प्रतिबंध से बचने के लिए जनता न करे जुगाड़ …?

नीति-नवाचार: सिंगल यूज प्लास्टिक का सामान देने वाले को ना कहना सीखना होगा …
सवाल यह है कि प्लास्टिक की समस्या से निपटने के लिए क्या हम कोई कदम उठाएंगे या फिर हम भारतीय प्लास्टिक प्रतिबंध को धता बताने के लिए फिर किसी जुगाड़ का सहारा ले लेंगे

भारत में 1 जुलाई से सिंगल यूज प्लास्टिक(एसयूपी) पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इस प्रतिबंध की घोषणा करते हुए गत वर्ष एक राजपत्र अधिसूचना जारी की थी। अब केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने सिंगल यूज प्लास्टिक से बनी उन वस्तुओं की सूची तय कर ली है, जिन पर प्रतिबंध लागू होगा। ये हैं-प्लास्टिक की डंडी से बने ईयर बड्स, गुब्बारों में लगने वाली प्लास्टिक की डंडियां, प्लास्टिक के झंडे, कैंडी स्टिक, आइसक्रीम की डंडियां, साज-सज्जा में काम आने वाला पॉलीस्टाइरीन(थर्मोकोल), प्लेटें, कप, गिलास, कांटे, चम्मच, छुरी, स्ट्रॉ, ट्रे, सिगरेट के पैकेट और 100 माइक्रोन से कम के प्लास्टिक या पीवीसी बैनर्स। कम उपयोगिता और कूड़े में फेंकने की उच्च संभावना वाली सिंगल यूज प्लास्टिक की जिन वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाया गया है, उनका चयन इस आधार पर किया गया है कि उन वस्तुओं को एकत्र करना बहुत मुश्किल होता है। इसीलिए उन्हें रीसाइकिल करने में भी मुश्किलें आती है। गुटखा, तम्बाकू, पान मसाला पैकेजिंग के लिए प्लास्टिक के सैशे के इस्तेमाल पर पहले से ही पूर्ण प्रतिबंध लगा हुआ है। इसी प्रकार 75 माइक्रोन से कम मोटाई वाले पॉलीथिन पर भी पहले से ही प्रतिबंध है। दिसम्बर 2022 से यह सीमा बढ़ा कर 120 माइक्रोन वाले पॉलीथिन बैगों तक लागू की जा रही है।

भारत प्लास्टिक कचरे में सर्वाधिक योगदान देने वाला देश है। इस साल भारत सहित 124 देशों ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके अनुसार हस्ताक्षरकर्ता भविष्य में इस बात के लिए कानूनी तौर पर बाध्य होंगे कि वे प्लास्टिक के उत्पादन से लेकर उसके निस्तारण तक की पूरी प्रक्रिया का ध्यान रखें, ताकि प्लास्टिक प्रदूषण घटाया जा सके। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की व्यापक कार्य योजना के तहत सिंगल यूज प्लास्टिक सामग्री बनाने के लिए कच्चे माल की आपूर्ति घटाई जाएगी। उदाहरण के लिए सारी अग्रणी पेट्रोकेमिकल औद्योगिक इकाइयों को निर्देश दिए गए हैं कि वे प्रतिबंधित एसयूपी निर्माण में लगी औद्योगिक इकाइयों को प्लास्टिक के कच्चे माल की आपूर्ति न करें। राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल (एसपीसीबी) और प्रदूषण नियंत्रण समितियों (पीसीसी) को भी निर्देश जारी किए गए हैं कि वे प्रतिबंधित एसयूपी का निर्माण करने वाली औद्योगिक इकाइयों के संचालन के लिए वायु-जल अधिनियम के तहत दी जाने वाली सहमति में संशोधन करें या मंजूरी रद्द करें। कस्टम अधिकारियों से भी कहा गया है कि वे प्रतिबंधित एसयूपी वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगाएं। इस प्रक्रिया को सम्पूर्ण स्वरूप प्रदान करने के लिए स्थानीय अधिकारियों को निर्देश दिए जा रहे हैं कि वे इन इकाइयों के लिए नए व्यावसायिक लाइसेंस जारी करने से पहले यह शर्त रखें कि उनके परिसर में एसयूपी वस्तुओं की बिक्री न हो और मौजूदा व्यावसायिक लाइसेंसधारी अगर प्रतिबंधित एसयूपी सामान बेचते पाए जाएं, तो उनके लाइसेंस रद्द हों। ई-कॉमर्स कम्पनियों, सिंगल यूज प्लास्टिक विक्रेता, खरीददार और प्लास्टिक कच्चा माल निर्माताओं को निर्देश जारी किए गए हैं कि वे चिह्नित सिंगल यूज प्लास्टिक वस्तुओं से चरणबद्ध रूप से मुक्ति पाएं।

एसयूपी के विकल्पों को प्रोत्साहित करने के लिए सक्रिय रूप से बल दिया जा रहा है। सीपीसीबी ने इस दिशा में पहल करते हुए खाद योग्य प्लास्टिक बनाने वाले 200 निर्माताओं को पहले ही एक बार उपयोग योग्य प्रमाण पत्र जारी कर दिए हैं। इसके अलावा आइआइएससी और सीआइपीईटी जैसे संस्थानों की भागीदारी से तेल आधारित प्लास्टिक के विकल्प भी विकसित किए जा रहे हैं। अंतत: प्लास्टिक कचरे के निर्माण पर आवश्यक निगरानी रखने के लिए आधुनिक डिजिटल संसाधनों और सेवाओं की मदद ली जाएगी। नागरिकों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए एसपीसीबी और स्थानीय निकाय नागरिकों, स्वयंसेवी संगठनों, स्वयं सहायता समूहों, स्थानीय एनजीओ-सीएसओ आरडब्लूए,बाजार संघ को साथ लेकर जागरूकता अभियान चला रहे हैं।

सवाल यह है कि क्या जनता इस अभियान में सहयोग करेगी, जिसे फेंक देने वाली संस्कृति की आदत हो गई है। इसे यह भी नहीं दिखाई दे रहा कि इस संस्कृति के चलते कचरे के पहाड़ खड़े हो रहे हैं। ये ही कचरे के पहाड़ उनके जल संसाधनों खेतों, घाटियों और वनों का गला घोंट रहे हैं। क्या जनता इस अभियान में सहयोग करेगी? जनता प्लास्टिक की समस्या से निपटने की दिशा में पहला कदम उठाएगी या फिर हम भारतीय प्लास्टिक प्रतिबंध को धता बताने के लिए फिर किसी जुगाड़ का सहारा ले लेंगे, जैसा कि अब तक करते आए हैं। या फिर प्रतिबंधित प्लास्टिक या उससे बनी थैली दिए जाने पर यह कहना सीखेंगे, ‘नो, थैंक्यू’। उम्मीद है भावी पीढ़ियों के लिए ऐसा करेंगे।

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