प्लास्टिक अब मात्र सड़कों या समुद्र तक सीमित नहीं है, यह हमारे शरीर में भी प्रवेश करेगा

दुनिया भर में सिंगल यूज प्लास्टिक को लेकर गंभीरता तो आई है। इस पर एक बड़े प्रतिबंध का समय भी आ चुका था। प्लास्टिक के उपयोग के नाम पर सारी सीमाओं को पार किया जा चुका था। विकल्प के अभाव में भी इस पर पूर्ण प्रतिबंध देश-दुनिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण कदम माना जाएगा। वैसे भी लंबे समय से सारे नियमों को ताक पर रखकर ही इसका बदस्तूर उपयोग बदस्तूर जारी है।

यहां यह भी याद रखना चाहिए कि दुनिया के कई देशों ने इसको पहले ही प्रतिबंधित कर दिया है। ऐसे 16 देश हैं- जिनमें यूके, ताइवान, अमेरिका शामिल हैं। इसके अलावा करीब 127 देश एक ऐसा कानून बनाने की तैयारी में हैं, ताकि प्लास्टिक के उपयोग को पूरी तरह से बंद किया जा सके। और भी कई तरह के प्रावधान तैयार किए जा रहे हैं, जिनमें हैवी टैक्सेशन भी शामिल है।

कुछ बड़े कॉर्पोरेट हाउस ने भी गंभीरता समझते हुए इसके उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया है। इनमें मैकडोनाल्ड, स्टारबक्स जैसी बड़ी कंपनियां भी शामिल हैं। आज दुनिया में 9 अरब टन प्लास्टिक मौजूद है। कई जगहों पर प्लास्टिक के पहाड़ बन गए हैं। इसमें कोई अतिशयोक्ति भी नहीं। देश में ऐसा कोई शहर नहीं बचा है, जहां प्लास्टिक कचरे के वैसे पहाड़ न बन चुके हों।

इनका स्थानीय प्रकृति व प्रवृत्ति को बदलने में पूरा योगदान है। अजीब बात ये भी है कि अपने देश की नई आती पीढ़ी प्लास्टिक कल्चर को ज्यादा जानती है और उसके साथ तालमेल बना भी चुकी है। वह प्लास्टिक प्रयोग में ज्यादा असहज नहीं दिखाई देती। जब प्लास्टिक नई सभ्यता का हिस्सा बन चुका हो तो इससे मुक्त होने के लिए कड़े कदमों की जरूरत तो होगी ही। प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध आज की जरूरत है।

दुनिया में जितना भी प्लास्टिक निकलता है, उसका 9% से ज्यादा रिसाइकिल भी नहीं होता और वह अंततः तमाम तरह के रास्तों से खेतों से लेकर समुद्र तक पहुंच जाता है। अपने देश के भी हालात कुछ ऐसे ही हैं। सन् 2021 में करीब 41000 टन प्रतिवर्ष की दर से कुल प्लास्टिक उत्पादित किया गया था। इसमें करीब 10 से 15% वाला वह प्लास्टिक है, जिसे हम सिंगल यूज प्लास्टिक कह सकते हैं।

इस तरह यह 3 किलो प्रति व्यक्ति था, जिसमें 10 से 35% अकेला सिंगल यूज प्लास्टिक था। आज प्लास्टिक उत्पादन करने वाली करीब 683 इकाइयां हैं। देश में कुल प्लास्टिक क्षमता 2.4 लाख टन है। इतनी अपार मात्रा में अगर प्लास्टिक हमारे बीच में आ रहा है और उसका भी कोई सीधा निराकरण ना हो रहा हो तो यह बात मानकर मानिए कि यह मात्र खेतों से समुद्रों तक ही नहीं होगा, बल्कि हमारे शरीर मे भी पैठ बना चुका होगा।

अभी कुछ नए अध्ययन सामने आए हैं, जिनके अनुसार 1923 के डेंटल ब्रश या प्लास्टिक के उत्पाद आज भी यथावत हैं। वे आज तक भी सड़े-गले नहीं हैं और हमारे बीच में कहीं ना कहीं मौजूद है। इतना ही नहीं अपने देश में भी देखिए, करीब 8 मीट्रिक टन प्लास्टिक सीधे समुद्रों में चला जाता है। अगर यही स्थिति रही तो 2050 तक समुद्र भी शायद प्लास्टिक से पटे होंगे।

यह भी समझ लेना चाहिए कि भारत दुनिया के उन देशों में है, जिनके पास बहुत बड़ा क्षेत्र समुद्र व समुद्र तटों का है, ऐसे में हमें शायद अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि नदियों-नालों के माध्यम से शहरों का प्लास्टिक सब समुद्र में ही जा रहा है। समुद्र में पहले ही चार सौ डार्क जोन बन चुके हैं। पूरे समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र को यह खराब कर चुका है।

माइक्रो-प्लास्टिक्स- जो डीग्रेड होने के बाद आता है- कई तरह के खतरों को पैदा कर चुका है। समुद्र में मछलियों के माध्यम से हो और चाहे खेतों से, यह हमारी खेती-बाड़ी का हिस्सा भी बन चुका है। भारत सरकार ने पिछले अक्टूबर में तय किया था कि जुलाई 2022 के बाद इस पर पूरी तरह प्रतिबंध लग जाएगा। इस प्रतिबंध की शैली एनवायरमेंटल प्रोटक्शन एक्ट के अंतर्गत मानी जाएगी। इसके उलंघन का सीधा मतलब है संविधान के सेक्शन 15 का उल्लंघन।

पर्यावरण सुरक्षा कानून 1986 के तहत प्लास्टिक का उपयोग दंडनीय होगा। प्लास्टिक के उत्पादन और किसी कंपनी द्वारा अपने उत्पाद में प्लास्टिक के उपयोग पर भी जिम्मेदारियां निर्धारित की जाएंगी।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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