अग्निपथ से जवान खतरा न बन जाए …?

4 साल की जॉब में मौका ज्यादा, जोखिम कम; नाम, नमक, निशान वाला डेडिकेशन लाना चुनौती…

केंद्र सरकार ने हाल ही में ‘अग्निपथ’ स्कीम लॉन्च की है। इसके जरिए सैनिकों, नौसैनिकों और वायु सैनिकों को रिक्रूट किया जाएगा। इस स्कीम को ‘अग्निपथ’ नाम दिया गया है और इसमें जिन जवानों को रिक्रूट किया जाएगा, उन्हें ‘अग्निवीर’ कहा जाएगा।

इन जवानों को 4 साल के लिए रिक्रूट किया जाएगा। इसमें पेंशन से जुड़े कोई बेनिफिट तो नहीं होंगे, लेकिन सैलरी से कुछ हिस्सा कटेगा जो बाद में एकमुश्त दिया जाएगा। चार साल बाद 25% सैनिकों को ही स्थायी तौर पर नियुक्ति दी जाएगी।

सेना में बैलेंस बनाए रखना चैलेंज होगा
इस नई रिक्रूटमेंट पॉलिसी को लेकर देशभर में हल्ला मचा हुआ है। हालांकि अब यह आर्म्ड फोर्सेज पर है कि, वे न सिर्फ इसे लागू करें बल्कि एक एडवांटेज के तौर पर लें।

इस स्कीम के कुछ फायदे और कुछ चुनौतियां हैं। अब आर्म्ड फोर्सेज को बिना बैलेंस बिगाड़े चुनौतियों को स्वीकार करना है।

फायदे की बात करें तो अब हर चार साल में एक तिहाई हिस्सा रिटायर हो जाएगा। इनकी जगह नए जवान आ जाएंगे, जिनकी उम्र साढ़े 17 साल से 23 साल के बीच होगी।

अभी अपनी उम्र के तीस के दशक में रिटायर होने वाले जवान भी यंग होते हैं, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि बीस के दशक वाली उम्र वाले और ज्यादा एनर्जेटिक होंगे और ऑपरेशनल कॉन्टेक्ट्स के हिसाब से ज्यादा फिट रहेंगे।

टॉप 25% को ही स्थायी नियुक्ति मिलेगी
यंग जनरेशन आर्मी ज्वॉइन करने के लिए बहुत उत्सुक है। इसमें कुछ ऐसे भी हैं, जो आर्मी को लाइफ टाइम करियर नहीं बनाना चाहते। उन लोगों के लिहाज से भी यह स्कीम बढ़िया है।

दूसरी अहम बात ये है कि इससे जूनियर लेवल पर बेहतर लीडरशिप डेवलप होगी, क्योंकि सिर्फ टॉप 25% को ही स्थायी तौर पर नियुक्त किया जाएगा और टॉप 25% में आने के लक्ष्य से अग्निवीर अपना सर्वश्रेष्ठ देंगे। एक तरह से यह उनके लिए मोटिवेशन का काम करेगा।

डिफेंस बजट का 80% सैलरी-पेंशन में जाता है
अभी डिफेंस बजट का 80% सैलरी और पेंशन में ही जाता है। इतने बड़े खर्चे के बाद सेनाओं को मॉर्डनाइज करने के लिए काफी कम बजट रह जाता है। नई स्कीम से सैलरी और पेंशन में होने वाला खर्चा बचेगा। हालांकि, इसकी कुछ चुनौतियां भी होंगी।

एक जवान को तैयार करने में रिक्रूटर्स ट्रेनिंग पहला स्टेप होता है। आपसी सौहार्द और अपनेपन की भावना बाद में आती है।

अब ट्रेनिंग का पीरियड कम हो जाएगा। इससे फोक्स्ड ट्रेनिंग के साथ ही कुछ इनोवेटिव मेथड्स​ ​​​​तलाशना होंगे।

चार साल के बाद जवान अपने फ्यूचर को लेकर फिक्रमंद हो सकता है, लेकिन एक डिसिप्लिन और मोटिवेटेड कैंडीडेट इम्प्लॉयमेंट ढूंढने में दूसरे कैंडीडेट्स के मुकाबले ज्यादा सक्षम होगा। फिर भी जॉब की कोई गारंटी तो नहीं दी जा सकती।

हालांकि, सरकार इन जवानों को पैरामिलिट्री और सेंट्रल आर्म्ड फोर्सेज में प्रिफरेंस दे तो यह अच्छा होगा। यह विन-विन सिचुएशन होगी, क्योंकि जवानों को जॉब मिली जाएगी और फोर्सेज को ट्रेंड सोल्जर।

युवाओं को रोजगार के मौके देना जरूरी होगा
इसके जरिए सरकार की मंशा सोसायटी में एक्स-सोल्जर्स का फैलाव करने की भी है। इससे सामाजिक गुणवत्ता बढ़ने की संभावना है, लेकिन ऐसा करने के लिए जरूरी है कि इन युवाओं को रोजगार के सही अवसर दिए जाएं वरना एक बेरोजगार ट्रेंड सोल्जर सोसायटी के लिए खतरा भी बन सकता है।

अग्निवीर को एक फुल टाइम सोल्जर की तरह सौहार्द, लॉयल्टी और मोटिवेट करना भी चुनौती हो सकती है। जवान अपनी ‘पल्टन की इज्जत’ और नाम यानी रेजीमेंट, नमक मतलब देश और निशान मतलब पलटन का झंडा के लिए जान दे देता है।

हालांकि मुझे यकीन है कि सेना का नेतृत्व असाधारण गुणवत्ता वाला है और वे बहुत ही जल्दी नई परिस्थितियों में खुद को ढाल लेंगे। जरूरत पड़ने पर सरकार मध्यक्रम में सुधार करने के लिए भी सहमत है। यह स्वाग्तयोग्य कदम है।

नए रिफॉर्म का स्वाग्त करते हुए इन्हें आजमाना चाहिए। जरूरत पड़ने पर संशोधन किए जा सकते हैं। सेना के नेतृत्व पर इसे बिना बैलेंस बिगाड़े लागू करने की बड़ी जिम्मेदारी है, क्योंकि दोनों पड़ोसी हमारे लिए चुनौती हैं, जो न्यूक्लियर पावर से लैस हैं।

(यह लेख कश्मीर में सेना के पूर्व कोर कमांडर रहे सतीश दुआ ने लिखा है। वे चीफ ऑफ इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के पद से रिटायर हुए हैं।)

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