई तकनीक के हथियार भी दिलाए गए थे।

लोगों को नौकरी का लालच दिया तब पुलिस कर पाई एनकाउंटर
इन्हीं टुकड़ियों में से एक टुकड़ी का नेतृत्व DSP एमपी सिंह कर रहे थे। इन सभी टीमों का नेतृत्व SSP रमन कर रहे थे। SSP रमन ने गांव-गांव जाकर लोगों से कहा, “पान सिंह की खबर देने वाले को नौकरी दी जाएगी। लोग लालच में आए और पुलिस को पान सिंह की खबर देने के लिए तैयार हो गए।

अक्टूबर, 1981 में पुलिस जानकारी मिली कि पान सिंह 18 लोगों के साथ फलां गांव में है। बिना देरी किए पुलिस अपने 118 जवानों के साथ उस गांव पहुंच जाती है। पान सिंह की गैंग को चारों तरफ से घेर लिया। करीब 9 घंटे की मुठभेड़ के बाद पान सिंह तोमर मारा गया।

एनकाउंटर के बाद पान सिंह और उसकी गैंग।
एनकाउंटर के बाद पान सिंह और उसकी गैंग।

पान सिंह तोमर का बेटा भी आर्मी में गया
पान सिंह तोमर का पूरा परिवार उसके साथ गैंग में शामिल था, लेकिन उसने अपने बेटों को कभी डाकू या कहें बागी नहीं बनने दिया। पान सिंह के दो बेटे हैं। बड़ा बेटा पुलिस की नौकरी करना चाहता था। पान सिंह पुलिस से नफरत करता था, इसलिए उसने बेटे को फौज में जाने को कहा। आर्मी में अपनी पहचान की दम पर उसने अपने बेटे को आर्मी में भेजा भी। बेटा सूबेदार के पद तक पहुंच कर रिटायर हुआ। झांसी के पास एक गांव में आज भी पान सिंह का परिवार रहता है और अभी भी उनके परिवार में सिर्फ फौज में नौकरी करने की परम्परा बनी हुई है।

पान सिंह पर बनी फिल्म का पोस्टर
पान सिंह पर बनी फिल्म का पोस्टर

फिल्म बनी, सुपरहिट रही
पान सिंह की मौत के 29 साल बाद, यानी साल 2010 में उनके जीवन पर एक फिल्म बनी। पान सिंह तोमर नाम की ये फिल्म नामी डायरेक्टर तिग्मांशू धूलिया ने डायरेक्ट की थी। अभिनेता इरफान खान ने पान सिंह की भूमिका निभाई थी। इस फिल्म में उसके जीवन से जुड़ी एक-एक घटना को बारीकी से दिखाया गया है।

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